कोरोना वायरस के लक्षण वाले बच्चों के मुकाबले ज्यादातर एसिम्पटोमैटिक बच्चों में वायरस का बहुत कम लेवल पाया गया है. शोधकर्ताओं ने कोरोना वायरस संक्रमण के 800 बाल चिकित्सा मामलों का विश्लेषण कर खुलासा किया. हालांकि, जर्नल ऑफ क्लीनिक माइक्रोबायोलॉजी में प्रकाशित शोध में चेताया गया कि इस खोज का नतीजा स्पष्ट नहीं है. इसके लिए विस्तार से शोध करने की जरूरत पर बल देते हुए कहा गया कि कैसे कम वायरल लोड कोविड-19 ट्रांसमिशन को प्रभावित करता है.
एसिम्टोमैटिक बच्चों में कम कोरोना वायरस का लेवल-
बाल चिकित्सा संक्रामक रोग विशेषज्ञों का कहना है कि शोध से बिना लक्षण वाले संक्रमित स्कूली बच्चों की सुरक्षा के बारे में कुछ आश्वासन मिलता है. इन अनसुलझे सवालों से पता चलता है कि जोखिम से राहत के लिए स्कूलों, डे-केयर में उपाय किए जाने चाहिए और कोविड-19 के फैलाव को रोकने के लिए ये समुदाय गंभीर बना हुआ है. इसलिए, बच्चों को मास्क जरूर पहनना चाहिए, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना चाहिए और अपने हाथों को बार-बार धोना चाहिए.

शोधकर्ताओं का कहना है कि ये अनुमान लगाना मुश्किल है कि कौन बच्चा वायरस को ज्यादा या कम फैलाता है. अमेरिकी शोधकर्ता लैरी कोकिओलेक कहते हैं, “क्योंकि हर ग्रुप के बच्चों की जांच के बाद पता चला कि कुछ एसिम्पटोमैटिक बच्चों में ज्यादा वायरल लोड होता है. फिर भी, उच्च वायरल लोड वाले एसिम्पटोमैटिक बच्चों के ग्रुप में लक्षण वाले बच्चों की तुलना में कम वायरल लोड का पता चला.” शोधकर्ताओं ने 339 एसिम्पटोमैटिक और 478 सिम्पटोमैटिक बच्चों का परीक्षण किया. PCR की जांच में कोविड-19 पॉजिटिव पाए गए सभी बच्चों की उम्र 0-17 साल के बीच थी.
बच्चों के लिए कम भरोसेमंद जांच के प्रति सावधान-शोध-
शोधकर्ताओं ने बताया कि एसिम्पटोमैटिक बच्चों में पाया गया वायरस का लेवल रैपिड एंटीजन टेस्ट की तुलना में ज्यादा कम था. इसलिए, समझना जरूरी है कि रैपिड एंटीजन टेस्ट PCR टेस्ट के मुकाबले वायरस का पता लगाने में कम सक्षम साबित होते हैं. शोध की बुनियाद पर उन्होंने बाल चिकित्सा में कम भरोसेमंद जांच तकनीक के इस्तेमाल के प्रति सावधान किया. साथ ही उन्होंने जोर दिया कि एसिम्टोमैटिक बच्चों में वायरल लोड को ज्यादा बेहतर तरीके से समझने के लिए और शोध किए जाएं.
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