भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के बैनर तले ट्रैक्टर-ट्रॉली, टाटा-407 समेत अन्य वाहनों से लैस किसानों का आधी रात को हुआ समझौता कई सवाल पैदा कर रहा है। इस आंदोलन से किसानों को क्या मिला? यह भी समझ से परे है। लेकिन सबसे बड़ा राज तो यह है कि आखिर 2 अक्टूबर की रात को ऐसा क्या हुआ कि पुलिस-किसान दोनों 'दोस्त' बन गए और किसानों को दिल्ली में दाखिल होने की इजाजत मिल गई। अब धीरे-धीरे इस समझौते की परतें खुल रही हैं। बताया जा रहा है कि उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश से आए हजारों किसानों की मांग सुनने के लिए कोई नेता आगे नहीं आ रहा था। हालांकि, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने किसान नेताओं से जरूर बात की, लेकिन कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला। इसके बाद किसान नेताओं के सामने किसान क्रांति पदयात्रा की सार्थकता का सवाल पैदा हो गया। सवाल यह भी था किसान क्रांति पदयात्रा दिल्ली के राजघाट तक नहीं पहुंची तो वे अपने समर्थकों को क्या मुंह दिखाएंगे, क्योंकि किसान नेताओं ने पदयात्रा राजघाट पर जाकर समाप्त करने का एलान किया था। दुष्कर्म की सनसनीखेज घटना, युवती ने दूसरी युवती को बनाया 'हवस' का शिकार यह भी पढ़ें सूत्रों के मुताबिक, 2 अक्टूबर को किसान सुबह से लेकर शाम तक पुलिस से भिड़ते रहे। इस दौरान हालात बिगड़ने पर पुलिस ने लाठी चार्ज भी किया, जिसमें 40 किसान और दर्जन भर पुलिसवाले घायल हुए। लेकिन जैसे-जैसे शाम से रात हुई और रात बीतने लगी किसान नेताओं की बेचैनी भी बढ़ी। इस दौरान किसान नेताओं को यह अहसास हो चला था कि पुलिस बल उन्हें दिल्ली में नहीं घुसने देगा। इस तरह हुआ किसान-पुलिस में समझौता सूत्रों के मुताबिक, पुलिस के आला अधिकारी और किसान नेता दोनों ही चाह रहे थे कि मामला जल्द खत्म हो। ऐसे में एक फॉर्मूला पेश किया गया। इस फॉर्मूले के तहत यह तय हुआ कि किसान आधी रात को किसान घाट जाएंगे और 3 अक्टूबर को सुबह उजाला होने से पहले दिल्ली से यूपी लौट जाएंगे। इस पर किसान नेता और पुलिस दोनों राजी थे, लेकिन किसान अपने ट्रैक्टर ले जाने पर अड़ गए। इस पर पुलिस ने शर्त रखी कि रात को ट्रैफिक नहीं होता इसलिए ट्रैक्टर के साथ किसान जाएं, लेकिन रात में ही इन्हें लौटना होगा। दोनों पक्षों में हुए समझौते के तहत ऐसा ही हुआ। समझौते का हुआ पालन डीजल गाड़ियों पर प्रतिबंध से ट्रैक्टर को छूट, दिल्ली समेत 4 राज्य के लाखों किसानों को राहत यह भी पढ़ें पुलिस और किसान नेताओं के बीच हुए समझौते के तहत किसानों ने एक से दो बजे के बीच दिल्ली में प्रवेश करना शुरू किया। दो बजे किसान नेता राजघाट होते हुए किसान घाट पहुंचे। समझौते के तहत चार बजे तक किसानों ने यूपी वापस लौटना शुरू किया। पुलिस ने दिखाई समझदारी, दिल्ली में नहीं प्रवेश करने दिया किसानों को गुजरात के व्यापारियों से 4.5 करोड़ लूट में सनसनीखेज खुलासा, डॉन दाऊद से जुड़े तार यह भी पढ़ें पुलिस की मानें तो अगर किसानों को मंगलवार सुबह राजधानी में प्रवेश करने देने से दिल्ली की कानून-व्यवस्था बिगड़ सकती थी। पांच हजार से अधिक किसान दिल्ली में प्रवेश करना चाह रहे थे, लेकिन दिल्ली पुलिस ने देर रात तक उन्हें उत्तर प्रदेश-दिल्ली की सीमा पर रोके रखा। किसानों की ओर से हिंसक प्रदर्शन करने पर भी पुलिस ने आपा नहीं खोया। दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि किसानों को दिल्ली में घुसने से रोकना बड़ी चुनौती थी। स्पेशल ब्रांच से पुलिस को पहले ही सूचना मिल गई थी कि किसान हिंसक रूप भी धारण कर सकते हैं। लिहाजा तीन दिन पहले से पुलिस ने उन्हें सीमाओं पर रोकने की तैयारियां शुरू कर दी थी। प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए पुलिस आमतौर पर दो या तीन स्तरीय बैरिकेड लगाती है, लेकिन किसानों को रोकने के लिए सात स्तरीय बैरिकेड लगाए गए थे। PM मोदी की एक अपील ने इस क्षेत्र में तोड़ डाले सारे पुराने रिकॉर्ड यह भी पढ़ें सबसे पहले उत्तर प्रदेश पुलिस ने दो स्तरीय बैरिकेड लगाए थे। उसके बाद 40 मीटर की दूरी पर दिल्ली पुलिस की ओर से बैरिकेड लगाए गए थे। यूपी पुलिस के बैरिकेड के बाद दिल्ली पुलिस ने बैरिकेड से पहले पत्थर के बड़े-बड़े टुकड़े रखे थे, जिसे जर्सी बैरियर कहते हैं। इस बैरिकेड को हटाना आसान नहीं होता है। मंगलवार सुबह जब किसान दिल्ली कूच करने लगे, तब यूपी पुलिस ने उन्हें रोक लिया। अधिकारियों ने किसान नेताओं से बात की, लेकिन वे नहीं माने। किसानों ने जब धमकी दी तो यूपी पुलिस डर गई और उनके आगे घुटने टेक दिए। किसान टै्रक्टर से उनके दोनों बैरिकेड तोड़कर चंद मिनटों में दिल्ली पुलिस के जर्सी बैरियर के पास पहुंच गए। क्या पलवल की मस्जिद में लगा है पाकिस्तान का पैसा? मेवात के मदरसे भी NIA के रडार पर यह भी पढ़ें ... इस तरह पुलिस ने दिया किसानों को जवाब 2 अक्टूबर को सुबह 11 बजे के आसपास सैकड़ों की संख्या में लाठी लिए किसानों ने जब पुलिसकर्मियों पर हमला बोल दिया तो, उसके बाद हालात को काबू करने के लिए पुलिस ने पहले वाटर कैनन का इस्तेमाल किया, फिर आंसू गैस व रबर बुलेट चलानी शुरू कर दी। पुलिस अधिकारी का कहना है कि बड़ी मुश्किल से किसानों को देर रात तक दिल्ली आने से रोका गया। इस दौरान किसानों से निबटने को पुलिस पल-पल रणनीति बदलती रही। उसके बाद देर रात किसानों को किसान घाट जाने की अनुमति दे दी गई। तब तक करीब 80 फीसद किसान अपने घर लौट चुके थे। किसानों को बेहतर तरीके से नियंत्रित करने के लिए आयुक्त ने अपने कर्मचारियों की प्रशंसा की। वहीं, राजेश चौहान (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भाकियू) का कहना है कि कोई कुछ भी कह सकता है लेकिन सच्चाई यही है कि किसानों की मांगों को सीएम योगी आदित्यनाथ से लेकर केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के सामने मजबूती के साथ रखा गया। उसी का असर है कि केंद्र की सरकार सात प्रमुख मांगों पर मानने को तैयार हो गई।

