इडली, डोसे और वडे के साथ परोसा जाने वाला सांभर बेशक दक्षिण भारत की पहचान है लेकिन स्वाद और सेहत से भरपूर होने की वजह से इसका स्वाद अब आप ज्यादातर जगहों पर ले सकते हैं। लेकिन हम में से बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि सांभर असल में महाराष्ट्र की देन है।
सांभर का महाराष्ट्र से दक्षिण तक का रोचक सफर
दाल- सब्जी से मिलकर बनने वाली इस डिश का स्वाद बढ़ाने का काम करती है इमली। वैसे तो सांभर के बारे में लोगों ने कई कहानियां इजात की हैं जिनमें से एक है कि एक बार मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र संभाजी को भूख लगी थी और उनका मुख्य रसोइया वहां मौजूद नहीं था। संभाजी को खाने के साथ-साथ बनाने का भी बहुत शौक था तो उन्होंने खुद से दाल बनाने की सोची। और गलती से उसमें इमली डाल दी जिससे उसका स्वाद अलग और बढ़ गया। उसके बाद इसे सांभर नाम दिया गया। खाना-पान के जानकर और इतिहासकार इस बात को पूरी तरह मानते हैं कि मराठा काल से पहले सांभर का कोई अस्तित्व नहीं था।
अलग-अलग रूपों में सांभर
सांभर बनाने की कला एक जैसी है लेकिन स्वाद हर एक जगह का अलग। केरल और कर्नाटक में मिलने वाले सांभर का स्वाद रेस्टोरेंट से बहुत ही अलग मिलेगा। तो वहीं सड़क किनारे लगने वाले साउथ इंडियन ठेलों पर सांभर का अलग स्वाद। लगभग 30 से 40 तरीकों से सांभर को बनाया जाता है और इसमें कई तरह की सब्जियों का भी इस्तेमाल किया जाता है। केरल में जाएंगे तो वहां होटलों में छोटी-छोटी बाल्टियों में सांभर लेकर घूमते हुए वेटर्स नज़र आ जाएंगे। तमिलनाडु में जहां सांभर बनाने के लिए सूखे मसाले का इस्तेमाल किया जाता है वहीं कर्नाटक में मसालों का पेस्ट बनाकर डाला जाता है। तमिलनाडु में रसम से पहले सांभर परोसने का रिवाज हो वहीं कर्नाटक में बाद में। तमिलनाडु में सांभर का कुडुल नाम मशहूर है। वैसे एक बात तो है डोसा के साथ हो, इडली या फिर वडे के साथ, सांभर आप कटोरी भर-भर कर पी सकते हैं।
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