इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कॉरपोरेशन तत्काल ही नहीं आगे के दिनों की आरक्षित टिकट बुकिंग के लिए अपने सॉफ्टवेयर को फुल प्रूफ बनाने की हर कोशिश में जुटी है। परंतु हैकर्स कोई न कोई उपाय निकाल कर इसके सॉफ्टवेयर को हैक कर त्वरित गति से तत्काल अथवा आगे के दिनों की टिकट आसानी से बुक कर ले रहे हैं। हाल के दिनों में पकड़े गए दलालों से मिली जानकारी के अनुसार सबसे अधिक रेड मिर्ची नामक साफ्टवेयर से आइआरसीटीसी की वेबसाइट हैक कर टिकट की बुकिंग की जा रही है। नतीजा यह हो रहा है कि आम यात्रियों को आरक्षित टिकट मिल नहीं पा रही है। इतना ही नहीं एक ओर रेलवे आम यात्रियों के लिए शॉर्ट नाम से टिकट बुक नहीं कराने का निर्देश दे रखी है जबकि दलाल आसानी से शार्ट नामों से ही टिकट बुक कर बेच दे रहे हैं। इस संबंध में आरपीएफ इंस्पेक्टर आरआर कश्यप ने बताया कि टिकट दलाल टीम व्यूअर पर जाकर गैरकानूनी तरीके से साफ्टवेयर खरीदते हैं। अभी अधिकांश एजेंट रेड मिर्ची नामक साफ्टवेयर खरीद कर आरक्षित टिकटों की बुकिंग कर रहे हैं। साफ्टवेयर बेचने वाले सारे इंजीनियर बंगलुरु अथवा गुजरात के हैं। सारे साफ्टवेयर इंजीनियर हैं जो किसी न किसी नाम से साफ्टवेयर बनाकर बेचते हैं। अभी रेडमिर्ची और नियो के नाम से साफ्टवेयर बना रहे हैं। पहले इनके द्वारा क्रोशिया, बप्पा, ब्लैक कोबरा, लायन, रेमंड, डबल बुल आदि नाम से साफ्टवेयर का निर्माण किया जा रहा था। हर बार नाम बदल दिया जाता है। इतना ही नहीं एजेंट कई नामों से आइआरसीटीसी में अपना अकाउंट खोलकर आईडी लिए रहते हैं। आज पकड़े गए पटना ट्रैवेल एजेंसी के मालिक सतीश ने 113 नामों से आईडी बना रखा था जिससे टिकट की बुकिंग कर रहा था। एक माह के लिए 20 हजार रुपये देना होता है टिकट दलालों को बंगलुरु के सॉफ्टवेयर इंजीनियरों की कंपनी का मार्केटिंग नेटवर्क इतना तगड़ा है कि वे टिकट दलालों को घर तक साफ्टवेयर पहुंचा देते हैं। पकड़े जाने के भय से कभी भी इसकी सीधे मार्केटिंग नहीं करते हैं। टिकट दलालों को पीक सीजन में एक माह के लिए इस साफ्टवेयर की कीमत 20 हजार रुपये तक देना पड़ता है। अकेले पटना शहर में 200 से अधिक ऐसे टिकट दलाल हैं जो इस तरह के साफ्टवेयर का उपयोग कर गली-मोहल्ले में रेल टिकट बुक कर रहे हैं। टिकट के साथ ही पहचान पत्र भी बनाकर देते हैं एजेंट ट्रैवेल एजेंसियां शॉर्ट नाम से अथवा छोटे-छोटे नामों से लंबी दूरी की आरक्षित टिकटों की बुकिंग करती हैं। समय आने पर जब इसकी बिक्री करते हैं तो चार घंटे के अंदर ही टिकट खरीदने वालों के टिकट पर अंकित नामों से मतदाता पहचान पत्र बनाकर दे देते हैं। पहली नजर में कोई भी टिकट निरीक्षक इस पहचान पत्र को देखकर फर्जी नहीं कह सकता है। इस पर यात्रा करने वाले यात्री की ही तस्वीर लगी होती है। पचास लाख से अधिक की पूंजी निवेश करते हैं एजेंट टिकट दलाल दुर्गापूजा, दीपावली व छठ पूजा के साथ ही होली के लिए चार माह पूर्व से ही टिकटों की बुकिंग करके रखते हैं। इसमें वो पचास लाख रुपये से अधिक तक की राशि निवेश करके रखे रहते हैं।

