1 वर्ष बाद खुले नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट, 300 वर्ष में पहली बार भक्तों को प्रवेश नहीं

ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर के शीर्ष पर स्थित भगवान नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट नागपंचमी के लिए एक साल बाद शुक्रवार मध्यरात्रि खोले गए। इसके बाद महानिर्वाणी अखाड़े के महंत विनीतगिरीजी महाराज के सान्निध्य में भगवान नागचंद्रेश्वर की पूजा-अर्चना की गई।

कोरोना संक्रमण के चलते 300 साल में पहली बार भक्तों को मंदिर में प्रवेश नहीं दिया गया है। श्रद्घालुओं को लाइव प्रसारण के जरिए मंदिर परिसर में लगी मेगा स्क्रीन और स्मार्ट फोन व टीवी पर भगवान के दर्शन होंगे।

नागपंचमी पर भगवान नागचंद्रेश्वर की त्रिकाल पूजा की जाती है। पहली पूजा 24 जुलाई की रात हुई। शनिवार दोपहर 12 बजे भगवान नागचंद्रेश्वर का शासकीय पूजन होगा। शाम को 7.30 बजे के बाद मंदिर समिति की ओर से महाकाल मंदिर के पुजारी पूजा-अर्चना करेंगे। शनिवार रात 12 बजे पूजन कर फिर से एक साल के लिए मंदिर के पट बंद कर दिए जाएंगे।

11वीं शताब्दी की है मूर्ति

नागचंद्रेश्वर मंदिर में नागपंचमी पर जिस मूर्ति के दर्शन होते हैं, वह 11वीं शताब्दी की परमारकालीन मूर्ति बताई जाती है। इसमें शिव-पार्वती के शीश पर छत्र रूप में फन फैलाए नाग देवता के दर्शन होते हैं। बताया जाता है यह मूर्ति नेपाल से यहां लाई गई है। मंदिर के दूसरे भाग में भगवान नागचंद्रेश्वर शिवलिंग रूप में विराजित हैं।

सिंधिया राजवंश ने महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था

ज्योतिर्विद पं. आनंदशंकर व्यास ने बताया कि करीब 300 साल पहले सिंधिया राजवंश ने महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। इसके बाद से ही मंदिर में उत्सव आदि परंपराओं की शुरुआत मानी जाती है। भगवान महाकाल की विभिन्न सवारी और नागपंचमी पर नागचंद्रेश्वर मंदिर में साल में एक बार भक्तों के प्रवेश की परंपरा भी इन्हीं में से एक है। कालांतर में प्रतिवर्ष हजारों भक्त भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन करने आते रहे हैं। श्रावण मास में प्रतिदिन 8 से 10 हजार भक्तों को समिति भगवान महाकाल के दर्शन करा रही है। जिस व्यवस्था से भक्तों को भगवान महाकाल के दर्शन कराए जा रहे हैं, उसी व्यवस्था से भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन भी कराए जा सकते थे।

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