आर्मी ने रक्षा मंत्रालय को 400 हॉवित्जर तोप खरीदने का प्रस्ताव भेजा है। इस पर 6 हजार 500 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। पूरी तरह से स्वदेशी इन तोपों का निर्माण डिफेंस रिसर्च एंड डेवलेपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (DRDO) ने किया है।
सेना से जुड़े एक सीनियर अफसर ने न्यूज एजेंसी ANI को बताया कि, सरकार जल्द ही एक हाई लेवल बुलाने वाली है, जिसमें हॉवित्जर तोपों की खरीदी पर फैसला लिया जाएगा। यह तोप पुरानी तोपों से काफी हल्की है।
इस तोप से दागे जाने वाले गोलों की रेंज 48 किलोमीटर है, जबकि उसी गोले को बोफोर्स तोप 32 किलोमीटर दूर तक दाग सकती है। ये 155 MM की कैटेगरी में दुनिया में सबसे ज्यादा दूरी तक गोले दागने में सक्षम है। यह तोप -30 डिग्री सेल्सियस से लेकर 75 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर सटीक फायर कर सकती है।
इसकी 26.44 फुट लंबी बैरल से हर मिनट 5 गोले दागे जा सकते हैं। इसमें आटोमैटिक राइफल की तरह सेल्फ लोडेड सिस्टम भी है। इस तोप से निशाना लगाने के लिए थर्मल साइट सिस्टम लगा है। मतलब रात में भी इससे सटीक निशाना लगाया जा सकता है। इसके अलावा इसमें वायरलेस कम्युनिकेशन सिस्टम भी मौजूद है।
हॉवित्जर को ATAGS भी कहा जाता है
जैसा कि इसके नाम Advanced Towed Artillery Gun System से जाहिर है कि यह टोव्ड गन यानी ऐसी तोप है जिसे ट्रक से खींचा जाता है। हालांकि यह गोला दागने के बाद बोफोर्स की तरह कुछ दूर खुद ही जा सकती है। इस तोप का कैलिबर 155MM है। मतलब यह कि इस आधुनिक तोप से 155MM वाले गोले दागे जा सकते हैं।
ATAGS को हॉवित्जर भी कहा जाता है। हॉवित्जर यानी छोटी तोपें। दरअसल, दूसरे विश्व युद्ध और उसके बाद तक युद्ध में बहुत बड़ी और भारी तोपों को इस्तेमाल होता था। इन्हें लंबी दूरी तक ले जाने और ऊंचाई पर तैनात करने में काफी मुश्किलें होती थीं। ऐसे में हल्की और छोटी तोप बनाई गईं, जिन्हें हॉवित्जर कहा गया।
इसे देशी बोफोर्स क्यों कहा जा रहा है?
ये तोप DRDO की पुणे स्थित लैब ARDE ने भारत फोर्ज लिमिटेड, महिंद्रा डिफेंस नेवल सिस्टम, टाटा पॉवर स्ट्रैटेजिक और ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड ने डेवलप किया है। 2013 में इसके डेवलपमेंट का काम शुरू हुआ था और पहला कामयाब टेस्ट 14 जुलाई 2016 में किया गया। इस तोप का इस्तेमाल और खासियत काफी कुछ बोफोर्स तोप से मिलती-जुलती हैं, इसलिए इसे देशी बोफोर्स भी कहा जाता है।
सेना ने ATAGS के वजन में कमी करवाई थी, क्यों?
2018 में रक्षा अधिग्रहण परिषद ने 3,365 करोड़ की अनुमानित लागत पर 150 ATAGS तोपों की खरीद के लिए मंजूरी दी थी। सेना को इस कैटेगरी में 1,580 आर्टिलरी गन की जरूरत थी। सेना ने अपनी आवश्यकताओं की तुलना में अधिक वजन के मुद्दे को लेकर आपत्ति जताई थी। सेना चाहती थी कि ATAGS का वजन लगभग 18 टन हो, ताकि इसे पहाड़ों में ले जाया जा सके। इस पर बाद में काम किया गया और सेना की मांग को पूरा किया गया।
ATAGS तोप ऑटोमैटिक मोड फायरिंग और वायरलेस कम्युनिकेशन के अलावा हाई एंगल पर सबसे छोटे मिनिमम डिस्टेंस और रेगिस्तान व पहाड़ी इलाकों में जबर्दस्त प्रदर्शन करने में सक्षम है। ATAGS को सभी इलेक्ट्रॉनिक ड्राइव और पूरी तरह से ऑटोमैटिक बारूद हैंडलिंग सिस्टम के साथ सभी तरह के गोला बारूद को आग लगाने के लिए डिजाइन किया गया है।