विदेशी कोयले के चलते खड़ी हुई है. इस चुनौती से निपटने के लिए जहां गुजरात सरकार आम आदमी के बिजली बिल को महंगा करने की तैयारी कर रही है वहीं महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान और हरियाणा जैसे राज्यों के पास भी बिजली बिल में इजाफा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहेगा. ये सभी राज्य भी अपनी जरूरत की बिजली टाटा, अडानी और एस्सार के गुजरात स्थित पावर स्टेशन से ही खरीदते हैं. इन तीनों पावर प्लांट की कुल उत्पादन क्षमता 10,000 मेगावॉट है
देश में कोयले से संचालित पावर स्टेशनों के सामने गंभीर चुनौती खड़ी हो गई है. इस चुनौती को देखते हुए गुजरात सरकार ने राज्य में टाटा, अडानी और एस्सार पावर कंपनियों को राज्य में बिजली की दरों में इजाफा करने की छूट देने की पहल कर दी है.
महीनों के दौरान आंतरिक दबाव के चलते इंडोनेशिया ने निर्यात होने वाले कोयले की कीमत में लगातार इजाफा किया है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले की कीमत में जारी गिरावट के चलते इंडोनेशिया के कोयला खदानों के ठप पड़ जाने का खतरा खड़ा था जिससे बचने के लिए इंडोनेशिया सरकार ने निर्यात किए जाने वाले कच्चे कोयले की कीमत में लगातार इजाफा किया है.
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गौरतलब है कि इंडोनेशिया ने सितंबर 2010 में कोल माइनिंग और प्राइसिंग फॉर्मूले में बड़ा बदलाव किया था. इस वक्त तक इंडोनेशिया का कोयला अंतरराष्ट्रीय बाजार में सबसे सस्ती दरों पर उपलब्ध था जिसके चलते भारतीय निजी पावर कंपनियों ने इंडोनेशिया के सस्ते कोयले को आधार बनाते हुए अपना संयंत्र लगाया. लेकिन फॉर्मूले में हुए बदलाव से भारतीय कंपनियों पर खतरा भी खड़ा हो गया था कि भविष्य में जब भी इंडोनेशिया कोयले की कीमत में बड़ा इजाफा करेगा तब भारतीय कंपनियों के सामने अस्तित्व का संकट होगा.
लिहाजा, बीते कुछ महीनों से इंडोनेशिया में कच्चे कोयले की कीमत हो रहे इजाफे के बाद गुजरात सरकार ने जुलाई में उच्च स्तरीय समिति का गठन किया. इस समिति ने इंडोनेशिया में बढ़ती कीमतें और 2010 में फॉर्मूले में हुए बदलाव का हवाला देते हुए निजी क्षेत्र की तीनों कंपनियों को बिजली की मौजूदा दरों में इजाफा करने की सलाह दी.
सभी पॉवर प्रोजेक्ट्स को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) का सहारा है और एसबीआई ने उच्च स्तरीय समिति को बताया कि ये सभी बिजली संयंत्र घाटे में हैं और इन्हें प्रमोटरों के अतिरिक्त निवेश के सहारे चलाया जा रहा है. एसबीआई का दावा है कि मौजूदा स्थिति में इन पावर कंपनियों को साख का गिरना तय है जिससे ये नॉन परफॉर्मिंग प्लांट होने की कगार पर है. ये कंपनियां डूबती हैं तो इन कंपनियों को कर्ज देने वाले बैंक को बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा.