ये हैं चंबल की रानी, पल भर में पहलवानों का निकाल देती है कचूमर

10_1452401980हर दिन कमाई के नए रिकॉर्ड कायम कर रही आमिर खान की फिल्म ‘दंगल’ और महिला पहलवान गीता-बबीता के किस्से इन दिनों हर किसी की जुबान पर हैं।

इस फिल्म ने महिला पहलवानों के बारे में समाज की सोच को तो बदला ही है, साथ ही कुश्ती के खेल को भी एक नई पहचान भी दी है। ऐसे में मध्य प्रदेश से भी एक ऐसी खास महिला पहलवान सामने आई हैं, जिन्हें ‘चंबल की गीता’ कहा जाए तो गलत नहीं होगा।
ग्वालियर के जखौरा गांव की रहने वाली रानी राणा ने राज्य स्तरीय कुश्ती प्रतियोगिता में महज 40 सेकेंड में अपने प्रतिद्वंदी पहलवान को इस कदर चित किया कि वो फिर उठ ही नहीं पाई। इस कामयाबी के साथ ही रानी ग्वालियर चंबल की ऐसी पहली महिला पहलवान बन गईं हैं, जिन्होंने राज्य स्तरीय कुश्ती प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल हासिल किया है।
खास बात ये भी है कि रानी राणा को फिल्म ‘दंगल’ में एक्टिंग का ऑफर मिला था, लेकिन नेशनल चैंपियनशिप की तैयारी के चलते उन्होंने किरदार निभाने से इनकार कर दिया था। फिलहाल, इंदौर कुश्ती एकेडमी में रहकर कुश्ती के गुर सीख रहीं रानी पूरे चंबल में लड़कियों के लिए रोल मॉडल बन गई हैं। एक दिन वो भी था जब रानी के घर से बाहर निकलने पर भी परिवारवालों को गुरेज था। पहलवानी की बात सुनकर तो मानों पूरा गांव ही रानी और उसके माता-पिता के खिलाफ खड़ा हो गया था। गांव में तरह-तरह की बातें हुईं, लेकिन रानी ने अपना लक्ष्य और माता-पिता ने उसका साथ कभी नहीं छोड़ा।
इसी का नतीजा है कि रानी की कामयाबी को देखने के बाद आज गांववाले भी उसकी तारीफ किए बिना नहीं रह पा रहे हैं। जनप्रतिनिधि भी रानी के सम्मान में पलक-पांवड़े बिछाए खड़े रहते हैं। एक दौर था जब ग्वालियर के चंबल अंचल में बेटियों को घर की दहलीज के अंदर ही रहना पड़ता था। कुछ ऐसे ही हालात कुछ साल पहले रानी के साथ भी बने थे, लेकिन रानी ने रेसलिंग में करियर बनाकर गांव का नाम रौशन किया तो उसके परिवार के साथ ही गांववालों को भी उस पर गर्व महसूस होता है। परिवारवाले खुश हैं तो गांववाले रानी की इस कामयाबी को बेटियों के लिए प्रेरणास्रोत मान रहे हैं। रेसलर रानी ग्वालियर जिले के जखौरा गांव की रहने वाली हैं। छोटे से गांव में बेटियों को ज्यादा पढ़ना तक नसीब नहीं होता था। बेटियों को घर के अंदर ही रहकर चूल्हा-चौका करना पड़ता था और छोटी उम्र में ही शादी कर विदा होना पड़ता था।
इन हालातों में गांव की बेटियों का कुश्ती में करियर बनाना किसी सपने जैसा था, लेकिन रानी जिद की पक्की थी। बचपन से ही उसे कुश्ती का शौक था। जब उसने अपने घरवालों को कुश्ती में अपना करियर बनाने की बात कही तो सारे घरवाले उसके विरोध में खड़े हो गए, लेकिन रानी ने हार नही मानी, वो कुश्ती की तैयारी करती रही।जब उसने स्कूल लेवल पर कुश्ती लड़ना शुरू किया तो गांववाले उसके परिवारवालों को ताना तक देते थे, लेकिन वक्त के साथ-साथ रानी की शोहरत कुश्ती में बढ़ती रही। आज रानी प्रदेश ही नहीं, देश में जाना-माना नाम हो गई हैं।
अब रेसलर रानी को देखकर परिवार के बुजुर्गों के साथ ही गांव के लोग और जनप्रतिनिधि खुश होते हैं। गांववालों का मानना है कि रानी ने उनके गांव का मान बढ़ाया है। रानी की कामयाबी से प्रेरित होकर गांव की अन्य लड़कियां भी अब पढ़ाई के साथ-साथ खेलों में आगे आने लगी हैं।

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