दीपावली पूजा और लक्ष्मी पूजा के अवसर पर प्रमुख रूप से भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी के तीन रूपों की पूजा की जाती है। भगवान गणेश की पूजा किसी भी शुभ कार्य को आरंभ करने से पूर्व की जाती है क्योंकि ये विघ्नहर्ता यानी बाधाओं को हरने वाले हैं। देवी लक्ष्मी की पूजा की उनके तीन रूपों में की जाती है- महालक्ष्मी (धन और संपत्ति की देवी), महासरस्वती (शिक्षा और विद्या की देवी), और महाकाली, कुबेर (धन खजाने के देवता) की भी पूजा की जाती है।
लक्ष्मी पूजा
देवी लक्ष्मी भ्रगु की बेटी थी और जब सभी देवताओं को निर्वासित किया गया था तब इन्होंने दूध के समुद्र में जाकर आश्रय लिया था। समुद्र मंथन के समय लक्ष्मी जी का दुबारा जन्म हुआ। जब देवताओं ने लक्ष्मी जी की सुंदरता को देखा तो उन्हें इनकी सुंदरता से प्यार हो गया। भगवान शिव ने लक्ष्मी को अपनी पत्नी होने का दावा कर दिया लेकिन उन्होंने बाद में लक्ष्मी को भगवान विष्णु के हाथों में सौंप दिया जोकि लक्ष्मी यही चाहती थी। लक्ष्मी उजाला, सुंदरता, सौभाग्य और धन सम्पत्ति की दैवी हैं। जबकि प्राय: लक्ष्मी जी की पूजा सफलता प्राप्त करने के लिए की जाती है। लेकिन वे उन भक्तों के पास हमेशा नहीं रहती हैं जो आलसी है और धन संपत्ति के लिए जो उनकी पूजा करता है।
लक्ष्मी पूजा करने की विधि
सबसे पहले जिस स्थान पर पूजा करना है वहां साफ सफाई कर नया कपड़ा बिछाएं। इसके मध्य में थोड़ा सा अनाज रखें और इसके ऊपर कलश, लोटा स्थापित करें। कलश में तीन चौथाई पानी भरें और इसमें एक सुपारी, एक फूल, एक सिक्का और कुछ चावल के दाने डालें। कलश में डालने के लिए पांच तरह के पत्ते या आम के पत्ते का इंतजाम करें। कलश के पास थोड़ा सा खाद्य पदार्थ रखें और इसको चावल से ढंक दें। अब हल्दी का इस्तेमाल करते हुए चावल के ऊपर कमल का चित्र बनाएं और इसके बाद देवी लक्ष्मी की प्रतिमा को एक सिक्के के साथ इसके ऊपर स्थापित करें। कलश के सामने दायीं ओर (दक्षिण-पश्चिम दिशा) भगवान गणेश की प्रतिमा को स्थापित करें। इसके साथ ही इस स्थान पर कलम और किताब को रखें और अपने कार्य के अनुसार जो कुछ भी रखना चाहते हों यहां रख सकते हैं। पूजा आरंभ करने से पूर्व एक दीपक और अगरबत्ती जलाएं और उसके साथ ही कलश स्थल पर हल्दी, कुमकुम और कुछ फूलों को रख पूजा प्रारंभ करें। पूजा की बर्तनों को शुद्ध करने के लिए इस पानी का इन बर्तनों पर छिड़काव करें। पंचामित्र बनाने के लिए पांच आवश्यक सामग्री का इस्तेमाल करें- जो इस प्रकार हैं- दूध, दही, घी, चीनी और शहद।
गणेश जी पूजा के साथ शुरूआत करें क्योंकि गणेश जी की पूजा के साथ ही सभी पूजा का आरंभ होता है। गणेश मंत्र और गणेश आरती के साथ पूजा की शुरूआत करें। गणेश जी की प्रतिमा पर फल, फूल और मिठाइयों को चढ़ाएं। अब देवी लक्ष्मी की पूजा लक्ष्मी मंत्र के साथ करें। उनकी प्रतिमा पर फूलों को चढ़ाएं। एक थाली में लक्ष्मी की प्रतिमा को रखें और इसे पंचमित्र पानी से साफ करें और इस पानी से सोने से बने गहने को भी धोएं। प्रतिमा को अच्छी तरह पोछ लेने के बाद इसे कलश के समीप रख दें। इसके अलावा फूल को पानी और पंचमित्र में डूबो कर प्रतिमा पर छिड़काव कर सकते हैं। देवी की प्रतिमा पर चंदन का मिश्रण, हल्दी, कुमकुम को चढ़ाएं। इसके साथ ही माला को देवी की प्रतिमा को पहनाएं। उसके बाद कुछ फूल और मिठाइयां, नारियल और फल को भी चढ़ाएं।
