वृंदावन स्थित विश्वविख्यात ठाकुर श्री बांके बिहारीजी का आज प्राकट्योत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है। मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन निधिवन से बांके बिहारीजी की मूर्ति निकली थी। इसी उपलक्ष्य में निधिवन से बांकेबिहारी मंदिर तक चांदी के रथ पर शोभायात्रा निकाली जाएगी। शोभायात्रा के दर्शन के लिए आज वृंदावन में देश-विदेश से लाखों भक्त जुटे हैं। निधिवन से निकलने वाली बिहारीजी की मूर्ति कई रहस्यों से भरी हुई है। स्थानीय लोगों के अनुसार भगवान कृष्ण आज भी न केवल रोज यहां आते हैं बल्कि रासलीला भी करते हैं।
मंदिर में सुबह 4:30 बजे ठाकुरजी का पंचामृत से अभिषेक किया गया। इसके साथ ही बिहारीजी का केसर मोहन भोग (केसर हलुआ) का विशेष भोग लगाया गया। जो जगह-जगह शोभायात्रा के दौरान ठाकुरजी के प्रसाद के रूप में बांटा जा सकता है । आठ बजे निधिवन से बांकेबिहारी मंदिर के लिए धूमधाम से शोभायात्रा निकाली जाएगी और स्वामी हरिदास महाराज बांकेबिहारी मंदिर पहुंचकर प्राकट्योत्सव की बधाई देंगे। 21वीं सदी में भी निधिवन कई रहस्यों से भरा हुआ है। इस अद्भुत वन वाटिका को लोग निधिवन और मधुवन के नाम से भी जानते हैं। माना जाता है कि निधिवन में शाम होते ही इस इलाके को इंसानो के साथ पक्षी भी छोड़ देते हैं। शाम क समय यहां कोई नहीं जाता है। कहा जाता है कि भगवान का दर्शन व्यक्ति को जरूर होते हैं पर वह भगवान की अपार उर्जा को देखकर सहन नहीं कर पाता।
भगवान की ऊर्जा से उनकी आंखों की रोशनी चली जाती है, बोलना छोड़ देते हैं या फिर उनकी मौत हो जाती है। स्थानीय लोगों और पुजारियों के मुताबिक , उनकी मौत भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन के बाद ही होती होगी। इसी कारण उन सभी लोगों की समाधि भी इसी वन में आज भी मौजूद है। निधिवन में मौजूद वृक्ष भी अजीबो गरीब तरह से बढ़ते हैं। निधिवन के वृक्ष के तने सीधे नहीं मिलेंगे बल्कि इन वृक्षों की डालियां नीचे की ओर झुकी तथा आपस में गुंथी हुई प्रतीत हाते हैं। मान्यता है कि निधिवन की सारी लताये गोपियां है। जो एक दूसरे के साथ खड़ी है। रात में निधिवन में राधा रानी जी, बिहारी जी के साथ रास लीला करती है। तो ये लताएं गोपियां बन जाती है।