शास्त्रों में कई ऐसी कथाएं जिन्हे बहुत कम लोगों ने सुना है. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे एक ऐसी कथा जो ऋषि पराशर की है.
उनसे उनकी पत्नी सत्यवती ने सुहागरात मनाने के पहले कुछ शर्ते राखी थी जो आज हम आपको बताने जा रहे हैं. आइए जानते हैं इस कथा को.
कथा – ऋषि पराशर बहुत विद्वान और योग सिद्धि संपन्न प्रसिद्ध ऋषि थे. एक दिन वे यमुना पार करने के लिए नाव पर सवार हुए. वह नाव एक मछुआरे धीवर की पुत्री सत्यवती चला रही थी. ऋषि पराशर उसके रूप और यौवन को देखकर विचलित और व्याकुल हो उठे. ऋषि पराशर ने उस निषाद कन्या सत्यवती से प्यार करने की इच्छा जताई. सत्यवती ने कहा कि यह तो अनैतिक होगा. मैं किसी भी प्रकार के अनैतिक संबंध से संतान पैदा करने के लिए नहीं हुई हूं, लेकिन ऋषि पराशर नहीं माने और उससे प्रणय निवेदन करने लगे.
तब सत्यवती ने ऋषि के सामने 3 शर्तें रखीं. पहली यह कि उन्हें ऐसा करते हुए कोई नहीं देखे. ऐसे में तुरंत ही ऋषि पाराशर ने एक कृत्रिम आवरण बना दिया दूसरी शर्त यह कि उनकी कौमार्यता किसी भी हालत में भंग नहीं होनी चाहिए. ऐसे में ऋषि ने आश्वासन दिया कि बच्चे के जन्म के बाद उसकी कौमार्यता पहले जैसी ही हो जाएगी. तीसरी शर्त यह कि वह चाहती है कि उसकी मछली जैसी दुर्गंध एक उत्तम सुगंध में परिवर्तित हो जाए. तब पराशर ऋषि ने उसके चारों ओर एक सुगंध का वातावरण निर्मित कर दिया जिसे कि 9 मील दूर से भी महसूस किया जा सकता था. उक्त 3 शर्तों को पूरा करने के बाद सत्यवती और ऋषि पराशर ने नाव में ही सुहागरात मनाई. इसके परिणामस्वरूप एक द्वीप पर उनको एक पुत्र हुआ जिसका नाम कृष्णद्वैपायन रखा. यही पुत्र आगे चलकर महर्षि वेद व्यास के नाम से प्रसिद्ध हुआ.
धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर को महर्षि वेद व्यास का ही पुत्र माना जाता है. इन्हीं 3 पुत्रों में से एक धृतराष्ट्र के यहां जब कोई पुत्र नहीं हुआ तो वेदव्यास की कृपा से ही 99 पुत्र और 1 पुत्री का जन्म हुआ. यदि सत्यवती ऋषि पराशर के साथ सुहागरात नहीं मनाती तो महाभारत कुछ और होती. चलो ऐसा कर भी लिया था तो यदि वह महाराजा शांतनु से विवाह नहीं करती तो भी महाभारत का इतिहास कुछ और ही होता. इसे सुहागरात कहना उचित नहीं…