गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी आइएलएंडएफएस में वित्तीय गड़बड़ी की तपिश धीरे धीरे फैलती जा रही है। पहले इसने ऑडिट करने के नाम पर होने वाले घोटाले का पर्दाफाश किया। अब इस घोटाले ने देश की रेटिंग एजेंसियों की अव्यवस्था को बाहर ला दिया है। इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज (आइएलएफएस) के ऑडिट पर जारी विशेष रिपोर्ट में जिस तरह से मूडीज, फिच, इंडिया रेटिंग्स जैसी बड़ी रेटिंग एजेंसियों की भूमिका सामने आई है, उससे केंद्र सरकार भी सतर्क हो गई है। वित्तीय धोखाधड़ी की जांच करने वाली एजेंसी एसएफआइओ ने विभिन्न रेटिंग एजेंसियों के स्तर पर होने वाली गड़बड़ियों की जांच भी शुरू कर दी है।
वित्त मंत्रालय ने भी इन गड़बड़ियों को बेहद गंभीरता से लिया है। आने वाले दिनों में सरकार व दूसरी वित्तीय नियामक एजेंसियों की तरफ से इस बारे में मौजूदा नियमों में बड़े संशोधन की तैयारी है।सरकार के सूत्र मान रहे हैं कि रेटिंग एजेंसियों के स्तर पर होने वाली जिस तरह की गड़बड़ी सामने आई है, अब उसमें सुधार के लिए कई स्तरों पर कदम उठाने होंगे। सिर्फ एसएफआइओ की जांच से ही बात नहीं बनेगी, बल्कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) और भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड (सेबी) के स्तर पर व्यापक कदम उठाने होंगे। आरबीआइ वर्षो से रेटिंग एजेंसियों व वित्तीय संस्थानों के रिश्ते में पारदर्शिता लाने को लेकर ढुलमुल रवैये का प्रदर्शन करता रहा है। सेबी ने रेटिंग एजेंसियों की तरफ से दी जाने वाली सूचनाओं के सार्वजनिक करने के बारे में नंवबर, 2018 में नया नियम लागू किया है। लेकिन उसे और सख्त बनाने की जरूरत है।
ये सुझाव बताए गए थे : वित्त मंत्री की अध्यक्षता वाली वित्तीय नियामकों के प्रमुखों वाली एजेंसी वित्तीय स्थिरता एवं विकास परिषद (एफएसडीसी) की पिछली बैठक में रेटिंग एजेंसियों को लेकर मौजूदा कायदे-कानून को दुरुस्त बनाने पर सबसे ज्यादा चर्चा हुई थी। उस बैठक में आरबीआइ गवर्नर और पेंशन फंड नियामक विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) अध्यक्ष ने यह बताया था कि रेटिंग एजेंसियों के कामकाज को लेकर बाजार नियामक एजेंसी सेबी की तरफ से अभी और सख्त नियम बनाने की जरूरत है। इस पर सेबी की तरफ से बताया गया था कि सिर्फ रेटिंग एजेंसियों के स्तर पर कदम उठाने से काम नहीं चलेगा बल्कि वित्तीय कंपनियों के गवर्नेंस में सुधार लाने से ही असर होगा।बड़ी
गड़बड़ियां आईं सामने : पिछले एक हफ्ते के दौरान देश की रेटिंग एजेंसियों को लेकर कई चिंताजनक तथ्य आए हैं। पहले केयर लिमिटेड और फिर इकरा लिमिटेड ने अपने-अपने प्रमुखों को छुट्टी पर भेज दिया। बताया गया कि इनके खिलाफ सेबी में शिकायत की गई थी। इसके बाद ग्रंट थॉन्र्टन की तरफ से आइएलएंडएफएस की फॉरेंसिक ऑडिट रिपोर्ट सामने आई है। इससे यह सामने आया है कि रेटिंग एजेंसियों के अधिकारियों को कंपनी की तरफ से ना सिर्फ अतिरिक्त वित्तीय लाभ दिया गया बल्कि उन्हें विदेश भ्रमण, फुटबॉल मैच देखने जैसी सुविधाएं देकर भी उनकी सेवा को प्रभावित किया गया। इस रिपोर्ट ने मूडीज, फिच और इंडिया रेटिंग के अधिकारियों के संलग्न होने की बात कही है। इन अधिकारियों की रिपोर्ट से ही आइएलएंडएफएस प्रबंधन अपनी वित्तीय स्थिति को सालों तक दबाए रहा।
रेटिंग एजेंसियों ने बढ़ा-चढ़ाकर आइएलएंडएफएस की विभिन्न वित्तीय उत्पादों को रेटिंग दी। इससे कंपनी को सस्ती दरों पर कर्ज भी मिला और इसमें हजारों करोड़ रुपये भी निवेश किए गए। अब यह साबित हो चुका है कि रेटिंग एजेंसियों द्वारा दी रिपोर्ट गलत थी। ग्रांट थॉन्र्टन की रिपोर्ट में पाया गया है कि आइएलएंडएफएस के वित्तीय आंकड़ों मे वर्ष 2008 से ही गड़बड़ी की जा रही थी। वर्ष 2015 के बाद से ही इसमें तरलता संकट आना शुरू हो गया था। कई बार रेटिंग एजेंसियों ने गड़बड़ी को पकड़ा, लेकिन रेटिंग में हर बार हेरफेर की। बाद में जब आइएलएंडएफएस प्रबंधन को बढ़िया रेटिंग मिलने में दिक्कत होने लगी तो उन्होंने इसे आम निवेशकों से छिपाने की भी कोशिश की।