यदि आपके साथ होता है कुछ ऐसा, तो भविष्य देखना संभव है

पूर्वानुमान होना किसी तरह की बीमारी नहीं है। बल्कि यह आपकी छठी इंद्री के जाग्रत होने की ओर इंगित करता है। हमारी पांच ज्ञानेंद्रियां होती हैं, आंख, कान, नाक, त्वचा और जीभ। लेकिन कुछ विशेष लोगों की छठी इंद्री विकसित होती है। जिसे ‘थर्ड आई’ भी कहते हैं। अमूमन पूर्वानुमान की घटना संवेदनशील लोगों के साथ होती है।छठी इंद्री को अंग्रेजी में सिक्स्थ सेंस कहते हैं। सिक्स्थ सेंस को जाग्रत करने के लिए योग में अनेक उपाय बताए गए हैं। इसे परामनोविज्ञान का विषय भी माना जाता है। गहरे ध्यान प्रयोग से यह स्वत: ही जाग्रत हो जाती है। इस विषय पर शोध जारी हैं।

कहां होती है छठी इंद्री

मस्तिष्क के भीतर कपाल के नीचे एक छिद्र है, उसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं, वहीं से सुषुम्ना रीढ़ से होती हुई मूलाधार तक गई है। सुषुम्ना नाड़ी जुड़ी है सहस्रकार से। इड़ा नाड़ी शरीर के बायीं तरफ स्थित है तथा पिंगला नाड़ी दायीं तरफ अर्थात इड़ा नाड़ी में चंद्र स्वर और पिंगला नाड़ी में सूर्य स्वर स्थित रहता है।

जब सुषुम्ना मध्य में स्थित है, अतः जब हमारी नाक के दोनों स्वर चलते हैं तो माना जाता है कि सुषम्ना नाड़ी सक्रिय है। इस सक्रियता से ही सिक्स्थ सेंस जाग्रत होता है। इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना के अलावा पूरे शरीर में हजारों नाड़ियां होती हैं। उक्त सभी नाड़ियों का शुद्धि और सशक्तिकरण सिर्फ प्राणायाम और आसनों से ही होता है। शुद्धि और सशक्तिकरण के बाद ही उक्त नाड़ियों की शक्ति को जाग्रत किया जा सकता है। इसे कुंडलिनी के जरिए जाग्रत भी किया जा सकता है एवं किसी विशेष व्यक्ति में यह स्वतः विकसित हो जाती है।

छठी इंद्री के लाभ

# व्यक्ति में भविष्य में होने वाली घटना को जान लेता है।

# ऐसे में अतीत में जाकर घटना की सच्चाई का पता लगाया जा सकता है।

# मीलों दूर बैठे व्यक्ति की बातें सुनी जा सकती हैं।

# किसके मन में क्या विचार चल रहा है इसका शब्दश: पता लग जाता है।

# एक ही जगह बैठे हुए दुनिया की किसी भी जगह की जानकारी पल में ही हासिल की जा सकती है।

छठी इंद्री एक यह अति प्राचीनतम विधा है। ऋषि-संत इसी विद्या का प्रयोग कर एक दूसरे की मन की बात समझकर मन ही मन समाचार का संप्रेषण करते थे।

यही कारण है कि 16वीं सदी से नास्त्रेदमस की भविष्यवाणियां सच साबित होती रही हैं। क्योंकि उनकी छठी इंद्री बहुत ज्यादा विकसित थी। छठी इंद्री या सिक्स्थ सेंस सभी में सुप्तावस्था में होती है। भृकुटी के मध्य निरंतर और नियमित ध्यान करते रहने से आज्ञाचक्र जाग्रत होने लगता है जो हमारे सिक्स्थ सेंस को बढ़ाता है।

मनोचिकित्सक डॉक्टर संजीव त्रिपाठी बताते हैं, किसी घटना का पूर्वानुमान होना परामनोविज्ञान के अंतर्गत आता है। पूर्वानुमान संवेदनशील लोगों के साथ होता है। इस स्थिति में उनकी छठी इंद्री कार्य करती है। यानी उन्हें घटनाओं के बारे में पहले से पता चलने लगता है।

पूर्वानुमान, तंत्र विद्या या कुंडली जाग्रत करके भी उत्पन्न की जा सकती है। लेकिन ऐसे व्यक्ति जो बहुत संवेदनशील है उनकी छठी इंद्री स्वतः जाग्रत हो जाती है।

 

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