हज सब्सिडी समाप्त करने की नेक पहल, इस्लामिक मान्यता के अनुरूप

हज सब्सिडी समाप्त करने की नेक पहल, इस्लामिक मान्यता के अनुरूप

हज, इस्लाम धर्म के उन पांच बुनियादी स्तंभों में से एक है जिस पर इसकी आस्था की पूरी इमारत टिकी हुई है। अलबत्ता तौहीद, नमाज व रोजा के बरक्स जकात और हज आर्थिक तौर पर संपन्न लोगों पर ही फर्ज है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि हज के लिए भारतीय मुसलमानों का सब्सिडी लेना और देना, शरीयत के लिहाज से दोनों गलत है। ऐसे में केंद्र सरकार सरकार के जरिए हज सब्सिडी का खत्म किया जाना इस्लामिक मान्यता के अनुरूप है। साथ ही अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रलय ने इस रकम को मुसलमानों विषेशकर मुस्लिम महिलाओं के उत्थान पर खर्च करने का फैसला लिया है।हज सब्सिडी समाप्त करने की नेक पहल, इस्लामिक मान्यता के अनुरूप

इस तरह देखा जाए तो ये एक भूल सुधार के साथ-साथ सामाजिक भलाई की तरफ उठाया गया कदम है जिससे मुस्लिम महिलाओं के आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ेपन को दूर करने में मदद मिलेगी। साथ ही हज सब्सिडी समाप्त करने का फैसला सुप्रीम कोर्ट के 2012 में दिए गए उस आदेश का अनुपालन भी है जिसमें उसने इसे खत्म करके इसकी रकम का इस्तेमाल मुसलमानों के पिछड़ेपन को दूर करने की वकालत की थी।

दरअसल हज सब्सिडी का मुद्दा कोई नया नहीं है। इसकी शुरुआत ब्रिटिश राज में हज कमेटी एक्ट लागू करके की गई थी। बाद में मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते भारत सरकार ने इसे सफरे-हज के लिए सऊदी अरब जाने-आने और घरेलू सफर के किरायों के रूप में दी जाने वाली छूट में परिवर्तित कर दिया। तब से लेकर अब तक कई बार हज सब्सिडी को खत्म किए जाने की मांग जोर पकड़ती रही है। मामले में उस वक्त नया मोड़ आ गया जब 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने हज सब्सिडी को आइंदा दस बरसों यानी 2022 तक चरणबद्ध तरीके से खत्म करने का आदेश दिया। जस्टिस आफताफ आलम और रंजन देसाई की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि हज सब्सिडी पर दी जाने वाली राशि का इस्तेमाल मुसलमानों के सामाजिक और शैक्षणिक विकास पर खर्च की जानी चाहिए।

उच्चतम न्यायालय के उस फैसले का अधिकतर मुसलमानों ने समर्थन किया था। उनका मानना है कि असल में हज पर दी जाने वाली सब्सिडी का अधिकतर लाभ इस मुबारक सफर पर जाने वालों को नहीं बल्कि भारत और सऊदी अरब की सरकारी एयरलाइंस के हिस्से में चला जाता है। काबिले जिक्र है कि इस सब्सिडी के चलते हाजियों को एयर इंडिया और सऊदी एयरलाइंस से जाने की बाध्यता है। उनके जरिए मनमाना किराया वसूला जाता है और सुविधाएं उस स्तर की नहीं दी जाती हैं। अब तो वैसे ही चंद माह की एडवांस बुकिंग कराने पर निजी एयरलाइंस के जरिए किरायों में भारी छूट दी जाती है। उस पर एक साथ अगर इतने टिकटों की बुकिंग की जाए तो प्रतिस्पर्धा के चलते किसी भी निजी एयरलाइंस के जरिए इसमें मजीद भारी छूट देने की पेशकश की जा सकती है।

