पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने केंद्र सरकार के कृषि अध्यादेशों को लेकर शिरोमणि अकाली दल पर हमला किया है। उन्होंने कहा कि शिअद का इन अध्यादेशों पर स्टैंड बदलना ढकोसला है। शिअद ने अपनी साख बचाने को यूटर्न लिया है। कैप्टन अमरिंदर ने शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर बादल को इस मामले पर अपनी पार्टी की किसानों के प्रति संजीदगी साबित करने के लिए भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का साथ छोड़ने की चुनौती भी दी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र में गठजोड़ सरकार का हिस्सा होने के नाते न केवल अध्यादेश लाने में अकाली दल भी शामिल है बल्कि अध्यादेशों की बिना शर्त हिमायत भी कर चुका है। कैप्टन ने कहा कि अकाली दल दोहरे मापदंड अपना रहा है, उन्होंने सुखबीर बादल से सवाल किए कि जब केंद्र सरकार इन अध्यादेशों को पारित करवाने के लिए संसद में पेश करेगी तो क्या अकाली सांसद इसके खिलाफ वोट करेंगे? जब अध्यादेश लाए जा रहे थे तब सुखबीर क्या कर रहे थे, ऐतराज क्यों नहीं जताया? उन्होंने कहा कि सुखबीर की पत्नी केंद्रीय मंत्री हैं, क्या उन्होंने एक बार भी केंद्रीय मंत्रिमंडल में किसानों के हक में आवाज उठाई? वह इन अध्यादेशों के लिए जिम्मेदार केंद्र सरकार का हिस्सा हैं।
कैप्टन ने कहा कि अकाली दल द्वारा केंद्र सरकार को तीनों केंद्रीय कृषि अध्यादेशों के संबंध में किसान संगठनों के संदेह दूर होने तक संसद में पेश न करने की अपील को बेतुकी बताया। उन्होंने सुखबीर के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल द्वारा केंद्र सरकार से मिलने के अकाली दल के फैसले को हास्यास्पद करार देते हुए कहा कि इस मुद्दे पर हमने जून में सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। तब अकाली नेता ने कहा था कि केंद्र सरकार ने अकाली दल को भरोसा दिया है कि एमएसपी के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं होगी।
कैप्टन अमरिंदर ने कहा कि इससे यह साबित होता है कि सुखबीर बादल ने उस समय किसानों को गुमराह करने के लिए जानबूझ कर झूठ बोला था। सुखबीर ने तो केंद्र से संपर्क करने का फैसला सर्वदलीय बैठक में ही ले किया था। कैप्टन ने राज्य से जुड़े अन्य बड़े मुद्दों में सीएए/एनसीआर पर अकाली दल के रुख की तरफ इशारा करते हुए कहा कि अकालियों ने दोहरे मापदंडों को छोड़ने की बजाए इसे अपनी आदत बना लिया है।
कार्यकर्ताओं के दबाव में सुखबीर पलटे: जाखड़
कांग्रेस के प्रदेश प्रधान सुनील जाखड़ ने कहा है कि कार्यकर्ताओं व नेताओं के दबाव में सुखबीर बादल को झुकना ही पड़ा। सुखबीर को यह भी पता है कि सत्ता में रहते हुए भले ही पार्टी उनके साथ थी लेकिन कभी उनके नेतृत्व को स्वीकार नहीं किया। जाखड़ ने कहा कि अकाली दल की राजनीति के दो ही केंद्र रहे हैं- धर्म और किसानी। दोनों ही मुद्दे पर सुखबीर बादल का नेतृत्व विफल साबित हुआ है। कृषि अध्यादेश के समर्थन में खड़े होकर अकाली दल के प्रधान का किसानों और कुर्सी के प्रति नजरिया भी जग जाहिर हो गया।
जाखड़ ने कहा कि अकाली दल में सबसे पहले पूर्व सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा ने कृषि अध्यादेश का विरोध किया था। अब बाकी पार्टी के नेताओं को भी समझ आ गया है कि बादल परिवार तो अपनी कुर्सी बचा लेगा लेकिन पार्टी का कुछ नहीं बचेगा। इसी कारण अब सुखबीर बादल को अपना स्टैंड बदलना पड़ा।