हाईकोर्ट : विवाह योग्य आयु नहीं तो भी जीवन और स्वतंत्रता प्रेमी जोड़े का मौलिक अधिकार है

सिरसा की रहने वाली 17 साल की लड़की ने हाईकोर्ट में सुरक्षा के लिए याचिका दाखिल की थी। वह अपने 19 साल के प्रेमी के साथ रहना चाहती है। 

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि केवल इस आधार पर कि प्रेमी जोड़ा विवाह योग्य आयु का नहीं है उन्हें जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। जोड़े में लड़का 19 वर्ष का व लड़की 17 वर्ष की है जिसे हाईकोर्ट ने पंचकूला के बालगृह भेजने का आदेश दिया है। 

सिरसा निवासी लड़की ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए बताया कि वह अपने प्रेमी के साथ रहना चाहती है लेकिन अभी उसकी व उसके प्रेमी की आयु विवाह योग्य नहीं है। उसे उसके परिवार व रिश्तेदारों से खतरा है और ऐसे में उसे सुरक्षा मुहैया करवाने का आदेश दिया जाए। दोनों पक्ष एक-दूसरे से बातचीत करने के लिए उच्च न्यायालय के मध्यस्थता और सुलह केंद्र के समक्ष उपस्थित हुए। हालांकि, लड़की ने कहा कि वह अपने माता-पिता के साथ नहीं जाना चाहती। 

हाईकोर्ट ने याचिका पर अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि संविधान का अनुच्छेद 21 प्रत्येक नागरिक को जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा प्रदान करता है और राज्य इसे सुनिश्चित करने के लिए बाध्य है। यदि रिश्तेदारों से उनको कोई खतरा है, एसपी कानून के अनुसार कार्य करें और यदि आवश्यक हो, तो उन्हें अंतरिम सुरक्षा प्रदान करें। कोर्ट ने नाबालिग लड़की को बाल गृह भेजने का निर्देश देते यह भी कहा कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम 2015 के तहत गठित बाल कल्याण समिति बाल गृह सिरसा में लड़की के हित सुनिश्चित करेगी। 

हाईकोर्ट ने लड़की को पंचकूला के बाल गृह भेजने का निर्देश देते हुए कहा कि चूंकि लड़की नाबालिग है अदालत के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह माता-पिता की तरह नाबालिग के हित में क्या सर्वोत्तम है। पंचकूला में उसे तब तक रखा जाएगा, जब तक सिरसा के पुलिस अधीक्षक आकर उसे बाल गृह, सिरसा में ले जाए। वहां पर वह वयस्क होने रहेगी और वयस्क होने पर वह यह चुनने के लिए स्वतंत्र होगी कि वह कहां रहना चाहती है।

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