पंजाब के पांच बार मुख्यमंत्री रहे शिरोमणि अकाली दल के संरक्षक प्रकाश सिंह बादल का धर्मनिरपेक्षता पर दिया गया बयान इन दिनों सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। उनके इस बयान को हावी हो रही भाजपा के साथ संतुलन बिठाने व शिअद को मजबूत करने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि बादल ने भाजपा को बड़ा संदेश देने की कोशिश की है और रणनीति के तहत धर्मनिरपेक्षता का मुद्दा उठाया है। इसके साथ ही वह बेटे सुखबीर बादल को भी और मजबूत करने में जुट गए हैं।
हावी हो रहे सहयोगी के साथ संतुलन बिठाने व शिअद को मजबूत करने की कवायद
बादल ने अल्पसंख्यकों को साथ लेकर चलने का संदेश देते हुए धर्मनिरपेक्षता का मुद्दा उठाया है। उन्होंने न सिर्फ सहयोगी पार्टी पर निशान साधा, बल्कि सीएए के हक में वोट करने को लेकर सुखबीर बादल की तरफ उठ रही अंगुली को भी दूसरी तरफ मोडऩे की कोशिश की। बादल करीब एक साल से बेहद शांत नजर आ रहे थे और उन्होंने पार्टी की गतिविधियों में सीधे रूप से हिस्सा लेना छोड़ दिया था।
टकसालियों से मिल रही चुनौतियों के बाद भाजपा भी दिखाने लगी थी तेेवर
उन्होंने अमृतसर के राजासांसी में कहा कि देश की मजबूती व विकास के लिए धर्मनिरपेक्ष सरकारें समय की जरूरत हैं, क्योंकि कोई भी राष्ट्र सिर्फ धर्मनिरपेक्ष सरकारों से ही सुरक्षित रह सकता है। धर्मनिरपेक्षता के पवित्र सिद्धांतों की जरा सी अनदेखी भी हमारे देश को कमजोर कर सकती है। राज्यों के सत्ताधारियों को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि देश को संविधान में दर्ज धर्मनिरपेक्ष व लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप चलाया जाए। देश का माहौल ऐसा होना चाहिए कि जहां अल्पसंख्यक सुरक्षित और सम्मानित महसूस करें।
माना जा रहा है कि प्रकाश सिंह बादल ने अनायास ही अल्पसंख्यकों को साथ लेकर चलने का मुद्दा नहीं उठाया है। उन्होंने यह दांव सोच समझकर खेला है। हरियाणा व दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा व शिरोमणि अकाली दल के बीच गठबंधन टूटा और उन्हें शिअद टकसाली से चुनौती मिलने लगी। भाजपा ने भी सीटों के बंटवारे पर शिअद को आंखें दिखाना शुरू कर दिया था।
अब टकसाली अजनाला के वापस आने के बाद बादल ने अपने सहयोगियों को कड़ा संदेश दिया है। यह सीधा-सीधा भाजपा के लिए ही था। 2015 में बेअदबी कांड के बाद से अकाली दल का ग्राफ लगातार गिरा, लेकिन भाजपा के साथ उनके रिश्ते में खटास नहीं आई। हरियाणा चुनाव से ही भाजपा और अकाली दल के रिश्ते में कड़वाहट पैदा होने लगी थी, जो दिल्ली विस चुनाव तक जारी रही। इसके बाद से ही इस बात के संकेत मिलने लगे थे कि 2022 के लिए भाजपा कहीं अपनी राह को जुदा न कर ले।
सुखबीर बादल का दबाव भी कम किया
भाजपा के दबाव और टकसालियों से मिल रही चुनौतियों के कारण सुखबीर बादल पर दवाब बढ़ता जा रहा है। ऐसे में अगर शिअद की राह जुदा हो जाती है, तो सुखबीर बादल के राजनीतिक भविष्य पर भी सवालिया निशान लग जाना था। यही कारण है कि स्थिति हाथ से निकलने से पहले प्रकाश सिंह बादल ने कमान संभाल ली। लंबे समय बाद बादल ने भाजपा को साफ-साफ कह दिया कि अपने सहयोगियों व अल्पसंख्यकों को साथ लेकर चलना चाहिए।
अहम बात यह है कि बादल का यह बयान दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद आया है। अब आम आदमी पार्टी का अगला निशाना पंजाब ही है। कोई भी राजनीतिक पार्टी आप को हलके में नहीं ले रही है। यही कारण है कि भाजपा के साथ गठबंधन को बनाए रखने व सुखबीर को मजबूत करने के लिए बादल को कमान अपने हाथों में लेनी पड़ी। बादल की राजनीति को करीब से जानने वालों के अनुसार बादल बेवजह कुछ भी नहीं बोलते और जिस मिशन को वह अपने हाथों में ले लेते हैं, उसकी बिसात पहले से ही बिछाने लगते हैं। अमृतसर में हुई रैली उसी का एक हिस्सा है।