पंजाब में विपक्ष बिखरा तो छोटे दलों ने गठबंधन करना शुरू कर दिया। अगर हालातों पर नजर डाली जाए, तो ये गठबंधन इस बार चुनावी गणित व समीकरण बिगाड़ सकते हैं। पंजाब डेमोक्रेटिक अलायंस (पीडीए) के गठन के दूसरे ही दिन प्रदेश में कुछ अन्य छोटे दलों ने एकजुट होकर पंजाब सेक्युलर अलायंस (पीएसए) के बैनर तले लोकसभा चुनाव लड़ने का एलान कर दिया।
खास बात यह है कि पंजाब के मुख्य विपक्षी दल जहां अंदरूनी टूट का शिकार हो गए हैं, वहीं छोटे-छोटे दलों ने महागठबंधन बनाने शुरू कर दिए हैं। पंजाब के राजनीतिक परिदृश्य पर नजर डाली जाए तो, सूबे में 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले तक मुख्य मुकाबला कांग्रेस और शिअद-भाजपा गठबंधन में ही रहा। इस दौरान कुछ अकाली दल भी उभरे, लेकिन वे अलग-अलग ही चुनाव लड़े।
2014 के लोकसभा चुनाव और 2016 के विधानसभा चुनाव में तीसरे राजनीतिक दल आम आदमी पार्टी (आप) ने सूबे में पदार्पण किया और खुद को बड़े राजनीतिक दल के रूप में स्थापित भी कर लिया।
इस बार कुछ ऐसे हैं हालात
आगामी लोकसभा चुनाव में भी मुख्य मुकाबला कांग्रेस, शिअद-भाजपा गठबंधन और आप के बीच माना जा रहा है। हालांकि शिअद से अलग हुए कुछ सीनियर नेताओं ने अकाली दल (टकसाली) का गठन कर लिया है, जबकि आप से बाहर होकर पंजाब एकता पार्टी (पीईपी) बनाने वाले सुखपाल सिंह खैरा अब पीडीए का हिस्सा हो गए हैं। मौजूदा हालात में आप के पास राज्य में भगवंत मान के अलावा कोई मुखर नेता भी नहीं है।
उधर, अकाली दल (टकसाली) को लेकर कयास लगाए जा रहे थे कि वह शिअद के पंथक वोटों में सेंध लगाएंगे, लेकिन इस दल की माझा और मालवा में बहुत अधिक पकड़ फिलहाल नहीं है। पीडीए और पीएसए के प्रभाव का आकलन किया जाए तो पीडीए में बसपा और सीपीआई जैसे दलों के अलावा सभी नए दल हैं, जिनमें सुखपाल खैरा और धर्मवीर गांधी के अलावा बाकी चेहरे नए हैं।
वहीं किसानों, कर्मचारी संगठनों और गरीब तबके के लोगों को साथ लेकर बने गठबंधन पीएसए ने फिलहाल चार सीटों पर अपने प्रत्याशियों का एलान तो किया है, लेकिन उनमें केवल एक जगदीप सिंह फतेहगढ़ साहिब सीट पर बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं। बाकी चेहरे चुनाव मैदान में बिल्कुल नए हैं।