 बड़ा खुलासा:ऐसे की जाती थी IRCTC की वेबसाइट हैक,जानिए आप

इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कॉरपोरेशन तत्काल ही नहीं आगे के दिनों की आरक्षित टिकट बुकिंग के लिए अपने सॉफ्टवेयर को फुल प्रूफ बनाने की हर कोशिश में जुटी है। परंतु हैकर्स कोई न कोई उपाय निकाल कर इसके सॉफ्टवेयर को हैक कर त्वरित गति से तत्काल अथवा आगे के दिनों की टिकट आसानी से बुक कर ले रहे हैं। इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कॉरपोरेशन तत्काल ही नहीं आगे के दिनों की आरक्षित टिकट बुकिंग के लिए अपने सॉफ्टवेयर को फुल प्रूफ बनाने की हर कोशिश में जुटी है। परंतु हैकर्स कोई न कोई उपाय निकाल कर इसके सॉफ्टवेयर को हैक कर त्वरित गति से तत्काल अथवा आगे के दिनों की टिकट आसानी से बुक कर ले रहे हैं।   हाल के दिनों में पकड़े गए दलालों से मिली जानकारी के अनुसार सबसे अधिक रेड मिर्ची नामक साफ्टवेयर से आइआरसीटीसी की वेबसाइट हैक कर टिकट की बुकिंग की जा रही है। नतीजा यह हो रहा है कि आम यात्रियों को आरक्षित टिकट मिल नहीं पा रही है।   इतना ही नहीं एक ओर रेलवे आम यात्रियों के लिए शॉर्ट नाम से टिकट बुक नहीं कराने का निर्देश दे रखी है जबकि दलाल आसानी से शार्ट नामों से ही टिकट बुक कर बेच दे रहे हैं।    इस संबंध में आरपीएफ इंस्पेक्टर आरआर कश्यप ने बताया कि टिकट दलाल टीम व्यूअर पर जाकर गैरकानूनी तरीके से साफ्टवेयर खरीदते हैं।   अभी अधिकांश एजेंट रेड मिर्ची नामक साफ्टवेयर खरीद कर आरक्षित टिकटों की बुकिंग कर रहे हैं। साफ्टवेयर बेचने वाले सारे इंजीनियर बंगलुरु अथवा गुजरात के हैं। सारे साफ्टवेयर इंजीनियर हैं जो किसी न किसी नाम से साफ्टवेयर बनाकर बेचते हैं।   अभी रेडमिर्ची और नियो के नाम से साफ्टवेयर बना रहे हैं। पहले इनके द्वारा क्रोशिया, बप्पा, ब्लैक कोबरा, लायन, रेमंड, डबल बुल आदि नाम से साफ्टवेयर का निर्माण किया जा रहा था। हर बार नाम बदल दिया जाता है। इतना ही नहीं एजेंट कई नामों से आइआरसीटीसी में अपना अकाउंट खोलकर आईडी लिए रहते हैं। आज पकड़े गए पटना ट्रैवेल एजेंसी के मालिक सतीश ने 113 नामों से आईडी बना रखा था जिससे टिकट की बुकिंग कर रहा था।    एक माह के लिए 20 हजार रुपये देना होता है टिकट दलालों को   बंगलुरु के सॉफ्टवेयर इंजीनियरों की कंपनी का मार्केटिंग नेटवर्क इतना तगड़ा है कि वे टिकट दलालों को घर तक साफ्टवेयर पहुंचा देते हैं। पकड़े जाने के भय से कभी भी इसकी सीधे मार्केटिंग नहीं करते हैं। टिकट दलालों को पीक सीजन में एक माह के लिए इस साफ्टवेयर की कीमत 20 हजार रुपये तक देना पड़ता है।   अकेले पटना शहर में 200 से अधिक ऐसे टिकट दलाल हैं जो इस तरह के साफ्टवेयर का उपयोग कर गली-मोहल्ले में रेल टिकट बुक कर रहे हैं।     टिकट के साथ ही पहचान पत्र भी बनाकर देते हैं एजेंट   ट्रैवेल एजेंसियां शॉर्ट नाम से अथवा छोटे-छोटे नामों से लंबी दूरी की आरक्षित टिकटों की बुकिंग करती हैं। समय आने पर जब इसकी बिक्री करते हैं तो चार घंटे के अंदर ही टिकट खरीदने वालों के टिकट पर अंकित नामों से मतदाता पहचान पत्र बनाकर दे देते हैं। पहली नजर में कोई भी टिकट निरीक्षक इस पहचान पत्र को देखकर फर्जी नहीं कह सकता है। इस पर यात्रा करने वाले यात्री की ही तस्वीर लगी होती है।    पचास लाख से अधिक की पूंजी निवेश करते हैं एजेंट   टिकट दलाल दुर्गापूजा, दीपावली व छठ पूजा के साथ ही होली के लिए चार माह पूर्व से ही टिकटों की बुकिंग करके रखते हैं। इसमें वो पचास लाख रुपये से अधिक तक की राशि निवेश करके रखे रहते हैं।

