सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी अधिकारियों को नियमित रूप से बार-बार तलब करने को लेकर देशभर की अदालतों को नसीहत देते हुए चेताया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अधिकारियों को रुटीन में कोर्ट नहीं बुलाया जाना चाहिए। बहुत ही सीमित परिस्थितियों में ऐसा किया जाना चाहिए। उच्च न्यायालयों को सरकार पर दबाव बनाने के लिए अवमानना के भय के तहत बार-बार अधिकारियों को बुलाने की इजाजत नहीं है। अधिकारियों को कोर्ट में तलब करने की शक्ति का इस्तेमाल सरकार पर दबाव बनाने के उपकरण की तरह नहीं होना चाहिए, विशेषकर अवमानना के तहत।
शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे विधि अधिकारी पर या सरकार के हलफनामे में दी गई दलीलों पर भरोसा करने के बजाए बार-बार अधिकारियों को कोर्ट में बुलाना संविधान में दी गई योजना के विपरीत है। सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों को कोर्ट में बुलाने के बारे में एसओपी (मानक संचालन प्रक्रिया) तय किए हैं। इसमें बताया गया है कि किसी अधिकारी को कब अदालत में बुलाया जा सकता है और उसकी क्या प्रक्रिया होगी। सुप्रीम कोर्ट ने देशभर की अदालतों से एसओपी का पालन करने को कहा है।
यह आदेश प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पार्डीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने अधिकारियों को कोर्ट में तलब करने और उन पर अवमानाना की कार्रवाई शुरू करने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के चार अप्रैल और 19 अप्रैल के आदेशों को रद करते हुए दिया है।
घरेलू सहायकों से संबंधित वेतन भत्ते के नियमों के बारे में जारी आदेश गलत
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश और अन्य सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को घरेलू सहायकों से संबंधित वेतन भत्ते के नियमों के बारे में जारी आदेशों को गलत ठहराया है। दोनों आदेशों में हाई कोर्ट ने चीफ जस्टिस द्वारा बनाए नियमों को नोटीफाई नहीं किए जाने पर अधिकारियों को अदालत में तलब कर लिया था और आपराधिक अवमानाना शुरू करते हुए उन्हें हिरासत में भेजने का आदेश दे दिया था, जिस पर बाद में सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में तीन महत्वपूर्ण कानूनी सवालों पर विचार किया है। इसमें शक्तियों का बंटवारा, अदालत का आपराधिक अवमानना का क्षेत्राधिकार और सरकारी अधिकारियों को बार-बार अदालत में बुलाने की परंपरा शामिल है। सुप्रीम कोर्ट ने 31 पृष्ठ के विस्तृत आदेश में कहा है कि हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को संविधान के अनुच्छेद 229 के तहत हाई कोर्ट के वर्तमान और सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति के उपरांत मिलने वाले लाभों के बारे में नियम बनाने का अधिकार नहीं है। न ही हाई कोर्ट को चीफ जस्टिस द्वारा तैयार नियमों को नोटीफाइ करने का सरकार को आदेश देने का अधिकार है।
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा है कि किसी पक्ष द्वारा कानूनी उपाय किए जाने या आदेश को कानूनी रूप से चुनौती देने पर उसके खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्रवाई शुरू नहीं की जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा ऐसा करने को गलत ठहराया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट ने आदेश में यह नहीं बताया कि प्रदेश सरकार के अधिकारियों ने कैसे आपराधिक अवमानना की। मौजूदा मामले में तो राज्य सरकार ने कानूनी उपाय अपनाते हुए आदेश को वापस लेने के लिए अर्जी दाखिल की थी। प्रदेश सरकार की कार्रवाई किसी भी तरह सिविल या आपराधिक अवमानना में नहीं आती। हाई कोर्ट ने जल्दबाजी में अदालत में पेश अधिकारियों को हिरासत में लेने का आदेश दिया। यह आदेश ठीक नहीं है।
