महाराष्ट्र के मुंबई और पुणे जैसे शहरों में आबादी बढ़ने को लेकर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के चिंता जाहिर करने पर शिवसेना ने सवाल खड़ा किया है. साथ ही ये भी कहा है कि मौजूदा हालात से बाहर निकलने का सिर्फ नितिन गडकरी ही रास्ता सुझा सकते हैं.
शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादकीय में लिखा गया है कि कोरोना संकट के बावजूद श्रमिक मुंबई और पुणे लौट रहे हैं. वजह है भूख. यही कारण है कि मुंबई में फिर से आबादी बढ़ रही है.
शिवसेना ने कहा कि कोरोना संकट के दौरान मुंबई से लगभग 7-8 लाख प्रवासी अपने मूल राज्यों यूपी, बिहार, बंगाल, ओडिशा आदि के लिए चले गए थे. संकट के समय पुणे से लगभग 3.5 लाख श्रमिक वापस अपने राज्यों को चले गए थे. इसकी वहज से कुछ समय के लिए इन शहरों में जनसंख्या कम हो गई थी.
पार्टी की ओर से कहा या है कि अब लगभग 1.5 लाख श्रमिक मुंबई और पुणे लौट आए हैं क्योंकि यूपी और बिहार में प्रवासियों के लिए कोई काम धंधा नहीं है. इसका सीधा सा मतलब है कि यूपी और बिहार में कोई विकास कार्य नहीं हुआ है.
शिवसेना ने कहा कि कल तक यूपी और बिहार के मुख्यमंत्री कह रहे थे कि श्रमिकों को वापस बुलाने के लिए अनुमति लेनी होगी, और जो प्रवासी मजदूर लौट आए हैं उन्हें उनके ही राज्य में काम दिया जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और प्रवासी अब मुंबई और पुणे लौट रहे हैं.
शिवसेना ने कहा कि जब मुंबई और पुणे जैसे स्मार्ट शहर यूपी और बिहार में बनते तो श्रमिकों को काम मिलता, और यहां आबादी कम होती. अगर केंद्र सरकार यूपी, बिहार, झारखंड और दिल्ली जैसे राज्यों पर ध्यान देती है तो मुंबई और पुणे में आबादी कम होती.
यहां की सरकार विकास कार्यों का प्रबंधन करेगी. केंद्र सरकार को दूसरे राज्यों को रोजगार और बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने पर गौर करना चाहिए.
सामना ने उपरोक्त परिस्थितियों में नितिन गडकरी से पूछा कि उन्हें किस तरह का सुझाव देना चाहिए. शिवसेना ने यह भी कहा कि बाला साहब ठाकरे ने हमेशा बाहरी लोगों के मुद्दे को उठाया था, लेकिन उन पर जाति, क्षेत्रवाद और कट्टर भावनाओं के आरोप लगाए गए थे. सामना ने केंद्र सरकार की स्मार्ट सिटी घोषणा पर भी सवाल उठाया और पूछा कि तमाम घोषित स्मार्ट शहरों में कितना काम हुआ है.
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