हाल के दिनों में पकड़े गए दलालों से मिली जानकारी के अनुसार सबसे अधिक रेड मिर्ची नामक साफ्टवेयर से आइआरसीटीसी की वेबसाइट हैक कर टिकट की बुकिंग की जा रही है। नतीजा यह हो रहा है कि आम यात्रियों को आरक्षित टिकट मिल नहीं पा रही है। 

इतना ही नहीं एक ओर रेलवे आम यात्रियों के लिए शॉर्ट नाम से टिकट बुक नहीं कराने का निर्देश दे रखी है जबकि दलाल आसानी से शार्ट नामों से ही टिकट बुक कर बेच दे रहे हैं।  

इस संबंध में आरपीएफ इंस्पेक्टर आरआर कश्यप ने बताया कि टिकट दलाल टीम व्यूअर पर जाकर गैरकानूनी तरीके से साफ्टवेयर खरीदते हैं। 

अभी अधिकांश एजेंट रेड मिर्ची नामक साफ्टवेयर खरीद कर आरक्षित टिकटों की बुकिंग कर रहे हैं। साफ्टवेयर बेचने वाले सारे इंजीनियर बंगलुरु अथवा गुजरात के हैं। सारे साफ्टवेयर इंजीनियर हैं जो किसी न किसी नाम से साफ्टवेयर बनाकर बेचते हैं। 

अभी रेडमिर्ची और नियो के नाम से साफ्टवेयर बना रहे हैं। पहले इनके द्वारा क्रोशिया, बप्पा, ब्लैक कोबरा, लायन, रेमंड, डबल बुल आदि नाम से साफ्टवेयर का निर्माण किया जा रहा था। हर बार नाम बदल दिया जाता है। इतना ही नहीं एजेंट कई नामों से आइआरसीटीसी में अपना अकाउंट खोलकर आईडी लिए रहते हैं। आज पकड़े गए पटना ट्रैवेल एजेंसी के मालिक सतीश ने 113 नामों से आईडी बना रखा था जिससे टिकट की बुकिंग कर रहा था।  

एक माह के लिए 20 हजार रुपये देना होता है टिकट दलालों को 

बंगलुरु के सॉफ्टवेयर इंजीनियरों की कंपनी का मार्केटिंग नेटवर्क इतना तगड़ा है कि वे टिकट दलालों को घर तक साफ्टवेयर पहुंचा देते हैं। पकड़े जाने के भय से कभी भी इसकी सीधे मार्केटिंग नहीं करते हैं। टिकट दलालों को पीक सीजन में एक माह के लिए इस साफ्टवेयर की कीमत 20 हजार रुपये तक देना पड़ता है। 

अकेले पटना शहर में 200 से अधिक ऐसे टिकट दलाल हैं जो इस तरह के साफ्टवेयर का उपयोग कर गली-मोहल्ले में रेल टिकट बुक कर रहे हैं।   

टिकट के साथ ही पहचान पत्र भी बनाकर देते हैं एजेंट 

ट्रैवेल एजेंसियां शॉर्ट नाम से अथवा छोटे-छोटे नामों से लंबी दूरी की आरक्षित टिकटों की बुकिंग करती हैं। समय आने पर जब इसकी बिक्री करते हैं तो चार घंटे के अंदर ही टिकट खरीदने वालों के टिकट पर अंकित नामों से मतदाता पहचान पत्र बनाकर दे देते हैं। पहली नजर में कोई भी टिकट निरीक्षक इस पहचान पत्र को देखकर फर्जी नहीं कह सकता है। इस पर यात्रा करने वाले यात्री की ही तस्वीर लगी होती है।  

पचास लाख से अधिक की पूंजी निवेश करते हैं एजेंट 

टिकट दलाल दुर्गापूजा, दीपावली व छठ पूजा के साथ ही होली के लिए चार माह पूर्व से ही टिकटों की बुकिंग करके रखते हैं। इसमें वो पचास लाख रुपये से अधिक तक की राशि निवेश करके रखे रहते हैं। 

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