भारतीय सभ्यता में यह प्रथा है की जब किसी का अंतिम समय चला रहा होता है। तब उस व्यक्ति को भारतीय ग्रन्थ सुनाये जाते है। जिससे उसको आगे होने वाले दूसरे जन्म में कोई परेशानी नहीं हो। अंतिम समय में चल रहे उन व्यक्तियों को सबसे अधिक गीता सुनाई जाती है। क्यों की गीता में सभी श्लोको का संशिप्त सार दिया गया है। कहा जाता है की अंतिम समय में जो वक्ती जैसा सुनता सोचता है उसे वैसा ही दूसरा जन्म मिलता है। इस लिए उस व्यक्ति को गीता सुनाई जाती है ताकि वह सांसारिक गतिविधियों को भूल कर सिर्फ ईश्वर की आराधना का ध्यान करे। अंत समय में सभी मोह माया का त्याग कर सिर्फ प्रभु भक्ति में लीन होना चाहिए।
साईं बाबा शुरू से ही एक सच्चे योगी थे। साईं बाबा अपने भक्तो को हमेशा कहते थे की कोई भी धर्म बड़ा या छोटा नहीं होता है सभी धर्म एक समान है। जब अंत काल में साईं ने अपने भक्तो के समक्ष एक पर्श रखा की वह कोन सा ग्रन्थ सुने। अपने भक्तो को एक शिक्षा देने के लिए साईं ने सभी गंथो का सम्मान किया। जब साईं को पता चला की उनका अंतिम समय निकट आ गया है तो वे अपने भक्तो को आश्वाशन देते रहे और मज्जिद में ही बैठे रहते थे। जब उन्हें ऐसा लगा की अब वे कुछ ही समय और जीवित रहेंगे तब अपने भक्तो को श्री रामविजय कथासार सुनाने के लिए कहा। बाबा ने इस पाठ को एक सप्ताह तक प्रतिदिन सुना। बाबा के कहे अनुसार अध्याय की द्घितीय आवृत्ति श्री वझे ने तीन दिन में पूर्ण कर ली। इस तरह इस ग्रन्थ को ग्यारह दिन पूर्ण हो गए थे।
जिस समय श्री वझे पाठ कर अत्यंत थक गए थे तब बाबा ने उन्हें विश्राम करने की आज्ञा दी और वह अपने मत्यु कल का इन्तेजार करते रहे। उन दिनों बाबा के साथ श्रीमान बूटी व काकासाहेब दीक्षित मज्जिद में ही भोजन किया करते थे। जब बाबा ने लक्ष्मी बाई को बुलाकर उनके हाथ में नो सिक्के देने के बाद कहा की मुझे बूटी के पत्थरवाड़े में ले चलो मुझे अब यहाँ अच्छा नहीं लगता। में अपना अब बाकि समय वही व्यतीत करुगा। वह पर सुखपूर्वक रहुगा बाबा के मुख से निकले यही शब्द उनके आखरी शब्द थे। इन शब्दों के बाद वे बयाजी के शरीर की ओर लटक गए और उन्होंने अपने प्राण छोड़ दिए। जब भागोजी को लगा की बाबा अब नहीं रहे है तो उन्होंने नानासाहेब को पुकारा और उन्होंने बाबा के मुख में जल डाला जो बाबा के मुह में न रह सका और बाहर निकल गया तभी उनके मुख से एक ही शब्द निकला अरे देवा