सरकारी अधिकारियों को बार-बार अदालत में बुलाने से करें परहेजः सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी अधिकारियों को बार-बार अदालत में बुलाने से परहेज करने की नसीहत देते हुए कहा कि पहली बार में अधिकारयों को अदालत में तलब करने से बचना चाहिए। वैसे तो अधिकारियों के फैसलों की न्यायिक समीक्षा हो सकती है लेकिन बिना किसी उचित कारण के अधिकारियों को बार-बार बुलाने की इजाजत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों से यह भी कहा है कि उन्हें अधिकारियों पर बेवजह की टिप्पणियां करने से बचना चाहिए और निष्पक्ष व संतुलित न्याय व्यवस्था के लिए विधि अधिकारी के काम को मान्यता दी जानी चाहिए।
अधिकारियों को तलब करने के बारे में जारी एसओपी में सुप्रीम कोर्ट ने कहा- ये एसओपी सभी मुकदमों में जिसमें सरकार पक्षकार है सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट और देश भर की अदालतों में लागू होगी-लंबित विवादों में अधिकारी की पेशी मुकदमे की प्रकृति पर निर्भर करेगी। मोटे तौर पर साक्ष्य के लिए पेशी या समरी प्रोसीडिंग में। लेकिन जहां किसी ऐसे मामले की सुनवाई हो रही है, जो सरकार के खिलाफ नहीं है, तो उन मामलों में अधिकारियों को जटिल नीतियों को समझने के लिए बुलाया जा सकता है
कोर्ट ने कहा कि किसी भी मामले में हलफनामा या दस्तावेज के जरिये बात बताई जा सकती है। अधिकारी की पेशी जरूरी नहीं है और उसे रुटीन में पेश होने का आदेश नहीं दिया जाना चाहिए-सरकारी अधिकारी को तलब किया जा सकता है जब कोर्ट को प्रथम²ष्टया लगे कि कोई विशेष सूचना नहीं दी गई है या उसे जानबूझकर छिपा लिया गया है या फिर सही स्थिति को दबा कर भ्रामक स्थिति बताई गई है-अदालत को किसी अधिकारी को सिर्फ इस आधार पर नहीं तलब करना चाहिए क्योंकि हलफनामे में दिया गया नजरिया अदालत के नजरिये से भिन्न है। ऐसे मामलों में अगर रिकार्ड पर मौजूद सामग्री से मसला हल हो सकता है तो उसे मेरिट के आधार पर तय किया जाना चाहिए
निजी पेशी का आदेश देने से पहले अपनाई जाने वाली प्रक्रिया
अपवाद के मामलों में जहां अधिकारी की निजी पेशी जरूरी है, वहां अदालत अधिकारी को पहला विकल्प वीडियो कान्फ्रें¨सग के जरिये पेश होने का देगी। पेशी के लिए वीसी का लिंक अधिकारी को सुनवाई के एक दिन पहले भेजा जाएगा-जब भी अधिकारी की निजी पेशी का आदेश दिया जाएगा तो उसमें कारण बताया जाएगा कि क्यों उसकी पेशी जरूरी है-निजी पेशी के लिए अधिकारी को पर्याप्त समय दिया जाएगा और उसे इसके बारे में पहले बताया जाएगा ताकि वह पूरी तैयारी से आए और केस में कोर्ट की मदद कर सके।
सरकारी अधिकारी की पेशी के दौरान अपनाई जाने वाली प्रक्रिया
कोर्ट अधिकारी की पेशी के लिए निश्चित समय तय करेगा। अधिकारी को पूरी सुनवाई के दौरान खड़े रहने की जरूरत नहीं है। अधिकारी सिर्फ तभी खड़ा होगा जब कोर्ट में बात रखेगा। सुनवाई के दौरान अधिकारी को अपमानित करने वाली टिप्पणियों से बचा जाएगा। कोर्ट पेश हुए अधिकारी की फिजिकल एपियरेंस, शैक्षणिक पृष्ठभूमि या सामाजिक स्टैंडिंग पर टिप्पणियां करने से बचेगा। अदालत वहां सम्मान और पेशेवर माहौल बनाएगी। पेश हुए अधिकारी के कपड़ों पर टिप्पणी नहीं की जाएगी, जब तक कि उसकी पोशाक उसके आफिस की विशिष्ट ड्रेस कोड का उल्लंघन न करती हो।