‘मराठा मिलिट्री लैंडस्केप्स’ को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल कर लिया गया है। अब महाराष्ट्र सरकार इनके संरक्षण के लिए 10-वर्षीय व्यापक योजना बनाई जा रही है। संरक्षण योजना में ‘मराठा मिलिट्री लैंडस्केप्स’ में शामिल 12 किलों की ऐतिहासिक विशेषताओं को बनाए रखने, कचरा प्रबंधन और मानव संसाधन की तैनाती पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इन किलों के उन क्षेत्रों के संरक्षण को खास प्राथमिकता दी जाएगी, जहां बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। इस काम में अलग-अलग विभागों को भी शामिल किया जाएगा। उन्होंने कहा कि भले ही यूनेस्को का दर्जा मिल गया है, फिर भी कुछ चुनौतियां हैं जिनसे हमें पार पाना होगा। हमने सभी 12 किलों में इन समस्याओं से निपटने के लिए एक 10-वर्षीय योजना तैयार की है। उन्होंने कहा कि हर किले की अपनी विशिष्ट विशेषताएं हैं, इसलिए एक समान दृष्टिकोण कारगर नहीं होगा।
अधिकारी ने कहा कि हम पर्यटकों की पहुंच और बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने के लिए जिला योजना समितियों, लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी), पर्यटन विभाग और अन्य सरकारी एजेंसियों के साथ मिलकर काम करेंगे। इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि तमाम सुविधाओं कचरा प्रबंधन और सुरक्षा के लिए इन किलों में मामूली प्रवेश भी लगाया जा सकता है।
बीते शुक्रवार को यूनेस्को ने दी थी मान्यता
‘मराठा मिलिट्री लैंडस्केप्स’ में मराठा साम्राज्य द्वारा बनाए गए खास किले और उनकी सैन्य व्यवस्था शामिल है। इसे शुक्रवार को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया। यह भारत की 44वीं धरोहर है, जिसे यह मान्यता मिली है।
क्या है ‘मराठा मिलिट्री लैंडस्केप्स’?
यह भारत का एक सीरियल नॉमिनेशन था, जिसमें कुल12 किले शामिल हैं। ये किले 17वीं से 19वीं सदी के बीच बनाए गए थे और मराठा साम्राज्य की सैनिक रणनीति और किलाबंदी की अनूठी शैली को दर्शाते हैं। ‘मराठा मिलिट्री लैंडस्केप्स’ में शामिल किलों में महाराष्ट्र के 11 किले साल्हेर, शिवनेरी, लोहगढ़, खांदेरी, रायगढ़, राजगढ़, प्रतापगढ़, सुवर्णदुर्ग, पन्हाला, विजयदुर्ग, सिंधुदुर्ग शामिल हैं। वहीं तमिलनाडु का एक किला- जिन्जी भी शामिल था।