इससे भारत से जेद्दा को जाने वाली और वापस आने वाली उड़ानों का किराया इन सरकारी एयरलाइनों के मुकाबले कितना कम हो सकता है, इसका अंदाजा बखूबी लगाया जा सकता है। ऐसे में सरकारी एयरलाइंस से हज यात्र की बाध्यता को खत्म करके इसके लिए अब खुली निविदा आमंत्रित की जाएगी और कम से कम किरायों के साथ अच्छी सुविधा की बोली लगाने वाली एयरलाइंस को ही ये जिम्मेदारी दिए जाने की उम्मीद है। 1हज सब्सिडी का मामला आर्थिक हिसाब-किताब लगाने से ज्यादा राजनीतिक जोड़-घटाव का रहा है। सभी जानते हैं कि हज आर्थिक तौर पर संपन्न हर मुसलमान पूरे जीवनकाल में एक बार फर्ज है।

यही वजह है कि हर मुसलमान मरने से पहले एक बार अल्लाह के घर का दीदार अवश्य करना चाहता है। उसकी इसी हसरत और भावना का सम्मान करते हुए भारत सरकार भी अच्छी से अच्छी सुविधाएं मुहैया कराने का प्रयास करती है। इन्हीं कोशिशों में जाने कैसे, क्यों और किन परिस्थितियों में हज सब्सिडी की गलत प्रथा चल पड़ी?इसके पीछे राजनीतिक दलों की मंशा मुसलमानों का समर्थन और उनके वोट हासिल करने की रही है।

यही वजह है कि 2012 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी तत्कालीन संप्रग सरकार ने हज सब्सिडी को खत्म करने की कोई खास पहल नहीं की। उसकी दलील थी कि हज यात्र को निजी एयरलाइंस के हाथों देने का मतलब होगा इसको पूरी तरह से बाजार के हवाले कर देना। इससे हाजियों को अनियंत्रित हवाई किराये की मार ङोलनी पड़ेगी जबकि उस वक्त भी स्वयं कांग्रेस के कई मुस्लिम नेताओं समेत उलेमाओं और इस्लामिक संगठनों ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए हज सब्सिडी को खत्म करने की मांग की थी। आम मुसलमान भी इसको लेकर एकमत है कि ये पूरी तरह से गैर-शरई है।

कुरान-पाक में वैसे ही हज को लेकर वर्णन है कि हज उन्हीं मुसलमानों पर फर्ज है जो इसका खर्च वहन कर सकें। हज के लिए आवेदन भी ऐसे ही लोग करते हैं जिन्हें आर्थिक रूप से मदद की कोई जरूरत नहीं होती है। सरकार ने पानी के जहाज से हज यात्र की पहल करके वैसे ही इसे काफी सस्ता करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। इससे कम पैसे वाले मुसलमानों के हज पर जाने की मुश्किलें भी आसान होती दिखाई दे रही हैं।

हालांकि सरकार की इस पहल पर भी आलोचनाओं का दौर शुरू हो गया है। कहा जा रहा है कि उसने हज सब्सिडी तब समाप्त की है जब उसने सरकारी एयरलाइंस ‘एयर इंडिया’ में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश ‘एफडीआइ’ का फैसला लिया है। इस तरह निजी हाथों में जाने के बाद हज सब्सिडी का कोई औचित्य नहीं रह जाता है। हालांकि सरकार की मंशा पर शक की गुंजाइश इसलिए नहीं बचती क्योंकि उसने सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार इसमें चरणबद्ध तरीके से कटौती पहले से आरंभ कर दी थी।

2012 में दी गई 700 करोड़ रुपये की सब्सिडी के मुकाबले पिछली सब्सिडी महज 250 करोड़ रुपये की दी गई और 2018 में सरकार ने इसे समाप्त कर दिया है। अर्थात सुप्रीम कोर्ट के जरिए तय 2022 की तय समय सीमा से पहले सरकार ने ये लक्ष्य हासिल कर लिया है। सरकार को चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार ही हज सब्सिडी की रकम को मुसलमानों का पिछड़ापन दूर करने के लिए इस्तेमाल करे।

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