सावन में कनखल के कण-कण में भगवान, गंगा शिव सती और दक्षेश्वर के पल पल होते हैं यहां दर्शन

ब्रह्मा पुत्र दक्ष की प्राचीन राजधानी कनखल, वह पुण्य भूमि जिस पर दक्ष ने विराट यज्ञ का आयोजन किया और भगवती सती ने अपमान की ज्वाला में जलकर अपनी आहुति दी। यज्ञ के समय इस भूमि पर विष्णु, ब्रह्मा, 84 हजार ऋषियों और असंख्य देवताओं के चरण पड़े।

महादेव तो दक्ष सुता सती को ब्याहने के लिए यक्ष गंधर्वों और किन्नरों के साथ आए थे। अब श्रावण में वचन निभाने दक्षेश्वर बनकर आते हैं। यह वही भूमि है जिसने देश की 52 शक्तिपीठों के निर्माण का इतिहास रचा है। इसी भूमि पर ऋषियों ने स्वर्ग से इतर पहली बार अरणी मंथन से यज्ञग्नि उत्पन्न की थी।भगवती की मायानगरी कनखल का शिवत्व केंद्र आकाश में है तो महामाया का शक्तिपूज पाताल में। इन्हीं शक्ति केंद्रों की डोर से ब्रह्मांड बंधा है।

अनादि देव ब्रह्मा पुत्र राजा दक्ष की अनोखी नगरी है कनखल। इसी पुण्य भूमि शिव दक्ष सुता सती को ब्याहने तो आए पर दक्ष के जीवित रहते फिर दोबारा नहीं आए। इसी पावन भूमि पर ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र, नारद आदि देवों की साक्षी में दिग्दिगंत से आए 84000 ऋषियों ने अरणी मंथन से यज्ञाग्नि उत्पन्न की थी। यहां शिवत्व भी है, देवत्व भी और महामाया का अपार शक्तिपुंज भी। दक्ष को दिया वचन निभाते हुए भगवान शंकर अब प्रत्येक सावन कनखल में दक्षेश्वर बन कर विराजते हैं।

कुपित शिव ने किया था तांडव
मायापुरी में कनखल शीतला मंदिर में सती का जन्म हुआ था। यज्ञकुंड में दग्ध होने के बाद उनकी पार्थिव देह शिवगण वीरभद्र ने जिस स्थान पर रखी वह आज की मायादेवी है। यहीं से दग्ध देह को कंधे पर उठाकर कुपित शिव ने तांडव किया। सती की देह टूट टूटकर जहां-जहां गिरी वे ही स्थल आज 52 शक्ति पीठों के रूप में पूजे जाते हैं। शीतला मंदिर, सतीकुंड, माया देवी, चंडी देवी और मनसा देवी मंदिरों को मिलकर शक्ति के पांच ज्योतिर्थल बनते हैं। इनका केंद्र आदि पीठ मायादेवी के गर्भस्थल अर्थात पाताल में है ।

शक्ति की भांति शिव के भी पांच ज्योतिर्थल हैं जिनका केंद्र आकाश में है, ये हैं दक्षेश्वर, बिल्वकेश्वर, नीलेश्वर, वीरभद्र और नीलकंठ। पांच ज्योतिर्स्थलों का केंद्र नीलेश्वर और नीलकंठ से जुड़े ऊंचे कैलाश अर्थात आकाश पर है। शिव और शक्ति के ये दसों ज्योतिर केंद्र सावन के महीने में कांवड़ भरने आए शिव भक्तों पर दसों स्थलों से कृपा वृष्टि करते है। दसों स्थलों की कृपा होने पर ही शिवभक्त कांवड़ियों की गंगा यात्रा अपने अपने अभीष्ठ शिवालयों तक सकुशल संपन्न हो पाती है ।

स्कंद पुराण केदारखंड के अनुसार श्रावण मास में हिमालय और शिवालिक पर्वतमालाओं का यह भूभाग शिव शक्ति और मां गंगा की कृपा से युक्त होकर जागृत हो उठता है। गंगा भक्तों पर बिन मांगे भी भगवान शिव कृपा वृष्टि करते हैं। हरिद्वार से निकलने वाली श्रावणी कांवड़ यात्रा सबसे बड़ी यात्रा मानी जाती है। कनखल में सती का मायका और भगवान शंकर की ससुराल है। मायापुरी स्थित मायादेवी मंदिर आदि शक्तिपीठ है। वीरभद्र ने यज्ञकुंड से निकाल कर सती की दग्ध देश इसी स्थान पर रखी थी।

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