दलित अत्याचार रोकथाम कानून (SC/ST एक्ट) को कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद आज संसद में पेश किया जाएगा. बुधवार को मूल प्रावधानों को बहाल करने से जुड़े बिल को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को अपने फैसले में अनुसूचित जाति-जनजाति उत्पीड़न निरोधक कानून (SC/ST एक्ट) के तहत आरोपी की तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी. इसे लेकर देश भर के तमाम दलित संगठनों और नेताओं में नाराज़गी थी और उन्होंने 9 अगस्त को इसके खिलाफ ‘भारत बंद’ का आह्वान किया था. लेकिन अब सरकार ने मूल प्रावधानों को बहाल करने से जुड़े बिल को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी है.
संशोधित बिल की कॉपी न्यूज़ 18 के पास मौजूद है. इस बिल के तहत सेक्शन 18A के तहत FIR दर्ज करने से पहले जांच की कोई जरुरत नहीं होगी. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट पर अपने 20 मार्च के फैसले को सही ठहराते हुए कहा था कि संसद भी बिना उचित प्रक्रिया के किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने की अनुमति नहीं दे सकती.कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा था कि सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी सिर्फ सक्षम अथॉरिटी की इजाजत के बाद ही हो सकती है. जो लोग सरकारी कर्मचारी नहीं है, उनकी गिरफ्तारी एसएसपी की इजाजत से हो सकेगी. हालांकि, कोर्ट ने यह साफ किया गया है कि गिरफ्तारी की इजाजत लेने के लिए उसकी वजहों को रिकॉर्ड पर रखना होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि ऐसे मामलों में निर्दोष लोगों को बचाने के लिए कोई भी शिकायत मिलने पर तुरंत मुकदमा दर्ज नहीं किया जाएगा. सबसे पहले शिकायत की जांच डीएसपी लेवल के पुलिस अफसर द्वारा शुरुआती जांच की जाएगी. यह जांच समयबद्ध होनी चाहिए. जांच किसी भी सूरत में 7 दिन से ज्यादा समय तक न हो. डीएसपी शुरुआती जांच कर नतीजा निकालेंगे कि शिकायत के मुताबिक क्या कोई मामला बनता है या फिर तरीके से झूठे आरोप लगाकर फंसाया जा रहा है? विधेयक के मुताबिक, प्रारंभिक जांच करने के लिए कोई प्रावधान जांच में देरी करेगा और इस प्रकार आरोपपत्र दाखिल होने में भी देरी होगी.