सोलह श्राद्ध के दौरान पितृों को भोग लगाने के लिए बनाए जाने वाले भोजन का भी बड़ा महत्व है। शास्त्रों में बताया गया है कि पितृपक्ष में श्राद्ध के दौरान वही खाना बनाना चाहिए जो अपके पितृों को प्रिय हो।
सात्विकता का भी ख्याल रखना चाहिए। भोजन में कुछ खास तरह के व्यंजन बनाने का भी प्रावधान किया गया है, जिनका भोग लगाने से पितृ तृप्त होते हैं और अपने परिजनों को सुखी जीवन का आशीर्वाद देते हैं।
श्राद्ध का भोजन है खीर-पूरी
वैसे को श्राद्ध में कई तरह के सात्विक और जायकेदार व्यंजनों को बनाने का प्रावधान है, लेकिन इन सभी व्यंजनों में खीर-पूरी का स्थान सबसे ऊपर है, यानी खीर-पूरी से पितृ सबसे ज्यादा प्रसन्न होते हैं। मान्यता है कि खीर-पूरी से दिवंगत पूर्वजों की आत्मा तृप्त होती है। पुरुष के श्राद्ध में ब्राह्मण को और स्त्री के श्राद्ध में ब्राह्मण महिला को भोजन करवाया जाता है।
अग्नि में भोजन तैयार कर भोग लगाया जाता है और पूर्वजों को आमंत्रित किया जाता है उसके बाद उसी भोजन को यानी खीर-पूरी और सब्जियों को ब्राह्मणों को परोसा जाता है और भोजन करने के बाद वस्त्र व दक्षिणा देकर और पान खिलाकर विदा किया जाता हैं।
खाना बनाने की प्रक्रिया से पहले स्नान आदि से निवृत्त होकर भोजन की तैयारी करें। भोजन बगैर प्याज और लहसुन का तैयार करें। भोजन में खीर-पूरी व पनीर, सीताफल, अदरक व मूली का लच्छा तैयार किया जाता है।
उड़द की दाल के बड़े बनाकर दही में तैयार किए जाते हैं। या फिर उड़द की इमरती बनाई जाती है आमंत्रित पंडित तैयार भोजन में से पहले गाय का नैवेद्य निकलवाते हैं। इसके बाद कौओं व चिड़िया, कुत्ते के लिए भी ग्रास निकाला जाता हैं। मान्यता है कि ब्राह्मणों को खीर-पूरी खिलाने से पितृ तृप्त होते हैं।
इसलिए इस इस दिन खीर-पूरी ही बनाई जाती है। यदि खीर-पूरी और दूसरे व्यंजन बनाने का सामर्थ्य नहीं है तो आप ब्राह्मण को या मंदिर में आटा, दाल, घी, मसाले आदी वस्तुएं दान कर सकते हैं। यदि यह भी नहीं कर सकते तो श्रद्धा के साथ सामान्य तर्पण कर भी पितृ को तृप्त कर सकते हैं।