2 अक्टूबर की आधी रात का पूरा सच, इस समझौते से टला टकराव

भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के बैनर तले ट्रैक्टर-ट्रॉली, टाटा-407 समेत अन्य वाहनों से लैस किसानों का आधी रात को हुआ समझौता कई सवाल पैदा कर रहा है। इस आंदोलन से किसानों को क्या मिला? यह भी समझ से परे है। लेकिन सबसे बड़ा राज तो यह है कि आखिर 2 अक्टूबर की रात को ऐसा क्या हुआ कि पुलिस-किसान दोनों ‘दोस्त’ बन गए और किसानों को दिल्ली में दाखिल होने की इजाजत मिल गई। अब धीरे-धीरे इस समझौते की परतें खुल रही हैं। भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के बैनर तले ट्रैक्टर-ट्रॉली, टाटा-407 समेत अन्य वाहनों से लैस किसानों का आधी रात को हुआ समझौता कई सवाल पैदा कर रहा है। इस आंदोलन से किसानों को क्या मिला? यह भी समझ से परे है। लेकिन सबसे बड़ा राज तो यह है कि आखिर 2 अक्टूबर की रात को ऐसा क्या हुआ कि पुलिस-किसान दोनों 'दोस्त' बन गए और किसानों को दिल्ली में दाखिल होने की इजाजत मिल गई। अब धीरे-धीरे इस समझौते की परतें खुल रही हैं।    बताया जा रहा है कि उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश से आए हजारों किसानों की मांग सुनने के लिए कोई नेता आगे नहीं आ रहा था। हालांकि, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने किसान नेताओं से जरूर बात की, लेकिन कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला। इसके बाद किसान नेताओं के सामने किसान क्रांति पदयात्रा की सार्थकता का सवाल पैदा हो गया। सवाल यह भी था किसान क्रांति पदयात्रा दिल्ली के राजघाट तक नहीं पहुंची तो वे अपने समर्थकों को क्या मुंह दिखाएंगे, क्योंकि किसान नेताओं ने पदयात्रा राजघाट पर जाकर समाप्त करने का एलान किया था।     दुष्कर्म की सनसनीखेज घटना, युवती ने दूसरी युवती को बनाया 'हवस' का शिकार यह भी पढ़ें सूत्रों के मुताबिक, 2 अक्टूबर को किसान सुबह से लेकर शाम तक पुलिस से भिड़ते रहे। इस दौरान हालात बिगड़ने  पर पुलिस ने लाठी चार्ज भी किया, जिसमें 40 किसान और दर्जन भर पुलिसवाले घायल हुए। लेकिन जैसे-जैसे शाम से रात हुई और रात बीतने लगी किसान नेताओं की बेचैनी भी बढ़ी। इस दौरान किसान नेताओं को यह अहसास हो चला था कि पुलिस बल उन्हें दिल्ली में नहीं घुसने देगा।   इस तरह हुआ किसान-पुलिस में समझौता  सूत्रों के मुताबिक, पुलिस के आला अधिकारी और किसान नेता दोनों ही चाह रहे थे कि मामला जल्द खत्म हो। ऐसे में एक फॉर्मूला पेश किया गया। इस फॉर्मूले के तहत यह तय हुआ कि किसान आधी रात को किसान घाट जाएंगे और 3 अक्टूबर को सुबह उजाला होने से पहले दिल्ली से यूपी लौट जाएंगे। इस पर किसान नेता और पुलिस दोनों राजी थे, लेकिन किसान अपने ट्रैक्टर ले जाने पर अड़ गए। इस पर पुलिस ने शर्त रखी कि रात को ट्रैफिक नहीं होता इसलिए ट्रैक्टर के साथ किसान जाएं, लेकिन रात में ही इन्हें लौटना होगा। दोनों पक्षों में हुए समझौते के तहत ऐसा ही हुआ।   समझौते का हुआ पालन   डीजल गाड़ियों पर प्रतिबंध से ट्रैक्टर को छूट, दिल्ली समेत 4 राज्य के लाखों किसानों को राहत यह भी पढ़ें पुलिस और किसान नेताओं के बीच हुए समझौते के तहत किसानों ने एक से दो बजे के बीच दिल्ली में प्रवेश करना शुरू किया। दो बजे किसान नेता राजघाट होते हुए किसान घाट पहुंचे। समझौते के तहत चार बजे तक किसानों ने यूपी वापस लौटना शुरू किया।   