सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या मामले में दोषी बलवंत राजोआना की मौत की सजा बदलने के लिए दायर याचिका पर फैसला करने के लिए केंद्र को सोमवार को ‘आखिरी मौका’ दिया। शीर्ष अदालत ने केंद्र से दो हफ्ते में फैसला करने को कहा है।
उधर, केंद्र ने अदालत से तीन हफ्ते का समय मांगते हुए कहा था कि वह मामले की समीक्षा कर रही है और मौजूदा परिस्थितियों में उसे समय की जरूरत है। हालांकि, उसने इस बारे में विस्तार से नहीं बताया। प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यन की पीठ ने सॉलिसीटर तुषार मेहता से पूछा कि सरकार को तीन हफ्ते का समय क्यों चाहिए, वह क्या कर रही है?
पीठ ने कहा कि हमें ‘तीन सप्ताह’ का समय अतार्किक लगता है, हमने आपसे 26 जनवरी तक फैसला करने के लिए कहा था, आज 25 जनवरी है।’’ मेहता ने कहा कि मौजूदा परिस्थितियों के मद्देनजर उनका अनुरोध है कि मामले की सुनवाई तीन हफ्ते बाद की जाए।
इस पर पीठ ने कहा कि हम आपको आखिरी मौका देते हैं। सुनवाई के दौरान राजोआना की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि यह व्यक्ति (राजोआना) पिछले 25 साल से जेल में कैद है और उसकी दया याचिका गत नौ साल से लंबित है।
मेहता ने अदालत से कहा कि सरकार मामले में विचार कर रही है और शीर्ष अदालत से अनुरोध किया कि मौजूद परिस्थितियों में मामले की सुनवाई तीन हफ्ते बाद की जाए। रोहतगी ने कहा कि वह सॉलिसीटर जनरल के अनुरोध का विरोध करते हैं।
पीठ ने मेहता से पूछा कि आपको तीन हफ्ते क्यों चाहिए? आप क्या कर रहे हैं? रोहतगी ने कहा कि अदालत ने पहले ही उन्हें पर्याप्त मौका एवं समय दे चुकी है। उन्होंने कहा कि यह आदमी लंबे समय से जेल में है। इसपर मेहता ने कहा कि राजोआना, मुख्यमंत्री की हत्या करने की वजह से जेल में है।
गौरतलब है कि राजोआना पंजाब पुलिस का पूर्व कांस्टेबल है और उसे 1995 में पंजाब सचिवालय के समक्ष हुए धमाके में शामिल होने का दोषी ठहराया गया है जिसमें बेअंत सिंह और अन्य 16 लोगों की मौत की हो गई थी। शीर्ष अदालत ने आठ जनवरी को केंद्र से कहा था कि वह राजोआना की मौत की सजा बदलने की याचिका पर 26 जनवरी तक फैसला ले।
अदालत ने केंद्र को दो-तीन हफ्ते का समय देते हुए प्रक्रिया 26 जनवरी से पहले पूरी करने को कहा था। अदालत ने कहा था कि 26 जनवरी अच्छा दिन है और यह उचित होगा अगर सरकार उससे पहले फैसला ले।
राजोआना के वकील ने तर्क दिया था कि उनके मुवक्किल की दया याचिका वर्ष 2012 से लंबित है और शीर्ष अदालत ने कहा है कि अगर किसी व्यक्ति की मौत की सजा में आठ साल से अधिक देरी होती है तो उसकी सजा बदली जा सकती है।