हरियाणा में आते-आते बदल गया भाजपा का सियासी एजेंडा

‘मोदी गारंटी’ के साथ लोकसभा चुनाव मैदान में उतरी भाजपा का सियासी एजेंडा हरियाणा में आते-आते बदल गया।

हरियाणा में करीब दो महीने के चुनाव प्रचार में जहां भाजपा का अपना एजेंडा रहा वहीं, कांग्रेस ने स्थानीय मुद्दों पर जोर दिया। ‘मोदी गारंटी’ के साथ लोकसभा चुनाव मैदान में उतरी भाजपा का सियासी एजेंडा हरियाणा में आते-आते बदल गया। अगले पांच साल का एजेंडा बताने के बजाय भाजपा हिंदुत्व, पाकिस्तान, राम मंदिर, आरक्षण और धारा 370 की पिच के इर्द-गिर्द घूमती दिखी। हालांकि इस बीच उन्होंने बिना खर्ची-पर्ची नाैकरी देने को लेकर खूब माहाैल बनाया। वहीं, कांग्रेस किसानों व पहलवानों के मुद्दे पर प्रदेश में माहाैल नहीं बना पाई। अग्निवीर, कर्ज रोजगार व महंगाई का मुद्दा खूब जोर-शोर से उठाया। न्याय पत्र में किए गए वादों को घर-घर तक पहुंचाने में जोर तो पूरा लगाया लेकिन इसमें कांग्रेस का संगठन न होना और शीर्ष नेताओं के बीच गुटबाजी होना बाधा बना।

भाजपा केंद्र के साथ राज्य में दस साल से सत्ता में है। भाजपा के पास बताने के लिए बहुत कुछ था, मगर 15 मई के बाद भाजपा के आए स्टार प्रचारकों ने चुनाव प्रचार को पूरी तरह से बदल कर रख गया। पीएम मोदी ने 18 मई को अंबाला व गोहाना और वीरवार को महेंद्रगढ़ के पाली में रैली कर अपने भाषण को धारा 370, आरक्षण, पूर्व सैनिक, पांच प्रधानमंत्री, राम मंदिर और कांग्रेस के खिलाफ अपने लगाए पुराने आरोप तक सीमित रखा।

हुड्डा को निशाने पर लेते रहे भाजपा के केंद्रीय नेता…हुड्डा बचते रहे
भाजपा हाईकमान के नेताओं ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को निशाने पर लेना शुरू कर दिया है। गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने हुड्डा को दिल्ली दरबार के दामाद का दरबारी तक कह डाला। एक-एक करके भाजपा के नेता हुड्डा को निशाने पर ले रहे हैं। विपक्षी दल कांग्रेस सरकार पर हमला बोलने के बजाय अब भाजपा ने ही कांग्रेस की घेराबंदी शुरू कर दी है। कांग्रेस समय में नौकरियों, तबादलों और खर्ची पर्ची को लेकर निशाना साध रहे हैं। खास बात ये है कि हुड्डा भाजपा के केंद्रीय नेताओं पर हमला करने से बचते नजर आ रहे हैं। वह केंद्र सरकार की विफलताओं पर जरूर पलटवार करते हैं कि लेकिन व्यक्तिगत रूप से मोदी और शाह के बारे में कुछ नहीं बोला। इस मामले को लेकर हुड्डा विरोधी कांग्रेसी नेता कई बार हाईकमान के सामने भी यह मामले को रख चुके हैं।

जजपा-इनेलो भी अपने इलाके तक सीमित रहे
साढ़े चार साल भाजपा के साथ गठबंधन में शामिल रही जजपा भी किसी बड़े मुद्दे को नहीं उठा पाई है। सबसे अधिक दिक्कत जजपा को झेलनी पड़ रही है, वह सरकार में रहते समय अपने कामों का गुणगान कर रही है, लेकिन जनता में गठबंधन को लेकर जबरदस्त विरोध है, इसलिए जजपा नेता न तो खुलकर किसी मुद्दे पर सरकार को घेर पा रहे हैं और न ही जनता उपलब्धियां सुन रही हैं। जजपा का मुख्य फोकस हिसार में ही रहा है। वहीं, इनेलो ने किसानों और पलायन कर रहे युवाओं के मुद्दे को कई बार उठाया, लेकिन एक विधायक होने के नाते बड़ा मुद्दा नहीं बन पाया है।

फैमिली आईडी, एम्स, एयरपोर्ट, पलायन, एसवाईएल मुद्दे गायब
लोग फैमिली आईडी, नौकरियों के लिए विदेशों में पलायन, बेरोजगारी से परेशान हैं। वह इस पर चर्चा भी करते हैं। जींद के कई गांवों से युवा नौकरियों के लिए विदेश में पलायन कर गए हैं। एक दो गांव ऐसे हैं जो पूरी तरह से खाली हो चुके हैं। यही हालात कुरुक्षेत्र और यमुनानगर के भी हैं। दक्षिण हरियाणा में पानी का मुद्दा आज भी गर्म है, मगर राज्य के किसी भी नेता के पास एसवाईएल को लेकर भविष्य का कोई एजेंडा नहीं है। फैमिली आईडी से भी लोग बहुत परेशान हैं। कांग्रेस के उम्मीदवार इन मुद्दों को अपने-अपने लोकसभा क्षेत्र में उठाते तो हैं, मगर यह मुद्दे उनके ही क्षेत्र में सीमित रह जाते हैं। पूरे चुनाव में मुट्ठी भर केंद्रीय नेता आए, मगर उनका ज्यादा फोकस भी मोदी के आसपास ही रहा। इसके अलावा राज्य के अन्य नेता न तो कोई प्रेस कांफ्रेंस की और न ही अभियान या आंदोलन चलाया। इसकी पीछे एक बड़ी वजह यह है कि राज्य में कांग्रेस का संगठन नहीं है।

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