पुलिस ने दिखाई समझदारी, दिल्ली में नहीं प्रवेश करने दिया किसानों को   गुजरात के व्यापारियों से 4.5 करोड़ लूट में सनसनीखेज खुलासा, डॉन दाऊद से जुड़े तार यह भी पढ़ें पुलिस की मानें तो अगर किसानों को मंगलवार सुबह राजधानी में प्रवेश करने देने से दिल्ली की कानून-व्यवस्था बिगड़ सकती थी। पांच हजार से अधिक किसान दिल्ली में प्रवेश करना चाह रहे थे, लेकिन दिल्ली पुलिस ने देर रात तक उन्हें उत्तर प्रदेश-दिल्ली की सीमा पर रोके रखा। किसानों की ओर से हिंसक प्रदर्शन करने पर भी पुलिस ने आपा नहीं खोया।  दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि किसानों को दिल्ली में घुसने से रोकना बड़ी चुनौती थी। स्पेशल ब्रांच से पुलिस को पहले ही सूचना मिल गई थी कि किसान हिंसक रूप भी धारण कर सकते हैं। लिहाजा तीन दिन पहले से पुलिस ने उन्हें सीमाओं पर रोकने की तैयारियां शुरू कर दी थी। प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए पुलिस आमतौर पर दो या तीन स्तरीय बैरिकेड लगाती है, लेकिन किसानों को रोकने के लिए सात स्तरीय बैरिकेड लगाए गए थे।   PM मोदी की एक अपील ने इस क्षेत्र में तोड़ डाले सारे पुराने रिकॉर्ड यह भी पढ़ें सबसे पहले उत्तर प्रदेश पुलिस ने दो स्तरीय बैरिकेड लगाए थे। उसके बाद 40 मीटर की दूरी पर दिल्ली पुलिस की ओर से बैरिकेड लगाए गए थे। यूपी पुलिस के बैरिकेड के बाद दिल्ली पुलिस ने बैरिकेड से पहले पत्थर के बड़े-बड़े टुकड़े रखे थे, जिसे जर्सी बैरियर कहते हैं। इस बैरिकेड को हटाना आसान नहीं होता है।  मंगलवार सुबह जब किसान दिल्ली कूच करने लगे, तब यूपी पुलिस ने उन्हें रोक लिया। अधिकारियों ने किसान नेताओं से बात की, लेकिन वे नहीं माने। किसानों ने जब धमकी दी तो यूपी पुलिस डर गई और उनके आगे घुटने टेक दिए। किसान टै्रक्टर से उनके दोनों बैरिकेड तोड़कर चंद मिनटों में दिल्ली पुलिस के जर्सी बैरियर के पास पहुंच गए।   क्या पलवल की मस्जिद में लगा है पाकिस्तान का पैसा? मेवात के मदरसे भी NIA के रडार पर यह भी पढ़ें ... इस तरह पुलिस ने दिया किसानों को जवाब 2 अक्टूबर को सुबह 11 बजे के आसपास सैकड़ों की संख्या में लाठी लिए किसानों ने जब पुलिसकर्मियों पर हमला बोल दिया तो, उसके बाद हालात को काबू करने के लिए पुलिस ने पहले वाटर कैनन का इस्तेमाल किया, फिर आंसू गैस व रबर बुलेट चलानी शुरू कर दी। पुलिस अधिकारी का कहना है कि बड़ी मुश्किल से किसानों को देर रात तक दिल्ली आने से रोका गया। इस दौरान किसानों से निबटने को पुलिस पल-पल रणनीति बदलती रही। उसके बाद देर रात किसानों को किसान घाट जाने की अनुमति दे दी गई। तब तक करीब 80 फीसद किसान अपने घर लौट चुके थे। किसानों को बेहतर तरीके से नियंत्रित करने के लिए आयुक्त ने अपने कर्मचारियों की प्रशंसा की।  वहीं,  राजेश चौहान (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भाकियू) का कहना है कि कोई कुछ भी कह सकता है लेकिन सच्चाई यही है कि किसानों की मांगों को सीएम योगी आदित्यनाथ से लेकर केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के सामने मजबूती के साथ रखा गया। उसी का असर है कि केंद्र की सरकार सात प्रमुख मांगों पर मानने को तैयार हो गई।

