यह चार विधायक है गणेश जोशी, उमेश शर्मा, खजान दास और हरबंश कपूर । पहाड़ के 35 विधायकों पर राजधानी के चार विधायक भारी पड़ गए। 35 विधायक होने के बावजूद कई वर्षों में पहाड़ के एक भी गांव के विस्थापन और पुनर्वास की फाइल शासन में आगे नहीं बढ़ पाई। जबकि राजधानी के केवल चार विधायकों ने ऐसा दबाव बनाया कि सरकार को अवैध मलिन बस्तियों को बचाने के लिए अध्यादेश तक लाना पड़ गया।
पहाड़ के करीब 350 गांव पिछले काफी समय से आपदा की जद में हैं। खुद सरकारी विभागों के सर्वे में इन गांवों को अति संवेदनशील और रहने के लिए असुरक्षित माना गया है। उसके बावजूद इन गांवों के विस्थापन की कोई ठोस
योजना नहीं बन पाई है। औपचारिकता निभाने के लिए प्रस्ताव तैयार किए गए, लेकिन उसे आगे बढ़ाने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए।
नीति आयोग की बैठक में पिछले कई वर्षों से गांवों के पुनर्वास का मुद्दा उठाया जा रहा है। राज्य सरकार का तर्क है कि पुनर्वास और विस्थापन के लिए करीब 10 हजार करोड़ के पैकेज की जरूरत है। राज्य सरकार अपनी कमजोर
आर्थिक स्थिति और जमीन की कमी का बहाना बनाते हुए इससे बचती रही। पिछले कुछ सालों के दौरान इन गांवों की संख्या बढ़कर 400 से अधिक हो गई है।
मलिन बस्तियों पर सरकार मेहरबान
सरकार चाहे कोई भी रही हो वह वोट बैंक के चलते मलिन बस्तियों पर मेहरबान रही है। पिछली हरीश रावत सरकार के समय अवैध रूप से सरकारी जमीनों पर बसी इन बस्तियों को नियमित करने का फैसला लिया गया।
नियमितीकरण की कार्रवाई भी शुरू हो गई। वहीं, मौजूदा सरकार ने एक कदम आगे बढ़ते हुए कोर्ट के आदेश के बावजूद इन पर कार्रवाई नहीं की। खुद सरकार के चार विधायक गणेश जोशी, उमेश शर्मा, खजान दास और हरबंश
कपूर हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ कूद पड़े और सरकार पर अध्यादेश लाने के लिए दबाव बनाया। चार दिन में ही सरकार ने अतिक्रमणकारियों के सामने घुटने टेक दिए और कैबिनेट में अध्यादेश ले आई। जबकि इससे पहले
राजधानी में हजारों लोगों के अतिक्रमण तोड़े जा चुके हैं।
आपदा प्रभावित गांवों के विस्थापन का मामला बिल्कुल अलग है। वहां केवल परिवार नहीं बल्कि पशु, खेत व अन्य संपत्तियों का भी सवाल है। मलिन बस्तियों को हटाने के मामले में सरकार योजना बना रही है। प्रधानमंत्री आवास
योजना के तहत उन सबको आवास में शिफ्ट किया जाएगा। इसके अलावा लैंड बैंक बनाकर अन्य जगहों पर भी उनके लिए आवास बनाए जाएंगे।
-त्रिवेंद्र सिंह रावत, मुख्यमंत्री, उत्तराखंड
पहाड़ के सभी संवेदनशील व असुरक्षित गांवों के विस्थापन और पुनर्वास के लिए केंद्र के सहयोग से योजना बनाई जा रही है। राजस्व विभाग के पास सात लाख हेक्टेयर भूमि है। इस पर लोगों को विस्थापित किया जा सकता है। पर्वतीय
क्षेत्रों के लोगों को उनकी मौजूदा बसावट के आस-पास ही बसाने की योजना है।