दिल्ली हाईकोर्ट ने साथ ही कहा कि यह समूह अब भी देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए खतरा बना हुआ है और भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त है।
दिल्ली हाईकोर्ट के एक न्यायाधिकरण ने लिबरेशन टाइगर ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) पर प्रतिबंध पांच और वर्ष के लिए बढ़ाने के सरकार के फैसले को बरकरार रखा। साथ ही कहा कि यह समूह अब भी देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए खतरा बना हुआ है और भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त है।
दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की सदस्यता वाले न्यायाधिकरण ने कहा कि लिट्टे का सभी तमिलों के लिए एक अलग मातृभूमि (तमिल ईलम) का उद्देश्य भारत की संप्रभुता व क्षेत्रीय अखंडता के लिए खतरा है। न्यायाधिकरण ने कहा कि ऐसा करना भारत के भूभाग के एक हिस्से को अलग करने के समान है।
इस प्रकार यह गैरकानूनी गतिविधियों के दायरे में आता है। न्यायाधिकरण ने अपने अंतिम निष्कर्ष में कहा, उसका मानना है कि गैरकानूनी गतिविधियां निवारण अधिनियम (यूएपीए) के अंतर्गत लिट्टे को गैरकानूनी संगठन घोषित करने के लिए पर्याप्त और ठोस सबूत मौजूद हैं।
लिट्टे पर प्रतिबंध पांच साल के लिए बढ़ाए जाने के बाद गृह मंत्रालय ने यूएपीए के तहत 14 मई 2024 को न्यायाधिकरण का गठन किया गया था। दलीलों पर गौर करने के बाद न्यायाधिकरण ने लिट्टे पर लगा प्रतिबंध पांच साल बढ़ाने के सरकार के फैसले को बरकरार रखा।
गोपनीय ढंग से गतिविधियां जारी
गृह मंत्रालय की तरफ से शुक्रवार को जारी अधिसूचना के मुताबिक, सरकार ने न्यायाधिकरण के समक्ष कहा कि मई 2009 में श्रीलंका में सैन्य हार के बाद भी लिट्टे ने ईलम की अवधारणा को नहीं छोड़ा है। वह गोपनीय ढंग से धन जुटाने और प्रचार गतिविधियों के माध्यम से इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए काम कर रहा है। बाकी बचे रह गए लिट्टे नेता या कार्यकर्ता बिखरे कार्यकर्ताओं को फिर से संगठित करने तथा स्थानीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संगठन को पुनर्जीवित करने के प्रयास कर रहे हैं।