राजधानी का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) लगातार खराब होता जा रहा है। हवा में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक और हेवी मेटल सांस के साथ फेफड़ों की क्षमता को प्रभावित कर मूक कातिल बनकर लोगों की सांस उखाड़ रहा है। आलम यह है कि पिछले साल सातवें पायदान पर रही दिल्ली केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की हालिया रिपोर्ट स्वच्छ हवा सर्वेक्षण 2025 में 32वें स्थान पर पहुंच गई है।
सर्वेक्षण के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 10 लाख से अधिक आबादी वाले 48 शहरों की इस रैंकिंग में दिल्ली की रैंकिंग में 24 पायदान की गिरावट आई है। पिछले साल 2024 में यह सातवें पायदान पर थी। इसने विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों की चिंता बढ़ा दी है। रिपोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानकों से कहीं अधिक है। पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5) का स्तर खतरनाक स्तर पर बना हुआ है, जो सांस संबंधी बीमारियों और जीवन प्रत्याशा पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। इसके अलावा, राजधानी की बयार को राज्य स्तर पर 172.3 और अंतिम स्कोर 157.3 मिला है।
आलम यह है शिकागो यूनिवर्सिटी के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में वायु प्रदूषण के कारण औसतन जीवन प्रत्याशा में 8 साल की कमी आ रही है। सर्वेक्षण में एनसीएपी के तहत किए गए प्रयासों को भी रेखांकित किया गया है, जिसका उद्देश्य 2019 से चिन्हित शहरों में वायु प्रदूषण को कम करना है। इस कार्यक्रम के तहत वायु गुणवत्ता निगरानी, उत्सर्जन मानकों को लागू करना और जन जागरूकता बढ़ाना शामिल है।
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