जकार्ता एशियाई खेल में आज भारत को स्वर्ण पदक के साथ गौरवांवित करने वाले सौरभ चौधरी इंडिया कैंप में अपने प्रशिक्षण के दौरान अंग्रेज कोच की भाषा नहीं समझ पाता था। स्टार शूटर जीतू राई के स्थान पर जकार्ता एशियाई खेल दल में शामिल वह सौरभ का ध्यान सिर्फ अंग्रेज कोच के भाव पर रहता था। एकाग्र होकर भाव समझने वाले सौरभ ने अपनी एकाग्रता के दम पर 16 वर्ष की उम्र में ही एशियाई खेल में स्वर्ण पदक जीतने में सफलता प्राप्त की। आज मेरठ में उनके गांव में जश्न का माहौल है।
कोच विदेशी मिले तो सौरभ अंग्रेजी नहीं समझ पाता था, किंतु उसे पता था कि लक्ष्य कैसे भेदना है। कोच के भावों को समझने के साथ ही दूसरे कोच भारत के स्टार शूटर रहे जसपाल राणा ने भी उसकी मदद की। पिता जगमोहन बताते हैं कि सौरभ सिर्फ 16 साल का है, किंतु उसकी एकाग्रता किसी भी उम्र के खिलाड़ी को मात दे देगी। शूटिंग में एकाग्रता ही सबसे बड़ी पूंजी है। खेल पंडितों की मानें तो ऐसी एकाग्रता का शूटर देशभर में नहीं है। गोल्ड जीतने के बाद सौरभ के गांव में जश्न का माहौल है। माता तथा पिता ने परिवार के अन्य लोगों के साथ गांव में मिठाई बांटकर जश्न मनाया।
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