अपनी जान जोखिम में डालकर दूसरों की रक्षा करने का जज्बा बहुत कम लोगों में होता है, लेकिन बहुत से बच्चे ऐसे होते हैं जो छोटी सी उम्र में अपने अद्भुत साहस का परिचय देकर दूसरों की जिंदगी बचाने में कामयाब भी होते हैं। देश के ऐसे ही बहादुर और होनहार बच्चों का 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के मौके पर दिल्ली में सम्मान होने वाला है। भारतीय बाल कल्याण परिषद नई दिल्ली द्वारा आयोजित राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार-2019 ग्रहण करने छत्तीसगढ़ की भी दो बच्चियां दिल्ली रवाना हो रही हैं। धमतरी की भामेश्वरी और सरगुजा की कांति वह साहसी बच्चियां हैं जिन्हें राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार देने के लिए छत्तीसगढ़ राज्य बाल कल्याण परिषद द्वारा अनुशंसा की गई थी। दोनों बच्चियां अपने पिता के साथ रायपुर से 18 जनवरी को दिल्ली के लिए रवाना होंगी।
तैरना नहीं आने के बाद भी दो बच्चियों की जान बचाई
धमतरी जिले के कानीडबरी गांव में रहने वाली भामेश्वरी निर्मलकर (पिता श्री जगदीश निर्मलकर) ने 12 साल की उम्र में ही अपनी बहादुरी का परिचय देकर गांव की दो बालिकाओं को तालाब में डूबने से बचाया। कक्षा सातवीं की छात्रा भामेश्वरी ने 17 अगस्त 2019 में यह साहसिक कारनामा कर दिखाया। यह घटना उसे अक्षरश: याद है और बात करते समय पूरा घटनाक्रम जैसे उसकी आंखों के सामने से गुजरता चला जाता है।
वह बताती है कि गांव की दो बालिकाएं सोनम और चांदनी स्कूल से छुट्टी होने के बाद गांव के तालाब में नहाने गई थीं। वे दोनों खेलते-खेलते तालाब की गहराई से अंजान आगे बढ़ती गई और डूबने लगी। भामेश्वरी ने बताया कि वह तालाब में कपड़ा धोने के लिए पहुंची थी। दोनों बच्चियों को तालाब में न देखकर उसका मन आशंका से भर उठा और बिना इस बात की परवाह किए कि उसे तैरना तक नहीं आता है, उसने तालाब में छलांग लगा दी। किसी तरह वह उन्हें खींचकर बाहर ले आई।
जिस वक्त ये हादसा हुआ उस वक्त तालाब के आस-पास कोई और नहीं था। भामेश्वरी कहती है कि उस समय उसे कुछ सूझा नहीं, उसके मन में केवल दोनों बच्चियों की जान बचाने का ख्याल आया था। बाद में गांव की ही एक महिला की मदद से भामेश्वरी अचेत पड़ी उन बच्चियों की जान बचाने में सफल हो गई। गांव वालों की सहायता से सोनम और चांदनी को सुरक्षित उनके परिजनों को सौंप दिया गया। इस घटना से भामेश्वरी की बहादुरी की चर्चा पूरे प्रदेश में फैली और फिर उसका नाम राष्ट्रीय वीरता पदक के लिए चुना गया।
हाथियों को चकमा देकर बहन की जान बचाई
राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार के लिए चुने जाने वालों में सरगुजा जिले के मोहनपुर गांव की रहने वाली 7 साल की बालिका कांति सिंग (पिता विनोद सिंह) का नाम भी शामिल है। चौथी कक्षा में छात्रा कांति ने पिछले साल मात्र 6 साल की उम्र में अपनी जान की परवाह किये बगैर जंगली हाथियों के हमले से अपनी 3 साल की छोटी बहन की जान बचाई थी।
सरगुजा जिले का यह गांव काफी समय से जंगली हाथियों के आतंक से पीड़ित क्षेत्र है। आए दिनों यहां हाथी पहुंचते हैं और पूरे घरों के साथ-साथ खड़ी फसल को तहस-नहस करके चले जाते हैं। हाथी मवेशियों के अलावा लोगों पर भी हमला कर देते हैं और उन्हें मार डालते हैं। 17 जुलाई, 2018 को ऐसा ही नजारा गांव में देखने को मिला, जब जंगली हाथियों का एक बड़ा सा झुंड वहां पहुंच गया। गांव वाले जान बचाने के लिए अपने घरों से निकल कर भागने लगे। हाथी खोराराम कंवर के घर को तोड़ते हुए उसकी बाड़ी तक पहुंच कर वहां मक्के की फसल को बर्बाद करने लगे।
हाथियों के डर से पूरा परिवार बाहर भागने लगा, इस दौरान वे घर पर 3 साल की मासूम बच्ची को ले जाना भूल गए। बाद में उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ, लेकिन किसी की हिम्मत घर वापस जाने की नहीं हो रही थी। ऐसे में कांति ने न आव देखा न ताव, बस घर की तरफ दौड़ लगा दी। कांति जंगली हाथियों के बगल से फूर्ती से निकलती हुई घर पहुंची और अपनी छोटी बहन को हाथियों की नजरों से बचते-बचाते उसे परिवार वालों तक पहुंचाने में सफल हो गई।
उस रात हाथियों ने उसके पूरे घर के साथ-साथ आस-पास के घरों को काफी नुकसान पहुंचाया। कांति ने इस तरह अपनी सूझबूझ से अपनी बहन की जान बचा ली। उसने इस बात की भी परवाह नहीं कि उसके साथ कुछ अनहोनी भी हो सकती थी। पूरे गांव के लोगों ने इस साहस के लिए कांति की पीठ थपथपाई और कलेक्टर ने राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार के लिए उसके नाम की अनुशंसा की। कांति को अब यह सम्मान मिलने जा रहा है।
राज्य वीरता पुरस्कार भी मिल चुका है
वर्ष 2019 में कांति के इस साहसिक कदम की छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी प्रशंसा कर चुके हैं। पिछले वर्ष छत्तीसगढ़ शासन के महिला और बाल विकास विभाग द्वारा कांति को राज्य वीरता पुरस्कार 2018 से सम्मानित किया गया। इसका क्रियान्वयन छत्तीसगढ़ राज्य बाल कल्याण परिषद द्वारा किया गया था। 26 जनवरी 2019 को गणतंत्र दिवस के अवसर पर रायपुर में आयोजित मुख्य समारोह में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कांति को यह सम्मान प्रदान किया था।