इस बीच, दर्शकों के त्योहारी उत्साह के बावजूद सूबे के करीब 400 छोटे-बड़े सिनेमाघरों में पखवाड़े भर से नई फिल्में रिलीज नहीं हो पा रही हैं. शहरी स्थानीय निकायों द्वारा सिनेमा टिकटों पर मनोरंजन कर लगाने के फरमान के खिलाफ लामबंद फिल्म उद्योग की हड़ताल के कारण यह स्थिति बनी है.
सिनेमा उद्योग के अग्रणी संगठन फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष जितेंद्र जैन ने बताया, “सिनेमा टिकटों पर 28 प्रतिशत माल एवं सेवा कर (जीएसटी) पहले ही लग रहा है. अब राज्य के शहरी स्थानीय निकायों ने अलग-अलग श्रेणियों के हरेक टिकट पर पांच से 15 प्रतिशत तक की दर से मनोरंजन कर भी लगा दिया है. इस दोहरे करारोपण के विरोध में राज्य के सिनेमाघरों में पांच अक्टूबर से नई फिल्मों का प्रदर्शन बंद है.”
उन्होंने कहा, “देश में जीएसटी पेश करते वक्त “एक देश, एक कर” का नारा बड़े जोर-शोर से दिया गया था. लेकिन स्थानीय निकायों द्वारा सिनेमा टिकटों पर मनोरंजन कर लगाने से यह नारा फिल्म उद्योग के मामले में झूठा साबित होता दिखाई दे रहा है.”
जितेंद्र जैन के मुताबिक, राज्य में जारी हड़ताल से सिनेमा उद्योग को करोड़ों रुपये का नुकसान हो रहा है और सैकड़ों टॉकीज कर्मचारियों की आजीविका खतरे में है. उन्होंने कहा, “हम मनोरंजन कर का अतिरिक्त बोझ उठाने की स्थिति में नहीं हैं. हमारी मांग है कि यह कर फौरन वापस लिया जाना चाहिये. इस मामले में केंद्र सरकार को दखल देना चाहिये.”
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फंसा पेंच
इस बीच, जानकारों ने बताया कि चूंकि प्रदेश में विधानसभा चुनावों की आदर्श आचार संहिता लागू है. इसलिये सिनेमा उद्योग की मांगों पर राज्य सरकार फिलहाल कोई आधिकारिक फैसला नहीं कर पा रही है. राज्य की सभी 230 विधानसभा सीटों पर मतदान 28 नवंबर को होना है, जबकि वोटों की गिनती 11 दिसंबर को होगी. ऐसे में जाहिर है कि नई राज्य सरकार के गठन के बाद इसके औपचारिक रूप से हरकत में आने में करीब दो महीने बाकी हैं.
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बहरहाल, इस हड़ताल के कारण पखवाड़े भर के दौरान राज्य में नई फिल्में रिलीज नहीं हो सकी हैं. अब सैफ अली खान की प्रमुख भूमिका वाली “बाजार” और अमिताभ बच्चन व आमिर खान जैसे सितारों से सजी “ठग्स ऑफ हिंदुस्तान” जैसी बड़ी फिल्मों के आगामी प्रदर्शन पर भी असमंजस का माहौल है.
सिनेमा उद्योग के सूत्रों ने बताया कि सूबे में जारी हड़ताल की कमान फिल्म निर्माताओं और मल्टीप्लेक्स संचालकों के हाथ में है. उद्योग के इन बड़े खिलाड़ियों को डर है कि अगर राज्य के स्थानीय निकायों को मनोरंजन कर चुकाने का सिलसिला शुरू कर दिया गया, तो अन्य प्रदेशों में भी सिनेमा टिकटों पर इसी तरह का कर लगाया जा सकता है.