हिंदू धर्म में चतुर्थी तिथि का बड़ा महत्व है और हम जानते ही हैं कि हर महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान श्रीगणेश को प्रसन्न करने के लिए विनायकी चतुर्थी का व्रत किया जाता है। यदि विनायकी चतुर्थी का यह व्रत मंगलवार को आता है, तो इसे अंगारकी गणेश चतुर्थी कहते हैं। इस बार ये व्रत 28 जनवरी, मंगलवार को है।
इस दिन भगवान श्रीगणेश का विधि-विधान से पूजन किया जाए तो हर मनोकामना पूरी हो जाती है। इस बार अंगारकी चतुर्थी का संयोग पूरे साल में सिर्फ 3 बार ही बनेगा। साल की पहली अंगारकी चतुर्थी 28 जनवरी को है। वहीं आखिरी चतुर्थी 20 अक्टूबर को मनाई जाएगी।
चतुर्थी व्रत का महत्व
हर महीने की शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि पर व्रत करने की परंपरा है। इस दिन व्रत के साथ ही भगवान गणेश की पूजा भी की जाती है। शिव पुराण के अनुसार भगवान गणेश का जन्म मध्याह्न में हुआ था इसलिए यहां दोपहर में भगवान गणेश की पूजा प्रचलित है। इन क्षैत्रों के अलावा उत्तरी भारत के कई हिस्सों में भी ये व्रत किया जाता है, लेकिन यहां शाम को गणेश पूजा के बाद चंद्र पूजा और चंद्र दर्शन के बाद व्रत खोलने की परंपरा है।
कई तरह की परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष की चतुर्थी का व्रत किया जाता है। यह व्रत सूर्योदय से शुरू होता है और अगले दिन सूर्योदय तक चलता है, हालांकि शाम को चंद्रमा के दर्शन और पूजा के बाद एक बार भोजन किया जाता है।
भगवान गणेश हर तरह के कष्ट को हरने वाले और कामकाज में आने वाली रुकावटों को दूर करने वाले हैं इसलिए उन्हें विघ्नहर्ता भी कहा जाता है।
भगवान गणेश सुख प्रदान करने वाले हैं। इसलिए यह व्रत रखने से सभी कष्ट दूर होते हैं।
ऐसे करें अंगारकी चतुर्थी पर भगवान गणेश की पूजा
सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि काम जल्दी ही निपटा लें। दोपहर के समय अपनी इच्छा के अनुसार सोने, चांदी, तांबे, पीतल या मिट्टी से बनी भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें।
संकल्प मंत्र के बाद श्रीगणेश की षोड़शोपचार पूजन-आरती करें। गणेशजी की मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाएं। गणेश मंत्र (ऊँ गं गणपतयै नम:) बोलते हुए 21 दूर्वा दल चढ़ाएं।
बूंदी के 21 लड्डुओं का भोग लगाएं। इनमें से 5 लड्डू मूर्ति के पास रख दें तथा 5 ब्राह्मण को दान कर दें।शेष लड्डू प्रसाद के रूप में बांट दें।
पूजा में श्रीगणेश स्त्रोत, अथर्वशीर्ष, संकटनाशक स्त्रोत आदि का पाठ करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा देने के बाद शाम को स्वयं भोजन ग्रहण करें।
संभव हो तो उपवास करें। इस व्रत का आस्था और श्रद्धा से पालन करने पर भगवान श्रीगणेश की कृपा से मनोरथ पूरे होते हैं और जीवन में निरंतर सफलता प्राप्त होती है।