अक्षय कुमार की फिल्म पैड मैन इन दिनों चर्चा में है। ऐसे में केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) के वैज्ञानिक भी खासे उत्साही हैं।
सीमैप के वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि उनके संस्थान में विकसित लो कॉस्ट ईको फ्रेंडली सेनेटेरी नेपकिन की टेक्नोलॉजी को भी अच्छी किक मिल सकती है। अरुणाचलम मुरुगनंतम की रियल स्टोरी पर आधारित पैड मैन मूवी से समाज में वीमेन हाईजीन को जहां एक नई सोच मिलेगी, वहीं जागरूकता बढऩे से इसका बाजार बढऩे की भी उम्मीद है। ऐसे में सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एसोमेटिक प्लांटस (सीमैप) की विकसित की गई टेक्नोलॉजी को भी नए दावेदार मिलने की संभावना जोर पकड़ रही है।
वर्तमान में भारत में सेनेटरी नेपकिन का लगभग 1350 करोड़ का बाजार है, जिस पर करीब आधा दर्जन बड़ी कंपनियों का कब्जा है। इसमें हर साल 24 फीसद की वृद्धि हो रही है। बाजार में उपलब्ध एक नेपकिन की कीमत तीन से सात रुपये तक है, जबकि सीमैप द्वारा विकसित नेपकिन की कीमत दो से सवा दो रुपये पड़ती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि स्वरोजगार के इच्छुक युवा ‘पैड मैन’ बनकर ऊंची उड़ान तय कर सकते हैं।
अरुणाचलम मुरुगनंतम से मिली प्रेरणा
सीमैप द्वारा सेनेटरी नेपकिन तैयार करने के लिए मशीन अरुणाचलम मुरुगनंतम से ही ली थी। हालांकि नेपकिन तैयार करने की टेक्नोलॉजी सीमैप के वैज्ञानिकों ने तैयार की है। सीमैप के डॉ. दिनेश ने बताया कि इस मशीन से बड़े पैमाने पर नेपकिन तैयार करना संभव नहीं है। ऐसे में बाजार में अब व्यावसायिक उत्पादन के लिए कई तरह की मशीनें उपलब्ध हैं।
कम आय वालों के लिए बेहद कारगर
निदेशक सीमैप, डॉ.अनिल कुमार त्रिपाठी ने बताया कि हमारे संस्थान की नेपकिन खासतौर पर उन लोगों के लिए बहुत कारगर है जिनकी आय कम है। सरकार का कोई उपक्रम यदि इन नेपकिन का निर्माण करना चाहे तो सीमैप टेक्नोलॉजी निश्शुल्क देने को तैयार है।
कारण यह है कि यह मसला महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ा है। आनंदमयी मां द्वारा गोद लिए गए गांवों में भी इस टेक्नोलॉजी से नेपकिन तैयार करने के लिए एमओयू किया जा चुका है। इसके लिए टेक्नोलॉजी को और अपग्रेड किया जा रहा है, जिससे यह सौ फीसद बायोडिग्रेडेबिल हो जाए। अभी नेपकिन 92-93 फीसद बायोडिग्रेडेबिल हैं।