मोदी का सही फैसला ये असली पद्म सम्मान के हकदार मिल गया अपना हक…

ओड़िशा में 100 एकड़ जमीन की सिंचाई के लिए पहाड़ का पानी लाने के लिए अकेले तीन किलोमीटर लंबी नहर खोद देने वाले एक गांववासी, मथुरा में 1200 रुग्ण, वृद्ध और घायल गायों की देखरेख करने वाली जर्मन नागरिक भी उन 112 लोगों में हैं जिन्हें सरकार ने पुरस्कार के लिए नामित किया गया है. अपने मुनाफे से झुग्गी-झोपड़ियों के बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाने वाले एक चाय विक्रेता, मरीजों से मात्र एक रुपया शुल्क लेने वाले डॉक्टर दंपति और महादलित समुदाय के लिए विद्यालय शुरू करने वाले सेवानिवृत आईपीएस अधिकारी उन गुमनाम नायकों में शामिल हैं, जिन्हें इस वर्ष पद्म पुरस्कार प्रदान किए गए हैं.

‘चाय बेचने वाले गुरु’ के नाम से पहचाने वाले देवरापल्ली प्रकाशराव चाय बिक्री से मिलने वाली धनराशि झुग्गी-झोपड़ियों के बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर लगा रहे हैं. मात्र सात साल की उम्र से ही कार्य कर रहे और सीने के लकवा से ग्रस्त राव ने कटक में ‘आशा ओ आश्वासन’ नामक विद्यालय स्थापित करने और उसे चलाने में अपनी कमाई का आधा हिस्सा खर्च कर दिया.

बिहार के मुजफ्फरपुर जिले की ‘किसान चाची’ को पद्म श्री से नवाजा गया है. सरैया प्रखंड के आनंदपुर ग्राम की राजकुमारी देवी पहले ‘साइकिल चाची’ और इसके बाद ‘किसान चाची’ बनीं. पहले उन्हें किसानश्री और अब पद्मश्री से सम्मानित किया गया है. दरअसल, आचार और मुरब्बे की दूकान लगाने वाली राजकुमारी देवी कोई और नहीं, बल्कि बिहार की ‘किसान चाची’ हैं, जो गांव- गांव साइकिल से घूमकर महिलाओं को उत्थान और शिक्षा के साथ ही जैविक ढंग से खेती करने के लिए प्रेरणा देती हैं और इसके अलावा वे गांव-गांव जाकर महिलाओं को फसल के उत्पाद के बारे में जानकारी देकर उन्हें बाजार में बेचने के लिए भी जागरूक करती हैं.

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