अयोध्या : 70 एकड़ में विस्तृत रामजन्मभूमि परिसर में रामलला की जन्मभूमि के अलावा अनेक त्रेतायुगीन अनेक धरोहर हैं। इनकी पुष्टि जीर्ण-शीर्ण टीलों के साथ उस शिलालेख से होती है, जिसे सन् 1902 में एडवर्ड तीर्थ विवेचनी सभा की ओर से लगवाया गया था। अयोध्या की पौराणिकता विवेचित करते रुद्रयामल, स्कंदपुराण एवं विष्णु पुराण जैसे ग्रंथों के वर्णन और विशद स्थलीय शोध के आधार पर विवेचनी सभा ने रामनगरी की 84 कोसीय परिधि में जो 148 शिलालेख लगवाये, उनमें से 43 अकेले रामकोट क्षेत्र में थे। रामजन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए मुकर्रर 70 एकड़ भूमि रामनगरी के इसी रामकोट क्षेत्र में है और इस 70 एकड़ के परिसर में ही विवेचनी सभा के शिलालेख से सज्जित ऐसे दर्जन भर के करीब स्थल हैं, जिनसे युगों बाद भी भगवान राम के समय की गवाही बखूबी बयां होती है। इनमें से वह कुबेर टीला तो इसी बुधवार को चर्चा में भी आ चुका है, जहां भव्य मंदिर निर्माण की कामना से मणिरामदास जी की छावनी के उत्तराधिकारी महंत कमलनयनदास ने भोले बाबा का अभिषेक किया। शास्त्रों में उल्लेख है कि युगों पूर्व धनपति कुबेर ने इस स्थल पर भगवान शिव की आराधना की थी। रामजन्मभूमि परिसर में कुबेर टीला के अलावा भगवान राम की लंका विजय में अहम भूमिका निभाने वाले वानर वीर नल एवं नील का टीला भी संरक्षित है। एक अन्य वानर वीर गवाक्ष, जिनकी स्मृति चुनिदा शास्त्रों तक सिमट कर रह गयी है, उनकी विरासत यहां गवाक्ष के नाम से लगे शिलालेख से जीवंत होती है। विवेचनी सभा ने रामजन्मभूमि अथवा माता कौशल्या के भवन के ही बगल राजा दशरथ की दूसरी रानी के नाम का सुमित्रा भवन भी चिह्नित किया थ पौराणिक स्थलों का संरक्षण-संवर्धन जरूरी
अयोध्या की पौराणिकता के संरक्षण की मुहिम चलाने वाले हनुमानगढ़ी से जुड़े संत आचार्य रामदेवदास कहते हैं, मंदिर निर्माण के साथ 70 एकड़ के परिसर में स्थित पौराणिक स्थलों के साथ संपूर्ण रामकोट क्षेत्र के पौराणिक स्थलों का संरक्षण-संवर्धन किया जाना चाहिए। उनकी मानें, तो रामजन्मभूमि पर मंदिर निर्माण का क्षण अत्यंत सुखद है, पर भगवान राम के ही समय की कई अन्य धरोहरें उपेक्षित है। जबकि सच्चाई यह है कि इन धरोहरों की सहेज-संभाल से रामजन्मभूमि पर बनने वाले मंदिर की आभा-प्रभा में और वृद्धि की जा सकती है।
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विकसित हो पर्यटन का समृद्ध पैकेज
रामकोट क्षेत्र यदि रामजन्मभूमि और हनुमानगढ़ी-कनकभवन जैसी त्रेतायुगीन धरोहरों से गौरवांवित है, तो हनुमान जी के पिता की याद से जुड़ा केशरी टीला, जांबवान किला, द्विविध किला आदि के रूप वानर वीरों की विरासत हाशिए पर सरकती जा रही है। रामकथा मर्मज्ञ पं. राधेश्याम शास्त्री के अनुसार त्रेतायुगीन पुरास्थलों को सहेज कर रामकोट क्षेत्र को तीर्थ के साथ पर्यटन के समृद्ध पैकेज के रूप में विकसित किया जा सकता है।