जीएसटी ने अप्रत्यक्ष कर लगाने के वित्त मंत्री के अधिकार को काफी सीमित कर दिया है. बजट में सरकार चाहे तो सिर्फ जीएसटी के दायरे से बाहर पेट्रोलियम और एल्कोहल पर इनडायरेक्ट टैक्स बढ़ा या घटा सकती है. बिजली भी जीएसटी के दायरे से बाहर है, लेकिन केंद्र सरकार इस पर टैक्स नहीं लगा सकती.
असल में जीएसटी ने बजट पेश करने के तरीके में काफी बदलाव कर दिया है. इससे वित्त मंत्री के टैक्स लगाने के अधिकार काफी सीमित हो गए हैं. इससे पहले वित्त मंत्री अप्रत्यक्ष कर लगा सकते थे, जो लोगों के दैनिक जीवन पर असर डालता है. लेकिन इस बार जब अरुण जेटली, मोदी सरकार का अंतिम बजट पेश करेंगे तो वह ज्यादातर वस्तुओं पर अप्रत्यक्ष कर के बारे में कोई घोषणा नहीं कर पाएंगे, क्योंकि इन सबको जीएसटी में समाहित कर लिया गया है.
पहले आबकारी, बिक्री कर, सेवा कर के तहत आने वाली लगभग सभी वस्तुएं अब जीएसटी के दायरे में आ चुकी हैं. इनके रेट में बदलाव अब सिर्फ जीएसटी कौंसिल के द्वारा हो सकता है. हालांकि अब भी तीन सेट की वस्तुएं ऐसी हैं, जो जीएसटी के दायरे से बाहर हैं.
अल्कोहल
जीएसटी कौंसिल में इस बात पर आमराय नहीं बन पाई थी कि अल्कोहल को जीएसटी के दायरे में लाया जाए या नहीं. इसलिए 1 फरवरी को पेश होने वाले 2018-19 के बजट में वित्त मंत्री इसके टैक्स प्रस्तावों पर कोई घोषणा कर सकते हैं.
पेट्रोलियम
पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है. इसलिए इस बात के आसार हैं कि कच्चे तेल, पेट्रोल, हाईस्पीड डीजल, नेचुरल गैस, एटीएफ जैसे पेट्रोलियम पदार्थों के बारे में बजट में कोई घोषणा हो. हालांकि, पेट्रोल एवं डीजल की पहले से ही ऊंची कीमतों और अगले साल आम चुनाव को देखते हुए ईंधन पर टैक्स बढ़ाने के आसार कम ही हैं, इसलिए वित्त मंत्री दूसरे पेट्रोलियम पदार्थों पर टैक्स बढ़ा सकते हैं.
बिजली
बिजली को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है. इसके बावजूद वित्त मंत्री इस पर टैक्स नहीं लगा सकते. बिजली को संविधान की समवर्ती सूची में रखा गया है, लेकिन इस पर टैक्स लगाने का अधिकार राज्यों को दिया गया है. बिजली आपूर्ति पर टैक्स लगाने का अधिकार राज्य सरकारों को है.
इस तरह इस बार बजट में वित्त मंत्री के पास अप्रत्यक्ष कर लगाने के लिए सिर्फ दो श्रेणियां बची हैं. बाकी सभी वस्तुओं पर जीएसटी लगाया जाता है, जो उत्पादन से लेकर अंतिम उपभोग तक कई चरणों में लगता है.