गुजरात हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री से संबंधित मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई 21 जुलाई के लिए स्थगित कर दी है। गुजरात विश्वविद्यालय की ओर से शुक्रवार को अदालत में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केजरीवाल द्वारा दायर प्रत्युत्तर हलफनामे को पढ़ने के लिए समय मांगा, जिसके बाद जस्टिस बीरेन वैष्णव ने सुनवाई स्थगित कर दी।
केजरीवाल द्वारा उठाए गए प्रमुख तर्कों में से एक यह है कि मोदी की डिग्री ऑनलाइन उपलब्ध होने के गुजरात विश्वविद्यालय के दावे के विपरीत, ऐसी कोई डिग्री विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है।
सॉलिसिटर जनरल मेहता ने अदालत से कहा कि उन्हें शुक्रवार की सुनवाई शुरू होने से कुछ समय पहले ही हलफनामा मिला है, जिसमें अदालत की पिछली सुनवाई की कॉपी है। जस्टिस वैष्णव ने जब मेहता से पूछा कि क्या वह आज बहस कर सकते हैं, तो उन्होंने कहा कि केजरीवाल द्वारा दाखिल किए गए हलफनामे में जो लिखा गया है उसे पढ़े बिना यह मुश्किल होगा।
मेहता ने कहा कि वरिष्ठ वकील पर्सी कविना के माध्यम से दायर केजरीवाल के हलफनामे में पिछली सुनवाई की तरह ही ‘गैर-जिम्मेदाराना बयान’ हो सकते हैं। मेहता ने कहा, “मुझे बहस करने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन उन्होंने क्या कहा है, यह जाने बिना यह कठिन है। हमने इस मामले में पाया है कि शुरू से ही गैर-जिम्मेदाराना बयान दिए जा रहे हैं। हो सकता है, वे इस हलफनामे में भी हों, इसलिए मुझे इसे पढ़ लेने दें।”
यह पता चलने पर कि केजरीवाल के हलफनामे में पिछली सुनवाई की वीडियो रिकॉर्डिंग की प्रतिलिपि भी शामिल है, क्योंकि हाईकोर्ट की कार्यवाही यूट्यूब पर लाइव दिखाई जाती है, मेहता ने कहा, “कुछ भी अप्रत्याशित नहीं है”। इसके बाद मेहता ने स्पष्ट किया कि उनकी यह टिप्पणियां केजरीवाल के लिए थीं, कविना के लिए नहीं।
इस महीने की शुरुआत में आम आदमी पार्टी (आप) प्रमुख केजरीवाल ने गुजरात हाईकोर्ट का रुख करते हुए मामले में अदालत के एक हालिया आदेश पर पुनिर्वचार करने का अनुरोध किया था। अदालत ने अपने उस आदेश में गुजरात विश्वविद्यालय को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री के बारे में जानकारी प्रदान करने को केंद्रीय सूचना आयोग को निर्देश देने के अनुरोध को खारिज कर दिया था।
केजरीवाल द्वारा उठाए गए प्रमुख तर्कों में से एक यह है कि मोदी की डिग्री ऑनलाइन उपलब्ध होने के गुजरात विश्वविद्यालय के दावे के विपरीत, ऐसी कोई डिग्री विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है। मार्च में, जस्टिस वैष्णव ने सीआईसी के आदेश के खिलाफ गुजरात विश्वविद्यालय की अपील की अनुमति दी थी और केजरीवाल पर 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया था।
अप्रैल 2016 में, तत्कालीन सीआईसी आचार्युलु ने दिल्ली विश्वविद्यालय और गुजरात विश्वविद्यालय को मोदी की डिग्री के बारे में केजरीवाल को जानकारी प्रदान करने का निर्देश दिया था। सीआईसी का आदेश केजरीवाल द्वारा आचार्युलु को लिखे पत्र के एक दिन बाद आया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्हें उनके (केजरीवाल) बारे में सरकारी रिकॉर्ड सार्वजनिक किए जाने पर कोई आपत्ति नहीं है।
पत्र में केजरीवाल ने आश्चर्य जताया था कि आयोग मोदी की शैक्षणिक योग्यता के बारे में जानकारी ‘छिपाना’ क्यों चाहता है। पत्र के आधार पर, आचार्युलु ने गुजरात विश्वविद्यालय को मोदी की शैक्षणिक योग्यता के रिकॉर्ड केजरीवाल को देने का निर्देश दिया था।
गुजरात विश्वविद्यालय ने सीआईसी के आदेश पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि किसी की “गैरजिम्मेदाराना बचकानी जिज्ञासा” सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत सार्वजनिक हित नहीं बन सकती है।
विश्वविद्यालय की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने फरवरी में हाईकोर्ट को बताया था कि छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है क्योंकि पीएम की डिग्रियों के बारे में जानकारी “पहले से ही पब्लिक डोमेन में” थी और यह कि विश्वविद्यालय ने पूर्व में एक विशेष तिथि पर यह जानकारी अपनी वेबसाइट पर डाल दी थी। हालांकि, केजरीवाल ने अपनी पुनर्विचार याचिका में कहा कि विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर ऐसी कोई डिग्री उपलब्ध नहीं है। इसके बजाय, ‘ऑफिस रजिस्टर (ओआर)’ नामक एक दस्तावेज प्रदर्शित किया जाता है, जो ‘डिग्री’ से अलग है।