इसके बाद स्याही और किताब की पूजा करें। किताब के पहले पन्ने को खोलें और उस पर शुभ लाभ लिखें और इस पर घड़ी की सुई की समान दिशा में स्वास्तिक चिन्ह बनाएं। इसके बाद अपने सारे सोने और चांदी के सिक्के को पानी, पंचमित्र से धोएं। अब देवताओं की प्रतिमा पर चावल और बताशा को चढ़ाएं। और आखिर में देवी लक्ष्मी की आरती और वैश्विक आरती ओम जय जगदीश हरे पूजा आरंभ करें।
गणेश पूजा
भगवान गणेश 33 करोड़ देवी देवताओं में सबसे पहले पूजे जाने वाले देवता हैं। इनकी उपासना करने से सभी विघ्नों का नाश होता है और सुख-समृद्धि, धन-बल और बुद्धि-ज्ञान की प्राप्ति होती है। इसलिए दीपावली पूजन में भी सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाती है। हिन्दू देव समूहों में इन दोनों देवताओं में कोई संबंध नहीं है, गणेश शिव और पार्वती के पुत्र हैं। तदापि लक्ष्मी और गणेश जी को साथ-साथ रखा जाता है। गणेश पूजा के दौरान देवी लक्ष्मी की प्रतिमा को बायीं ओर स्थापित करें और भगवान गणेश की प्रतिमा को दायीं ओर रखें।
काली पूजा
मां काली मां दुर्गा की ही एक रूप हैं। वे निडर और अतिरूर हैं। ऐसी मान्यता है कि वे देवों में सबसे शक्तिशाली और पराक्रमी देवी हैं। मां काली की पूजा अहम को कम करने और सभी नकारात्मक प्रवृति जो धार्मिक प्रगति और यश प्राप्ति में बाधक हैं को दूर करता है। कार्तिक अमावस्या जो कि अटूबर-नवंबर महीने में आता है कि रात में काली की पूजा की जाती है। काली पूजा भयानक दैवी की तीव्र स्तुति करना है। काली पूजा करने का हमारा मुख्य ध्येय यह है कि इस देवी की सहायता से अपने अंदर और बाहर विश्व की सारी बुराइयों का खात्मा हो जाए। इसलिए दीपावली के दिन काली मां की पूजा की जाती है।
मां लक्ष्मी जी की आरती
जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता।। जय.।।
ब्रह्माणी, रूद्राणी, कमला, तूही है जग माता।
सूर्य चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता।। जय.।।
दुर्गारूप निरंतारा, सुख-संपत्ति दाता।
जो को तुमको ध्याता, ऋद्धि-सिद्धि पाता।। जय.।।
तूही पाताल निवासिनी, तूही शुभ दाता।
कर्म प्रभाव प्रकाशक, जगनिधि की त्राता।। जय.।।
जिस घर में तुम रहती, सब सद्गुण आता।
कर साके कोई कर ले, मन नहीं घबराता।। जय.।।
तुम बिन यज्ञ न होवे, वस्त्र ना कोई पाता।
खान-पान का वैभव, सब तुमसे ही आता।। जय.।।
शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि जाता।
रत्न चतुर्दश तुम ही, कोई नहीं पाता।। जय.।।
आरती लक्ष्मी जी की, जो कोई नर गाता।
उर आनंद उमंग आती, पाप उतर जाता।। जय.।।