अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में मोदी और शाह की बीजेपी से मुकाबले के लिए बड़ा और मजबूत गठबंधन बनाने की कांग्रेस की कोशिशों को झटका लगता दिख रहा है। चुनाव के लिहाज से सबसे अहम माने जाने वाले उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने 2019 में कांग्रेस के साथ गठबंधन न करने के साफ संकेत दिए हैं। उधर पश्चिम बंगाल में ममता के साथ पार्टी के संबंध कुछ खास अच्छे नहीं हैं, सोनिया के अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद लेफ्ट पार्टियां भी कांग्रेस से दूर नजर आ रही हैं, बिहार में लालू यादव के जेल जाने के बाद आरजेडी में अनिश्चितता का दौर है। ऐसे में 2019 में बीजेपी से मुकाबले के लिए ‘विपक्षी एकता’ दूर की कौड़ी नजर आ रही है। 
बताया जा रहा है कि समाजवादी पार्टी यूपी की सभी 80 लोकसभा सीटों के लिए उम्मीवारों के चुनाव के काम में जुट गई है। हालांकि वह यूपी में ऐंटी-बीजेपी गठबंधन बनाने के विकल्प खुले रखेगी। मामले के जानकार सूत्रों ने बताया कि पार्टी प्रमुख और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने हाल में पार्टी के पदाधिकारियों और विधायकों के साथ कई बैठकें की थीं। उन्होंने बताया कि पार्टी के सामने यह दिक्कत है कि अगर वह विपक्षी दलों का गठबंधन बनाने पर फोकस करती है तो जमीनी स्तर पर पार्टी का सांगठनिक आधार कमजोर होगा।
एक सूत्र ने पहचान जाहिर नहीं करने की शर्त पर बताया, ‘वह (अखिलेश) शायद उन विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी का असल सांगठनिक आधार जानना चाहते हैं, जहां 2017 के विधानसभा चुनाव में एसपी के साथ गठबंधन के तहत कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार उतारे थे। वह उन विधानसभा क्षेत्रों से जुड़े पार्टी के नेताओं से फीडबैक ले रहे हैं, जहां की सीट उन्होंने कांग्रेस के लिए छोड़ी थी।’ सूत्र ने बताया कि एसपी लीडरशिप ने इन विधानसभा क्षेत्रों के कार्यकर्ताओं से लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट जाने के लिए कहा है। सूत्र के मुताबिक, एसपी फिलहाल ऐसा कोई खुल्लमखुल्ला संदेश नहीं देना चाहती कि वह लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दलों का गठबंधन नहीं चाहती।
अन्य राज्यों की बात की जाए तो बिहार में सत्ता से बाहर होने और लालू प्रसाद यादव के जेल जाने के बाद से कांग्रेस की सहयोगी आरजेडी के लिए सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। हालांकि तेजस्वी यादव भी लगातार विपक्षी एकता की बात करते हैं, लेकिन अपने पिता की गैरमौजूदगी में वह जमीन पर कितना असर छोड़ेंगे, यह वक्त में गर्भ में छिपा है। पश्चिम बंगाल में जहां ममता बनर्जी की तृणमूल से कांग्रेस के संबंध ज्यादा बेहतर नहीं हैं, वहीं लेफ्ट पार्टियां भी कांग्रेस से दूर होती नजर आ रही हैं। उधर तमिलनाडु में करुणानिधि की बढ़ती उम्र और लगातार बदल रही राजनीतिक घटनाक्रमों के बीच अभी सियासी तस्वीर पूरी तरह साफ नहीं है। जाहिर है, कांग्रेस के लिए 2019 में वह छाता तैयार करना काफी मुश्किल होगा जिसके नीचे सभी विपक्षी दल एक साथ खड़े हो सकें
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