श्राद्ध पक्ष : पितृ होंगे प्रसन्न, इन 7 नियमों का करें पालन

श्राद्ध या पितृ पक्ष में पितरों की सेवा की जाती है। पितरों को भोजन कराया जाता है, जिससे कि वे तृप्त होकर हमें आशीर्वाद प्रदान करते हैं। इस दौरान पूजा-पाठ में हमें किसी भी प्रकार की लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए। आइए जानते हैं श्राद्ध में ध्यान रखने वाली कुछ विशेष बातों के बारे में।

– श्राद्ध के दिनों में भगवदीता के 7वें अध्याय का माहात्म्य पढ़ना चाहिए। माहात्म्य के बाद आपको फिर पूरे अध्याय का विधिवत पाठ करना चाहिए। अंत में उसका फल अपने पितृ को अर्पित कर दें।

– श्राद्ध के शुरू होने से पहले और उसका समापन होने के बाद निम्नलिखित मंत्र का 3-3 बार जाप करना चाहिए।

ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च
नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:।

– यदि आप श्राद्ध में ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा मंत्र का जाप करते हैं, तो इससे पितृ संतुष्ट हो जाते हैं और इसका फल आपको यह मिलता है कि वे आपके पूरे कुल को शुभाशीष प्रदान करते हैं।

– जिनका कोई पुत्र नहीं होता है, वे कैसे श्राद्ध कर सकते हैं ? आपको बता दें कि इस स्थिति में दौहित्र (पुत्री के पुत्र) द्वारा यह प्रक्रिया पूर्ण कराई जा सकती है। यदि इस तरह की स्थिति भी न बने तो पत्नी स्वयं अपने पति का बिना मंत्रोच्चारण के साथ श्राद्ध कर सकती हैं।

– श्राद्ध या पूजा के दौरान धूप का उपयोग अवश्य करना चाहिए। साथ ही ध्यान रहें कि बस घी का ही धुंआ न किया जाए। कंडे का भी उपयोग होना चाहिए।

– पूजा में बिल्वफल का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। जबकि समिधा जरूर अर्पित करनी चाहिए।

– श्राद्ध पक्ष के दौरान आपको प्रतिदिन 1 माला द्वादश मंत्र “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” के साथ जाप करनी चाहिए। साथ ही ध्यान रहें कि उसका (माला का) फल हर दिन अपने पितृ को आप अर्पित करते रहें।

किसने किया था सबसे पहला श्राद्ध ?

श्राद्ध का इतिहास महाभारत काल का है। सबसे पहले श्राद्ध का उपदेश महर्षि अत्रि द्वारा निमि को प्रदान किया गया था। महर्षि निमि द्वारा इसकी शुरुआत की गई थी।

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