सनद रहे लोगों के लिए अच्छी, सुरक्षित और सुविधा युक्त सड़क उनका अधिकार

आमतौर पर यह माना जाता है कि सड़कों का इस्तेमाल चलने के लिए होता है। गांव की पगडंडियों से लेकर राष्ट्रीय राजमार्गो तक का इस्तेमाल चलने के लिए ही होता है। कहीं व्यक्ति पैदल चलता है तो कहीं साइकिल, बाइक और महंगी गाड़ियां चलती नजर आती हैं। लेकिन अब यह अवधारणा बदल रही है। सड़कों का इस्तेमाल वायु सेना अपने लड़ाकू विमानों के आपातकालीन लैंडिंग के लिए भी करना चाहती है। इसकी तैयारी भी शुरू हो चुकी है। हाल ही में राजस्थान में इसका प्रयोग किया गया, जबकि उत्तर प्रदेश में यह प्रयोग काफी पहले किया जा चुका है। सरकार देशभर में कई जगहों पर आपातकालीन लैंडिंग सुविधाएं विकसित कर रही है।

राष्ट्रीय राजमार्गो को वायुसेना द्वारा आपातकालीन लैंडिंग के लिए इस्तेमाल किए जाने लायक बनाने के लिए सरकार बधाई की पात्र है। लेकिन यहां यह सवाल भी पूछा जा रहा है कि आखिर इन सड़कों का प्राथमिक उद्देश्य क्या है? किसी भी राजमार्ग से सरकार और उस पर गाड़ी चलाने वाले लोग क्या उम्मीदें रखते हैं? इन राजमार्गो पर सफर करने वाला हर व्यक्ति यह चाहता है कि सड़कें गड्ढा-मुक्त, जाम मुक्त हों। उनकी यात्रा सुखद और सुरक्षित हो।

जब देश में इस तरह के राजमार्गो के निर्माण के लिए रकम की जरूरत महसूस हुई तो सरकार ने ‘बीओटी’ के तहत निजी निवेश को बढ़ावा दिया और राष्ट्रीय राजमार्गो के विकास-रखरखाव के लिए वाहन चालकों से टोल लेना भी शुरू किया। दुखद यह है कि वाहन चालकों को जिस तरह की गारंटी देकर टोल की प्रथा शुरू की गई थी, उसका उल्लंघन हो रहा है। कुछ राजमार्गो को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर पर टोल देने के बावजूद वाहनों को लंबा इंतजार करना पड़ता है। इसी समस्या को देखते हुए केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय राजमार्गो के टोल प्लाजा को फास्टैग सुविधा से लैस करने का एलान किया। इस मसले पर राज्य सरकारों को अभी काफी कुछ करना बाकी है

दूसरी सबसे बड़ी समस्या आती है खस्ताहाल सड़कों की। स्थानीय सांसदों की मांग पर केंद्र सरकार ने कई मार्गो को राष्ट्रीय राजमार्ग तो घोषित कर दिया है, लेकिन उन सड़कों की हालत जस की तस है। राज्य सरकारों के अंतर्गत आने वाली अधिकांश सड़कों का भी यही हाल है। ठेकेदारों और अफसरों की मिलीभगत का आलम यह है कि सड़कें मजबूत बनाई ही नहीं जातीं, लिहाजा बरसात के बाद अक्सर बेहाल हो जाती हैं।

एक्सप्रेसवे और राजमार्गो पर यात्रियों की सुरक्षा भी अपने आप में बड़ा सवाल बनता जा रहा है। यमुना एक्सप्रेसवे के उदाहरण से हम इसका अंदाजा लगा सकते हैं। दावा किया जाता है कि यह पूरा एक्सप्रेसवे सीसीटीवी की निगरानी में है और इसका डिजाइन ऐसे बनाया गया है कि दुर्घटना होने की आशंका कम से कम है। अगर कोई दुर्घटना हो भी जाती है तो एक्सप्रेसवे के कर्मचारी तुरंत मदद लेकर पहुंच सकते हैं। लेकिन हकीकत इसके उलट है। इसी तरह के हालात देश के कई राष्ट्रीय राजमार्गो और एक्सप्रेसवे के हैं।

इसमें कोई शक नहीं है कि कामकाज के मामले में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और उनका सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रलय बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। कोविड प्रतिबंधों के बावजूद वर्ष 2020-21 के दौरान राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण की गति 36.5 किमी प्रतिदिन रही है जो अब तक की सबसे तेज गति है। लेकिन जरूरत इन तमाम प्रयासों को समग्रता से करने की है, ताकि देश के सभी राजमार्गो की हालत समान रूप से अच्छी हो सके, लोगों की शिकायत कम हो और उन्हें बेहतर सुविधा मिल सके। सनद रहे कि किसी भी तरह की गाड़ी खरीदते समय भी लोगों को रोड टैक्स का भुगतान करना ही पड़ता है इसलिए अच्छी, सुरक्षित और सुविधायुक्त सड़क उनका अधिकार भी है।

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