बताया जा रहा है कि उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश से आए हजारों किसानों की मांग सुनने के लिए कोई नेता आगे नहीं आ रहा था। हालांकि, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने किसान नेताओं से जरूर बात की, लेकिन कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला। इसके बाद किसान नेताओं के सामने किसान क्रांति पदयात्रा की सार्थकता का सवाल पैदा हो गया। सवाल यह भी था किसान क्रांति पदयात्रा दिल्ली के राजघाट तक नहीं पहुंची तो वे अपने समर्थकों को क्या मुंह दिखाएंगे, क्योंकि किसान नेताओं ने पदयात्रा राजघाट पर जाकर समाप्त करने का एलान किया था।  

सूत्रों के मुताबिक, 2 अक्टूबर को किसान सुबह से लेकर शाम तक पुलिस से भिड़ते रहे। इस दौरान हालात बिगड़ने  पर पुलिस ने लाठी चार्ज भी किया, जिसमें 40 किसान और दर्जन भर पुलिसवाले घायल हुए। लेकिन जैसे-जैसे शाम से रात हुई और रात बीतने लगी किसान नेताओं की बेचैनी भी बढ़ी। इस दौरान किसान नेताओं को यह अहसास हो चला था कि पुलिस बल उन्हें दिल्ली में नहीं घुसने देगा। 

इस तरह हुआ किसान-पुलिस में समझौता

सूत्रों के मुताबिक, पुलिस के आला अधिकारी और किसान नेता दोनों ही चाह रहे थे कि मामला जल्द खत्म हो। ऐसे में एक फॉर्मूला पेश किया गया। इस फॉर्मूले के तहत यह तय हुआ कि किसान आधी रात को किसान घाट जाएंगे और 3 अक्टूबर को सुबह उजाला होने से पहले दिल्ली से यूपी लौट जाएंगे। इस पर किसान नेता और पुलिस दोनों राजी थे, लेकिन किसान अपने ट्रैक्टर ले जाने पर अड़ गए। इस पर पुलिस ने शर्त रखी कि रात को ट्रैफिक नहीं होता इसलिए ट्रैक्टर के साथ किसान जाएं, लेकिन रात में ही इन्हें लौटना होगा। दोनों पक्षों में हुए समझौते के तहत ऐसा ही हुआ। 

