अफसर के बजाय शहीद के पिता का गौरव दिला अमर हो गया बेटा

मैं जब भी मनिंदर से शादी की बात करता तो वह नकार देता। वह मुझे एक अफसर का पिता कहलवाना चाहता था, लेकिन आज देश में जान न्योछावर कर उसने मुझे शहीद का पिता होने का गौरव दिलाकर खुद अमर हो गया। आंसू भरी आंखों और रुंधे गले से ये शब्द पुलवामा आतंकी हमले में शहीद हुए पंजाब के गुरुदासपुर के कस्बा दीनानगर के जवान मनिदर सिह के पिता सतपाल सिंह ने कहे। सतपाल सिंह पंजाब रोडवेज से सेवानिवृत्त हैं। वे याद करते हैं कि बेटा अकसर यही कहता था कि एक दिन अफसर बनेगा। अफसर बनने के बाद ही शादी करूंगा। उन्हें उस पर नाज होगा। बेटे की बातें सुनकर जो सुकून मिलता था, उसे बयां नहीं कर सकता।

मनिंदर सिह पढ़ाई में काफी होशियार था। पांचवीं के बाद वह नवोदय विद्यालय में चयनित हो गया। पढ़ाई का बोझ भी पिता के कंधों से हटा दिया था। मनिदर ने 12वीं के बाद आइटी में तीन साल डिप्लोमा किया। पढ़ाई के बाद 2017 में मनिदर को बंगलुरू में एक कंपनी में नौकरी मिल गई। नौकरी करते समय ही वह स्पोर्ट्स कोटे से सीआरपीएफ में बतौर कांस्टेबल भर्ती हो गया। भर्ती होने का पता परिवार को उस वक्त चला जब वह वर्दी पहनकर घर आया। उसके बाद भी मनिंदर अफसर बनना चाहता था।

सीआरपीएफ में सेवाएं देने के साथ ही उसने सीआइडी में अफसर का टेस्ट पास कर लिया। इस संबंध में उसकी वेरिफिकेशन भी हो चुकी थी। शायद भगवान नहीं चाहता था किसी बेटी की जिंदगी खराब हो सतपाल सिंह कहते हैं कि मनिदर की मां राज कुमारी का करीब नौ साल पहले निधन हो गया था। दोनों बेटे सीआरपीएफ में तैनात हो गए। तीन बेटियों की शादी के बाद वे घर पर अकेले थे।

मनिंदर को अक्सर कहते थे कि खाना बनाने में अब मुश्किल होती है। शादी कर ले, लेकिन वह यही कहता था कि पहले वह अफसर बनना चाहता है। शायद भगवान नहीं चाहता था कि शादी करके वह किसी की बेटी की जिंदगी खराब करे। बेटे के हाथ से पी थी आखिरी चाय, अंतिम सांस तक रहेगी याद सतपाल कहते हैं मनिंदर ड्यूटी पर लौट रहा था। सुबह उठकर उसने खुद चाय बनाई। हम दोनों ने चाय इकट्ठे बैठकर पी। बेटे के हाथ से बनी वह चाय उन्हें मरते दम तक याद रहेगी।

कभी सोचा नहीं था कि बेटे के हाथ से बनी आखिरी चाय पी रहे हैं। जब उसे बस पर चढ़ाकर वापस आया था उस वक्त भी अजीब सा महसूस हो रहा था। बुधवार शाम को सात बजे उसका फोन आया कि वह पहुंच गया है। एक ही दिन उसका फोन नहीं आया, तो शहादत की खबर आ गई मनिंदर परिवार का बहुत ख्याल रखता था। ड्यूटी के दौरान हर रोज फोन पर बात कर हालचाल पूछता था। सिर्फ 14 फरवरी को ही उसका फोन नहीं आया। वे इस बारे में सोच ही रहे थे कि बेटे की शहादत की सूचना देने के लिए फोन आ गया।

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