गर्मी वेब सीरीज सोनी लिव पर रिलीज होने जा रही है। सीरीज की कहानी छात्र राजनीति पर आधारित है। तिग्मांशु धूलिया इससे पहले द ग्रेड इंडियन मर्डर वेब सीरीज ला चुके हैं जो डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर स्ट्रीम हुई थी।
वर्ष 2003 में प्रदर्शित छात्र राजनीति पर आधारित फिल्म हासिल से तिग्मांशु धूलिया ने निर्देशन में कदम रखा था। अब करीब दो दशक बाद उन्होंने छात्र राजनीति पर आधारित वेब सीरीज गर्मी बनाई है। सोनी लिव पर 21 अप्रैल को प्रदर्शित हो रही इस की कुछ कड़ियां हासिल से जुड़ती हैं। उनसे दीपेश पांडेय की बातचीत के अंश…
इस विषय में रुचि का क्या कारण है?
पिछले 20 वर्ष में समाज बदल चुका है। एक पूरी नई पीढ़ी आ गई है। छात्र राजनीति का तरीका नहीं बदला है, लेकिन महत्वाकांक्षाएं बदल गई हैं। इस शो को बनाने का यही कारण है कि मैं दोबारा हासिल का दरवाजा खटखटाना चाहता था।
जब कोई छात्र आपका हीरो हो तो वह कहानी के लिए उपयुक्त चरित्र होता है। वह आगे की जिंदगी के लिए तैयार हो रहा होता है। इसके साथ ही आप समाज के कई और विषयों को छू सकते हैं।
शो को प्रयागराज में शूट करने का क्या कारण था?
शो में हमने अपनी दुनिया बनाई है, हमने शहर का नाम न इलाहाबाद रखा है, न ही प्रयागराज। मैंने प्रयागराज में पढ़ाई की है तो वहां के बारे में अच्छी तरह जानता हूं। जब मैं हासिल बना रहा था तो काफी विरोध हुआ था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एक दिन शूट करने के बाद अगले दिन मुझे मना कर दिया गया था।
मैंने वहां के दूसरे कालेज में शूटिंग करके फिल्म बनाई। इलाहाबाद विश्वविद्यालय जैसी खूबसूरत जगह पर शूट करने का मौका ही नहीं मिला था। (हंसते हुए) वहां शूट करके मुझे वह भड़ास भी दूर करनी थी।
राजनीति आपकी फिल्मों का अहम हिस्सा रहती है, इसकी क्या वजह है?
मेरे लिए कहानी से ज्यादा, कहानी किस माहौल में सेट है, वो मायने रखता है। जब आप माहौल पर अपने दिमाग और कला को केंद्रित करते हैं तो और चीजें भी खुल जाती हैं, क्योंकि उस माहौल में तो समाज, राजनीति, प्रेम समेत कई चीजें होती हैं। कहानी में ये सब चीजें आ जाती हैं। मैंने राजनीति को पढ़ा है, देखा है तो उसका भी थोड़ा प्रभाव पड़ता है।
क्या कभी मन में राजनीति में आने का विचार आता है, प्रस्ताव तो मिलते ही होंगे?
हां, प्रस्ताव मिलते हैं। 10 साल पहले जब मुझसे यह सवाल पूछा जाता था तो मैं कहता था कि हां, मैं राजनीति में उतरूंगा। अब लगता है कि उसके लायक मेरा व्यक्तित्व नहीं है। राजनीति में आपको कभी-कभी चुप रहना पड़ता है, बहुत सी चीजों का ध्यान रखना पड़ता है कि किसके सामने क्या बोलना है। राजनीति 24 घंटे का काम है। मैं वो नहीं कर पाऊंगा।
शो में एक संवाद है कि आज की पीढ़ी तर्क करना जानती है, युवाओं में इस चीज को आप कैसे देखते हैं?
भीड़ के साथ चलने वाले लोग हमेशा रहे हैं। तर्क करने वाले भी काफी लोग हैं। तर्क से ही सवाल उठते हैं, अगर कोई सवाल ही नहीं करेगा, फिर लोकतंत्र का लाभ क्या है। कई बार तर्क करने का खामियाजा भी उठाना पड़ता है।
इस शो को आप किसी स्थापित सितारे के साथ भी बना सकते थे, फिर नवोदित के साथ आगे बढ़ने का निर्णय क्यों लिया?
इस का नायक एक छोटे से कस्बे से शहर में पढ़ने आता है। 22-23 वर्ष की उम्र में कौन स्टार होता है। तो मेरे लिए नवोदित कलाकारों के साथ ही काम करने का विकल्प था। इसके अलावा इस शो को मैंने जिस तरह बनाया है, किसी स्थापित सितारे के साथ बना पाना मुश्किल था।