वो हो तो इस कारण येदियुरप्पा के बेटे की शिमोगा में ऐसे बची इज्जत

कर्नाटक उपचुनाव के नतीजे आ चुके हैं. तीन लोकसभा और दो विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे 4-1 के रहे हैं. दो लोकसभा और दो विधानसभा सीटें कांग्रेस+जेडीएस गठबंधन के खाते में गई हैं. वहीं केवल शिमोगा लोकसभा सीट पर बीजेपी ने जीत दर्ज की है. शिमोगा से बीजेपी के बीवाय राघवेंद्र ने 52 हजार 148 वोटों से जीते हैं. उन्होंने कांग्रेस+जेडीएस प्रत्याशी एस मधु बंगारप्पा को हराया है. बीवाय राघवेंद्र पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के बेटे हैं. वहीं मधु बंगारप्पा कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री एस बंगारप्पा के बेटे हैं. यानी बीजेपी के पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे ने कांग्रेस के पूर्व सीएम के बेटे को हराया है.

शिमोगा में बीजेपी की जीत को पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा की इज्जत बचने से जोड़कर देखा जा रहा है. अगर आप कर्नाटक की राजनीति में थोड़ी भी दिलचस्पी रखते होंगे तो अपके जेहन में सवाल उठ रहे होंगे कि आखिर कांग्रेस+जेडीएस गठबंधन की आंधी में बीजेपी ने शिमोगा का किला कैसे बचाने में सफल रही. आइए आपके जेहन में उठ रहे इस सवाल का जवाब समझने की कोशिश करते हैं.

येदियुरप्पा का गढ़ है शिमोगा
कर्नाटक का शिमोगा जिला बीजेपी के वरिष्ठ नेता बीएस येदियुरप्पा का गढ़ माना जाता है. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसी साल हुए विधानसभा चुनाव में इस जिले की आठ में से 7 सीटों पर बीजेपी जीती थी. शिमोगा जिले के तहत आठ विधानसभा सीटें आती हैं. ये सीटें शिकारीपुरा, शिमोगा ग्रामीण, शिमोगा, सागर, सोराब, भद्रावती, बेनदूर और तिरथल्ली है. 

भद्रावती विधानसभा सीट को छोड़कर बाकी सीटों पर बीजेपी उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी. शिकारीपुरा विधानसभा सीट से बीएस येदियुरप्पा खुद मैदान में उतरे थे और उन्होंने बंपर वोटों से जीत हासिल की है. येदियुरप्पा को 86 हजार 983 वोट मिले हैं, जबकि जेडीएस उम्मीदवार को 51 हजार 566 वोट मिले थे. इस तरह से उन्होंने 35 हजार 417 वोटों से जीत हासिल की है.

लिंगायत बहुल है शिमोगा
शिमोगा जिला लिंगायत बहुल इलाका माना जाता है. बीएस येदियुरप्पा भी लिंगायत समुदाय से आते हैं. येदियुरप्पा 1983 में इस सीट से पहली बार चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी. इसके बाद उन्होंने 1985 उप-चुनाव, विधानसभा चुनाव 1989, 1994, 2004, 2008, 2013 और 2018 में जीत हासिल की. वह यहां से 9 बार चुनाव लड़ चुके हैं और सिर्फ एक बार हारे हैं. हालांकि साल 2013 में वह कर्नाटक जनपक्ष (KJP) से उम्मीदवार थे, जो दल उन्होंने बीजेपी से अलग होकर बनाया था.

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