विदुर महाभारत के सबसे लोकप्रिय पात्रों में से एक थे. विदुर को धर्मराज का अवतार माना जाता है. वे सदा सत्य बोलते थे. जीवन भर वे सत्य के मार्ग पर चले. उनकी इसी खूबी के कारण कौरव और पांडव भी उनकी प्रशसा और सम्मान करते थे.
भगवान श्रीकृष्ण भी उनका सम्मान करते थे. वे राजा धृतराष्ट्र के महामंत्री और सलाहकार थे. धृतराष्ट्र और विदुर के मध्य जो भी संवाद हुआ उसे ही विदुर नीति कहा गया. आइए जानते हैं आज की विदुर नीति-
विदुर कहते हैं कि ईश्वर को प्राप्त करने का कोई दूसरा मार्ग है ही नहीं, सत्य ही वह मार्ग है जिस पर चलकर ईश्वर के दर्शन किए जा सकते हैं. जिस प्रकार समुद्र को पार करने के लिए एक नाव की जरूरत पड़ती है उसी प्रकार स्वर्ग के लिए सत्य के मार्ग के सिवाए कोई दूसरा मार्ग नहीं है.
जो यह बात नहीं समझते हैं उनका जीवन व्यर्थ है. वे स्वयं को अंधकार में रखे हुए हैं. ऐसे व्यक्ति का चित्त भटकता रहता है. उसे कहीं भी शांति नहीं मिलती है. सबकुछ होते हुए भी उसके पास मानसिक सुख की कमी बनी रहती है.
वह समझ ही नहीं पाता है कि उसके जीवन का लक्ष्य क्या है. प्रेत की तरह उसका मन भटकता रहता है. वह दूसरों की इच्छाओं की पूर्ति के लिए दिन रात व्यस्त रहता है. व्यक्ति को शांति तभी मिलती है जब वह सत्य को अपना लेता है. सभी दुखों की एक ही दवा है सत्य की पहचान जो सत्य को समझ लेता है वह दुखों से मुक्त हो जाता है.
विदुर के अनुसार एक व्यक्ति पाप करता है, लेकिन उसके पाप से अर्जित धन संपदा का आनंद कई लोग उठाते हैं. लेकिन समय आने पर आनंद उठाने वाले तो बच जाते हैं लेकिन पाप करने वाले व्यक्ति को उसके कृत्यों का दोष सहना करना पड़ता है.
यह किसी भी रूप में हो सकता है. दंड, रोग, आपदा और हानि के रूप में भी पाप के दोष को भोगना पड़ता है. इसलिए व्यक्ति को पापमुक्त रहना चाहिए. कभी कोई अनुचित कार्य नहीं करने चाहिए. व्यक्ति जो भी अच्छा बुरा करता है उसकी भारपाई उसे इसी जन्म में करनी ही पड़ती है. ये जीवन का सत्य है. जो इस सत्य को नहीं समझते हैं वे जीवन में संकटों और दुखों से घिरे रहते हैं.