योग विद्या के जनक महर्षि पंतजलि को शेषनाग का अवतार कहा जाता: धर्म

हर साल 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है। इस दिन देश और दुनिया के सभी देशों में योग दिवस मनाया जाता है। इस विद्या के जनक पंतजलि हैं, जिन्होंने योगसूत्र की रचना की है।

इस ग्रंथ में योग की सभी विद्याओं और योग साधनों के करने और उनके फायदों के बारे में बताया गया है। गुरु पंतजलि की गिनती महान गुरुओं में होती हैं।

इन्होंने कई ग्रन्थों की रचनाएं की है, जिनमें एक योगसूत्र है। आधुनिक समय में इनके तीन ग्रंथों का उल्लेख साहित्य में मिलता है। आइए, योग गुरु पंतजलि से जुड़े रोचक तथ्य जानते हैं-

गुरु पंतजलि शुंग वंश के संस्थापक पुष्यमित्र शुंग के समकालीन थें। पुष्यमित्र शुंग ने 185 ई.पू. मौर्य सम्राज्य के अंतिम शासक बृहद्रथ की हत्या कर शुंग की स्थापना की थी।

इसके बाद जब पुष्यमित्र ने इंडो-यूनानी शासक मिनांडर को युद्ध में परास्त किया तो इस विजय उपलक्ष्य पर दो बार अश्वमेघ यज्ञ कराया गया था। इस यज्ञ के आचार्य गुरु पंतजलि थे।

इनका जन्म 200 ई.पू. में उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में हुआ था। हालांकि, इतिहाकारों में उनके जन्म और काल को लेकर मतभेद है। इसके कुछ समय बाद  पंतजलि अध्यात्म ज्ञान हेतु काशी में आकर रहने लगे। उस समय पंतजलि पाणिनी के शिष्य बने जो कि व्याकरण के रचनाकार हैं। इसके बाद उन्होंने गुरु के साथ गहन अध्ययन किया।

गुरु पंतजलि की तीन प्रमुख रचनाएं योगसूत्र, महाभाष्य और आयुर्वेद ग्रंथ है। इन्होंने महाभाष्य की रचना गुरु पाणिनी के अष्टाध्यायी पर लिखी है।

जबकि चरक संहिता सहित रसायन विज्ञान पर कई ग्रंथों की रचनाएं की हैं। पंतजलि को महाभाष्य की रचना के लिए शंकराचार्य के समतुल्य गुरु माना जाता है।

तत्कालीन समय में इन्होंने अपनी आयुर्वेद और योग विद्या से कई राजा महराजाओं सहित आम लोगों का उपचार किया था। इनके चिक्तिसा प्रभाव से प्रभावित होकर राजा भोज ने इन्हें तन और मन के चिकित्स्क की संज्ञा दी थी। इन्हें शेषनाग का अवतार कहा जाता है।

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