समय के साथ लोगों के खाने-पीने का टेस्ट भी बदलता रहता है मगर कोरोना वायरस ने ऐसे बदलाव किए हैं कि उसकी उम्मीद ही नहीं की जा सकती थी।
संक्रमण के डर से लोग मांस खाने से परहेज कर रहे हैं। मांस खाने के शौकीनों को अब एक फल पसंद आ रहा है। वो मांस की जगह इसको चाव से खा रहे हैं।
और तो और विदेश में रेस्तराओं की चेन चलाने वाले एक होटल के मालिक का कहना है कि अब जो लोग होटल में आते हैं उनकी पहली पसंद यही फल और उससे बनी रेसिपी होती है।
वो उसको खाना पसंद करते हैं, ऑर्डर करते हैं और पैक करवाकर ले जाते हैं। वो बताते हैं कि इस फल का नाम कटहल है। एएफपी एजेंसी की ओर से बताया गया कि अब कटहल को लेकर विदेशों से बहुत पूछताछ हो रही है, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोगों की कटहल में कई गुना दिलचस्पी बढ़ गई है। कुछ लोग तो इसे सुपर फूड का नाम देने लगे हैं।
देश के कई हिस्सों में कटहल पाया जाता है। दक्षिण एशिया में इसकी बड़े पैमाने पर खेती की जाती है। कुछ साल पहले तक यहां इतना अधिक कटहल पैदा होता था कि कई टन बेकार चला जाता था, वो सड़ जाता था।
मगर जब से विदेशों में इससे बनाए जाने वाले कुछ डिश की मांग बढ़ी है उसके बाद से इसकी सप्लाई भी बढ़ गई है। कुछ लोग तो अपने खेतों में सिर्फ कटहल के पेड़ ही उगा रहे हैं जिससे वो अधिक से अधिक कटहल पैदा कर सकें।
कटहल का कई चीजों में इस्तेमाल हो रहा है। भारत में दिवाली के दौरान कटहल की खास डिश बनाए जाने की परंपरा है। इसे पका होने पर भी खाया जाता है।
कटहल जब पक जाता है तो ये मोमी पीले रंग का हो जाता है। उस दौरान भी इसे खाया जाता है। इसके अलावा इसका इस्तेमाल केक, जूस, आइसक्रीम और कुरकुरा बनाने के लिए उपयोग किया जाता है।
इसकी पकौड़ी नमकीन आदि बनाने में इस्तेमाल किया जा रहा है। पश्चिम में, कटा हुआ कटहल पोर्क को खींचने का भी एक विकल्प बन गया है। इसे पिज्जा टॉपिंग के रूप में भी उपयोग किया जाता है।
अमेरिका और भारत में रेस्तरां की एक श्रृंखला की मालिक अनु भांबरी कहती हैं कि लोग कटहल को प्यार करते हैं। इससे बनाई जाने वाली डिशें हर स्थान पर हिट हो रही है।
जो लोग रेस्टोरेंट में खाने के लिए आते हैं वो अक्सर कटहल कटलेट बनाने का आदेश देते हैं। ऑर्डर करने वालों का कहना होता है कि कटहल कटलेट मेरी पसंदीदा डिश में से एक है।
एक बड़ा कारण ये भी बताया जा रहा है कि कटहल मांस की तरह थोड़ा सख्त होता है, ये पकाए जाने पर मसाले को भी सोखता है, जैसे मांस को जब पकाया जाता है तो वो भी मसाले को सोखता है। इस तरह से दोनों में बराबर का स्वाद मिलता है।
सिडनी विश्वविद्यालय के ग्लाइसेमिक इंडेक्स रिसर्च सर्विस के साथ काम करने वाले जोसेफ कहते हैं कि कोरोना वायरस की वजह से लोगों ने चिकन खाना बंद कर दिया है।
अब वो कटहल पर शिफ्ट हुए हैं। यदि केरल की ही बात करें तो लॉकडाउन में सीमा पर लगे प्रतिबंध की वजह से सब्जियों की कमी हो गई, अन्य चीजें भी नहीं मिल पा रही थी, ऐसे में लोगों ने यहां उगाए जाने वाले हरे और पके हुए कटहलों का इस्तेमाल करना शुरू किया, इस वजह से इसमें बढ़ोत्तरी हुई। पके हुए कटहल का बीज खाने में भी लोगों ने काफी दिलचस्पी दिखाई।
मांसाहार से मुंह मोड़ने के लिए लोगों ने दिन तय किए थे कि वो सोमवार और इस तरह से कुछ दिनों में सिर्फ शाकाहार खाना ही खाएंगे।
इस दिन वो सिर्फ शाकाहार का सेवन करेंगे। संयुक्त राष्ट्र की एर रिपोर्ट में भी इस बात का सुझाव दिया गया कि लोगों को मांसाहार छोड़कर पौधे आधारित आहार को अपनाना होगा इससे जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद मिलेगी और लोगों के स्वास्थ्य भी ठीक रहेंगे।
इसको देखते हुए भी लोगों का कटहल की ओर रूख करना एक बड़ा कारण माना जा रहा है। कटहल की बढ़ती मांग का ही नतीजा है कि इन दिनों तटीय राज्य में अधिक से अधिक कटहल के बाग उगाए जा रहे हैं।
जोसेफ बताते हैं कि उनकी एक फर्म भी है वो फर्म कटहल के आटे को बेचती है जिसे गेहूं और चावल के आटे के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
इसके अलावा इसका इस्तेमाल बर्गर पैटीज से लेकर स्थानीय क्लासिक्स जैसे इडली तक कुछ भी बनाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि जब हमने एक पोषण विश्लेषण किया, तो हमने पाया कि कटहल एक भोजन के रूप में एक औसत व्यक्ति के लिए चावल और रोटी (रोटी) से बेहतर है जो अपने रक्त शर्करा को नियंत्रित करना चाहता है।
वे कहते हैं कि द कैनसेट के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में दुनिया में मधुमेह की दर सबसे अधिक है और 2030 तक लगभग 100 मिलियन मामले सामने आने की संभावना है।
ग्लोबल वार्मिंग ने कृषि व्यवसाय पर भी कहर ढाया है। खाद्य शोधकर्ताओं का कहना है कि कटहल एक पौष्टिक प्रधान फसल के रूप में उभर सकता है क्योंकि यह सूखा प्रतिरोधी है और इसके रखरखाव की बहुत कम आवश्यकता होती है।
दक्षिण में कई लोग जो पहले रबड़ की खेती करते थे अब उन्होंने अपने खेतों से रबड़ के पेड़ हटा दिए हैं वो कटहल की खेती कर रहे हैं और कटहल को विदेश में भेज रहे हैं।
अकेले तमिलनाडु और केरल में, गंधकग्राम ग्रामीण संस्थान के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर एस. राजेंद्रन कहते हैं कि पीक सीजन के दौरान कटहल की मांग अब 100 मीट्रिक टन प्रतिदिन है।
लेकिन बांग्लादेश और थाईलैंड जैसे देशों से प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। प्रत्येक पेड़ एक सीजन में 150-250 फल दे सकता है। केरल में, जहाँ यह माना जाता है कि इसका नाम स्थानीय शब्द “चक्का” से पड़ा है।
लंबे समय से एक गरीब आदमी के फल के रूप में देखा गया है। एक समय था जब लोगों को कटहल मुफ्त में ले जाने के लिेए कहा जाता था मगर आज इसे विदेशों में भेजा जा रहा है और पैसे कमाए जा रहे हैं।