उत्तरकाशी के रैथल क्यारक गांव के बीच स्थित एक हजार वर्ष पुराना सूर्य मंदिर समूह पुरातत्व और संस्कृति विभाग की अनदेखी के चलते अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है। राज्य सरकार की अनदेखी के कारण अब यहां पर मात्र दो ही मंदिर बचे हैं, जो जर्जर हो चुके हैं।
सूर्य मंदिर समूह में जागेश्वर धाम की तरह मंदिर पत्थरों से बने हैं। इसके साथ ही यहां पर पत्थरों पर अंकित कई शिलालेख हैं, लेकिन आज राज्य सरकार की अनदेखी के कारण यह सुंदर संस्कृति दम तोड़ रही है। स्थानीय लोग का कहना है कि तीन दशक पूर्व यहां पर 12 से 15 मंदिर थे। इनके अंदर पत्थर पर उकेरी गई मूर्तियां रखी गई थी। इसके साथ ही यहां पर पत्थरों पर विभिन्न लिपियों में लिखे शिलालेख भी थे, जिनका आज कुुछ पता नहीं है।
वर्ष 1991 के भूकंप में कुछ मंदिर क्षतिग्रस्त हो गए थे। क्यारक गांव के विपिन राणा का कहना है कि पुरातत्व और संस्कृति विभाग की अनदेखी के कारण यह सब विलुप्ति के कगार पर है। उन्होंने राज्य सरकार से मंदिर समूह के संरक्षण की मांग की है।
रैथल निवासी पंकज कुशवाह का कहना है कि पहले ग्रामीण इसे देवी का मंदिर समझकर पूजते थे। वर्ष 1995-96 में पुरातत्व विभाग ने यहां पहुंचकर शोध किया कि यह देवी का नहीं बल्कि सूर्य मंदिर है। उसके बाद पुरातत्व विभाग ने इसे राज्य सरकार के संरक्षण में सौंप दिया। यहां पर पुरातत्व विभाग और संस्कृति विभाग के बोर्ड भी अब लगभग मिट चुके हैं।
मंदिर के इतिहास की कोई लिखित जानकारी नहीं है, लेकिन कहते हैं कि तिब्बत राज्य के समय जब यहां से आवाजाही होती थी तो उस समय किसी सूर्यवंशी राजा ने इसका निर्माण करवाया था।
इसकी जानकारी नहीं है, जानकारी प्राप्त करने के बाद ही इसके बारे में बताया जा सकेगा।
- बीना भट्ट, निदेशक संस्कृति विभाग।
रैथल क्यारक स्थित सूर्य मंदिर सर्वेक्षण करने के बाद इसे राज्य सरकार के संरक्षण में सौंप दिया गया था। अब राज्य सरकार का संस्कृति विभाग ही इसके बारे में कुछ बता सकता है।
- मनोज सक्सेना, अधीक्षक पुरातत्वविद पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग देहरादून।