42 मुक्ति महालिंगों ने बनाया काशी को मोक्षदायिनी नगरी

मोक्ष की प्राप्ति के लिए हर शख्स काशी नगरी आना चाहता है। मान्यता है कि काशीपुराधिपति अपने भक्तों के कान में तारक मंत्र देकर सायुज्य प्रदान करते हैं। काशी में संसार के 42 मुक्ति महाशिवलिंग शिवभक्तों के लिए मुक्ति का मार्ग भी खोलते हैं।

शिव की नगरी काशी…। दुनिया का इकलौता शहर जहां लोग मोक्ष की कामना से आते हैं। उत्तरवाहिनी गंगा के तट पर विराजमान काशीपुराधिपति अपने भक्तों के कान में राम नाम का तारक मंत्र देकर शिव सायुज्य प्रदान करते हैं। मोक्षदायिनी नगरी काशी में संसार के स्वयंभू 42 मुक्ति महालिंग शिवभक्तों के लिए मुक्ति का मार्ग खोलते हैं और कलिकाल के समस्त पापों को भी हर लेते हैं।

काशी खंड के स्कंद पुराण के अनुसार भगवान शिव ने मां पार्वती से काशी के मुक्ति महालिंगों के बारे में बताया है। स्कंद पुराण में वर्णित है कि इन मुक्ति महालिंगों के कारण ही काशी मुक्तिपुरी के नाम से प्रसिद्ध हुई है। काशी में सहस्त्रों शिवलिंग विराजमान हैं।

कोई स्वयंभू है तो किसी को देवता ने, ऋषि ने, किसी को यक्ष तो किसी को राक्षसों और मनुष्यों ने स्थापित किया है। काशी करवत मंदिर के महेश उपाध्याय का कहना है कि गंगा जल में साठ करोड़ सिद्धलिंग हैं जो कलयुग में अदृश्य हैं।

बीएचयू के धर्म विज्ञान संकाय के प्रो. माधव जनार्दन रटाटे का कहना है कि मोक्ष के मूल में सर्वप्रथम 14 महालिंग हैं। इसमें सर्वप्रथम ओंकारेश्वर महादेव हैं। इसके बाद त्रिलोचन महादेव, महादेव, कृतिवासेश्वर, रत्नेश्वर, चंद्रेश्वर, केदारेश्वर, धर्मेश्वर, वीरेश्वर, कामेश्वर, विश्वकर्मेश्वर, मणिकर्णिकेश्वर, अविमुक्तेश्वर और 14वें नंबर पर विश्वेश्वर महालिंग विराजमान हैं। यह सभी 14 महालिंग मोक्षश्री की जड़ हैं। इन्हीं के स्थान को मुक्तिक्षेत्र कहा गया है। आनंदवन में यह 14 महालिंग भक्तों को मुक्ति प्रदान करते हें।

मोक्ष देने के साथ ही करते हैं पापों का नाश
केंद्रीय ब्राह्मण महासभा के प्रदेश अध्यक्ष शर्मा का कहना है कि इसके बाद 14 महालिंग अमृतेश्वर, तारकेश्वर, ज्ञानेश्वर, करुणेश्वर, मोक्षद्वारेश्वर, स्वर्गद्वारेश्वर, ब्रह्मेश्वर, लांगलीश्वर, वृद्धकालेश्वर, वृषेश्वर, चंडीश्वर, नन्दिकेश्वर, महेश्वर और ज्योतीरूपेश्वर के हैं। इनके नाम लेने मात्र से कलिकलुष का नाश होता है।

इन 14 महालिंगों के पूजन से भक्त को दोबारा जन्म लेकर संसार की यात्रा में लौटना नहीं पड़ता है। मंगला गौरी मंदिर के महंत नरेंद्र पांडेय ने बताया कि इन 28 महालिंगों के बाद बाकी 14 महालिंगों के दर्शन-पूजन से भक्त आजन्म पाप रहित हो जाता है।

इसमें शैलेश्वर, संगमेश्वर, स्वर्लीनेश्वर, मध्यमेश्वर, हिरण्यगर्भेश्वर, ईशानेश्वर, गोप्रेक्षेश्वर, वृषभध्वजेश्वर, उपशान्त शिव, ज्येष्ठेश्वर, निवासेश्वर, शुक्रेश्वर, व्याघ्रेश्वर और जंबुकेश्वर हैं। ये चौदहों महायतन हैं और मनुष्य को मोक्ष प्रदान करते हैं।

सावन में गूंजी चैती चैत मासे बोले रे कोयलिया
दीनदयाल हस्तकला संकुल में शनिवार को सांस्कृतिक संध्या में अलंकृता राय का गायन हुआ। अलंकृता ने चैती, कजरी के साथ ही शास्त्रीय गायन की बंदिशों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। अलंकृता ने गायन की शुरुआत राग मयन में ऐसो सुंदर सुघड़वा बालमवा…से की।

दूसरी प्रस्तुति में कबीर भजन साधो गगन घटा गहराई…पेश किया। इसके बाद चैती चैत मासे बोले रे कोयलिया और कजरी बरसन लागी बदरिया… के बाद अंतिम प्रस्तुति राम भजन से समापन किया। समन्वय डॉ. रत्नेश वर्मा ने किया। इस दौरान सह गायन में वसुधा दीक्षित, भूमिका रक्षित, प्रियांशु दास, अभिजित चक्रवर्ती के द्वारा समूह गायन की प्रस्तुति हुई।

तबले पर अशेष नारायण मिश्रा और हारमोनियम पर अंकित कुमार ने संगत की। संचालन अंजना झा ने किया। दीनदयाल हस्तकला संकुल परिवार की ओर से अजय श्रीवास्तव ने दीप प्रज्ज्वलन कर किया। कलाकारों का स्वागत गोपेश मौर्य ने किया गया।

कैलाश मानसरोवर की मुक्ति को काशी से निकाली वैद्यनाथधाम की यात्रा
भारत तिब्बत मैत्री संघ की ओर से शनिवार को छित्तूपुर बीएचूय के सरस्वती नगर स्थित वृंदावन में कैलाश मानसरोवर मुक्ति यात्रा की मांग की गई। गोष्ठी में वक्ताओं ने चीन के चंगुल से पवित्र कैलाश मानसरोवर को मुक्त कराने की मांग की।

तिब्बत देश पत्रिका के संपादक प्रो. श्यामनाथ मिश्र ने कहा कि चीन सरकार के कठोर नियमों के कारण कैलाश मानसरोवर की यात्रा कठिन हो गई है। वहां की सरकार ने इसे आर्थिक कमाई का साधन बना लिया है। मुक्ति यात्रा के संयोजक डॉ. अंजनी कुमार मिश्र की अगुवाई में काशी से देवघर बैद्यनाथ धाम तक की यात्रा निकाली गई।

भक्तों ने विश्वनाथ धाम में दर्शन-पूजन के बाद पैदल यात्रा शुरू की। यात्रा 5 अगस्त को वहां पहुंचेगी। गोष्ठी में विजय शंकर त्रिपाठी, डॉ. विनोद कुमार चतुर्वेदी, प्रकाश पांडेय, आशुतोष कुमार पांडेय, सच्चिदानंद त्रिपाठी, अनिरुद्ध पांडेय आदि रहे।

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