समझौते का हुआ पालन

पुलिस और किसान नेताओं के बीच हुए समझौते के तहत किसानों ने एक से दो बजे के बीच दिल्ली में प्रवेश करना शुरू किया। दो बजे किसान नेता राजघाट होते हुए किसान घाट पहुंचे। समझौते के तहत चार बजे तक किसानों ने यूपी वापस लौटना शुरू किया। 

पुलिस ने दिखाई समझदारी, दिल्ली में नहीं प्रवेश करने दिया किसानों को

पुलिस की मानें तो अगर किसानों को मंगलवार सुबह राजधानी में प्रवेश करने देने से दिल्ली की कानून-व्यवस्था बिगड़ सकती थी। पांच हजार से अधिक किसान दिल्ली में प्रवेश करना चाह रहे थे, लेकिन दिल्ली पुलिस ने देर रात तक उन्हें उत्तर प्रदेश-दिल्ली की सीमा पर रोके रखा। किसानों की ओर से हिंसक प्रदर्शन करने पर भी पुलिस ने आपा नहीं खोया।

दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि किसानों को दिल्ली में घुसने से रोकना बड़ी चुनौती थी। स्पेशल ब्रांच से पुलिस को पहले ही सूचना मिल गई थी कि किसान हिंसक रूप भी धारण कर सकते हैं। लिहाजा तीन दिन पहले से पुलिस ने उन्हें सीमाओं पर रोकने की तैयारियां शुरू कर दी थी। प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए पुलिस आमतौर पर दो या तीन स्तरीय बैरिकेड लगाती है, लेकिन किसानों को रोकने के लिए सात स्तरीय बैरिकेड लगाए गए थे।

सबसे पहले उत्तर प्रदेश पुलिस ने दो स्तरीय बैरिकेड लगाए थे। उसके बाद 40 मीटर की दूरी पर दिल्ली पुलिस की ओर से बैरिकेड लगाए गए थे। यूपी पुलिस के बैरिकेड के बाद दिल्ली पुलिस ने बैरिकेड से पहले पत्थर के बड़े-बड़े टुकड़े रखे थे, जिसे जर्सी बैरियर कहते हैं। इस बैरिकेड को हटाना आसान नहीं होता है।

मंगलवार सुबह जब किसान दिल्ली कूच करने लगे, तब यूपी पुलिस ने उन्हें रोक लिया। अधिकारियों ने किसान नेताओं से बात की, लेकिन वे नहीं माने। किसानों ने जब धमकी दी तो यूपी पुलिस डर गई और उनके आगे घुटने टेक दिए। किसान टै्रक्टर से उनके दोनों बैरिकेड तोड़कर चंद मिनटों में दिल्ली पुलिस के जर्सी बैरियर के पास पहुंच गए।

 इस तरह पुलिस ने दिया किसानों को जवाब

2 अक्टूबर को सुबह 11 बजे के आसपास सैकड़ों की संख्या में लाठी लिए किसानों ने जब पुलिसकर्मियों पर हमला बोल दिया तो, उसके बाद हालात को काबू करने के लिए पुलिस ने पहले वाटर कैनन का इस्तेमाल किया, फिर आंसू गैस व रबर बुलेट चलानी शुरू कर दी। पुलिस अधिकारी का कहना है कि बड़ी मुश्किल से किसानों को देर रात तक दिल्ली आने से रोका गया। इस दौरान किसानों से निबटने को पुलिस पल-पल रणनीति बदलती रही। उसके बाद देर रात किसानों को किसान घाट जाने की अनुमति दे दी गई। तब तक करीब 80 फीसद किसान अपने घर लौट चुके थे। किसानों को बेहतर तरीके से नियंत्रित करने के लिए आयुक्त ने अपने कर्मचारियों की प्रशंसा की।

वहीं,  राजेश चौहान (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भाकियू) का कहना है कि कोई कुछ भी कह सकता है लेकिन सच्चाई यही है कि किसानों की मांगों को सीएम योगी आदित्यनाथ से लेकर केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के सामने मजबूती के साथ रखा गया। उसी का असर है कि केंद्र की सरकार सात प्रमुख मांगों पर मानने को तैयार हो गई।

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